निर्भया के चारों दोषियों को फांसी पर लटकाने की तारीख भले ही टलने के पूरे आसार बन रहे हैं लेकिन तिहाड़ प्रशासन ने तैयारियों में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. दोषियों को फांसी चढ़ाने के लिए पवन जल्लाद तिहाड़ जेल पहुंच गए हैं. तिहाड़ जेल के सूत्रों के मुताबिक, पवन जल्लाद ने तिहाड़ जेल में रिपोर्ट की है. पवन अभी फिलहाल तिहाड़ जेल में ही रहेंगे.
शुक्रवार को पटियाला हाउस कोर्ट तय करेगा कि फांसी की तारीख यानी 1 फरवरी को टाला जाए या नहीं. शुक्रवार को तिहाड़ जेल प्रशासन को दोषी विनय की दया याचिका के बाबत अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी है. शुक्रवार सुबह 10 बजे पटियाला हाउस कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा.
फांसी की तारीख तय होने के बाद की प्रक्रिया पर पवन बोले थे, "फांसी की तारीख तय होने के बाद हमें एक दिन पहले जेल में बुलाया जाता है. उसके बाद दिमाग में यह चल रहा होता है कि कैदी के पैर कैसे बांधने हैं, रस्सी कैसी बांधनी हैं. उस पूरी रात हमें नींद नहीं आती. ऐसा लगता है कि यह कयामत की रात है."
फांसी की प्रक्रिया के बारे में जब पवन जल्लाद से एक बार क्राइम तक की टीम ने पूछा था कि उनके ठहरने के स्थान से फांसी घर तक कितने बजे ले जाया जाता है. तो वे बोले, "जो समय तय होता है, उससे 15 मिनट पहले फांसी घर के लिए चल देते हैं. हम उस समय तक तैयार रहते हैं. फांसी की तैयारी करने में भी एक से डेढ़ घंटा लगता है."
कैदी के बैरक से फांसी घर में आने की प्रक्रिया पर पवन बोले थे, "फांसी घर लाने से पहले कैदी के हाथ में हथकड़ी डाल दी जाती है, नहीं तो हाथों को पीछे कर रस्सी से बांध दिया जाता है. दो सिपाही उसे पकड़कर लाते हैं. बैरक से फांसी घर की दूरी के आधार पर फांसी के तय समय से पहले उसे लाना शुरू कर देते हैं. बैरक से फांसी घर तक लाने में करीब 15 मिनट लगते हैं. उस समय कैदी के पैर कांप रहे होते हैं."
फांसी घर में फांसी के समय उपस्थित रहने वालों की संख्या पर पवन ने कहा था, "फांसी देते समय 4-5 सिपाही होते हैं, वह कैदी को फांसी के तख्ते पर खड़ा करते हैं. वह कुछ भी बोलते नहीं हैं, केवल इशारों से काम होता है. इसके लिए एक दिन पहले हम सबकी जेल अधीक्षक के साथ एक मीटिंग हो जाती है. इसके अलावा फांसी घर में जेल अधीक्षक, डिप्टी जेलर और डॉक्टर भी वहां मौजूद रहते हैं. "
फांसी देते समय वहां मौजूद लोग कुछ भी बोलते नहीं हैं, सिर्फ इशारों से काम होता है. इसकी वजह बताते हुए पवन ने कहा था, "इसकी वजह है कि कैदी कहीं डिस्टर्ब न हो जाए, या फिर वह कोई ड्रामा न कर दे. सभी को सभी कुछ पता होता है लेकिन कोई भी कुछ बोलता नहीं है."
कैदी को फांसी की तख्ते पर लाने और फांसी देने में 10 से 15 मिनट लगते हैं. इसकी पूरी प्रक्रिया पवन ने बताते हुए कहा था, "कैदी के हाथ तो बंधे होते हैं, फिर उसके पैर बांधे जाते हैं, सिर पर टोपा डाल दिया जाता है और फिर फांसी का फंदा कसना होता है. पैर को बांधना और सिर पर टोपा डालने का काम हमेशा साइड से किया जाता है क्योंकि यह डर रहता है कि मरने से पहले कैदी कहीं फांसी देने वाले को पैरों से घायल न कर दे. सिर में फंदे को कसने के लिए कैदी के चारों तरफ घूमना होता है. जैसे ही सारा काम पूरा हो जाता है, हम लीवर के पास पहुंच जाते हैं और जेल अधीक्षक को अंगूठा दिखाकर बताते हैं कि हमारा काम पूरा हो गया है. अब इशारा होते ही लीवर खींचने की तैयारी होती है."
कैदी को खड़े करने की जगह पर एक गोल निशान बनाया जाता है जिसके अंदर कैदी के पैर होते हैं. जेल अधीक्षक रूमाल से इशारा करता है तो हम लीवर खींच देते हैं. कैदी सीधे कुएं में टंग जाता है. 10 से 15 मिनट में उसका शरीर शांत हो जाता है. उसके बाद डॉक्टर कैदी के शरीर के पास जाता है और उसकी हार्ट बीट चेक करता है. उस समय तक शरीर ठंडा हो चुका होता है. उसके बाद डॉक्टर, सिपाही को इशारा करते हैं तो सिपाही फंदे से कैदी की बॉडी को उतार लेते हैं. वहीं, जो चादर होती है, वह बॉडी पर डाल दी जाती है. फंदा और रस्सी निकाल कर हम एक तरफ रख देते हैं, बस उसके बाद हमारा काम खत्म.