बिहार में एनडीए की नई सरकार की तस्वीर साफ हो गई है. नीतीश कुमार को जेडीयू विधायक दल का नेता चुन लिया गया है तो बीजेपी ने सम्राट चौधरी को नेता और विजय कुमार सिन्हा को उपनेता चुना गया है. माना जा रहा है कि नीतीश मुख्यमंत्री (CM) और सम्राट चौधरी व विजय सिन्हा उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं हालांकि इसे लेकर कोई आधिकारिक घोषणा अभी तक नहीं हुई है. गुरुवार को पटना के गांधी मैदान में शपथ ग्रहण का समारोह रखा गया है.
बिहार बीजेपी के केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाकर भेजे गए केशव प्रसाद मौर्य ने विधायक बैठक के बाद कहा कि सम्राट चौधरी को विधायक दल का नेता चुना गया जबकि विजय कुमार सिन्हा को उप नेता चुना गया है. बीजेपी की तरफ से ये दोनों नेता हिट हैं और फिट भी हैं। ये जीत का चौका है.
बीजेपी और जेडीयू के विधायक दल की बैठक के बाद अब एनडीए के विधायक दल की संयुक्त मीटिंग में नीतीश कुमार को सर्वसम्मति से नेता चुना जा सकता है.
नीतीश-सम्राट-विजय की तिकड़ी हिट
नीतीश कुमार, सम्राट और विजय सिन्हा की सियासी जोड़ी बिहार चुनाव में हिट रही है। इस बार के चुनाव में नीतीश के साथ सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा के नेतृत्व में एनडीए को ऐतिहासिक जीत मिली है. एनडीए 202 सीटें जीतकर सत्ता में लौटी है और महागठबंधन को 35 सीट पर सीमित कर दिया है. राज्य के जातीय पिच पर भी ये फिट बैठते हैं. यह तिकड़ी कुर्मी-कोइरी-भूमिहार समीकरण को मजबूत करने का दांव माना जा रहा है.
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कुर्मी-कोइरी के सहारे ओबीसी पर दांव
नीतीश कुमार ने 20 साल पहले कुर्मी-कोइरी समीकरण बनाकर ही आरजेडी से सत्ता छीनी थी. इसे नीतीश ने लव-कुश फॉर्मूले का नाम दिया था। बिहार में यादव के बाद कुर्मी और कोइरी दो बड़ी ओबीसी जातियां हैं. नीतीश कुर्मी जाति से हैं तो सम्राट चौधरी कोइरी समुदाय से आते हैं। इस बार के बिहार चुनाव में एनडीए की जीत में इन दोनों जातियों का रोल काफी अहम था.
बिहार में कुर्मी समाज की आबादी 2.5 फीसदी है तो पांच फीसदी आबादी कोइरी समाज की है. इस बार विधानसभा के चुनाव में कोइरी जाति के 24 विधायक जीतकर आए हैं तो कुर्मी जाति के 14 विधायक जीते हैं. कोइरी विधायक बीजेपी से 5, जेडीयू से 11, एलजेपी से एक, आरएलएम से 2 और महागठबंधन से 5 जीते हैं। कुर्मी विधायक बीजेपी से दो और जेडीयू से 12 जीते हैं.
एनडीए का लव-कुश फॉर्मूला
नीतीश-सम्राट के अगुवाई में उतरने का लाभ एनडीए को मिला. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पारंपरिक आधार माने जाने वाले कुर्मी-कोइरी समुदायों के 71 फीसदी वोट एनडीए को मिले। वहीं, पिछड़ी जातियों के अलग-अलग समूह के कुल मिलाकर 68 फीसदी वोट एनडीए को मिले हैं.
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साल 2020 के चुनावों में इन जातियों का समर्थन कम था. 2020 में 66 फीसदी कुर्मी-कोइरी और 58 फीसदी बाकी ओबीसी जातियों ने एनडीए के पक्ष में वोट किया था। इस लिहाज से इस बार 5 फीसदी कुर्मी-कोइरी का ज्यादा वोट एनडीए को मिला और अन्य ओबीसी जाति का 10 फीसदी ज्यादा वोट मिले हैं. इस तरह बीजेपी बिहार में ओबीसी वोटों पर अपना खास फोकस रखती है.
जेडीयू ने बिहार में नीतीश कुमार के जरिए कुर्मी को संदेश दिया तो सम्राट चौधरी के जरिए बीजेपी ने कोइरी समाज को मैसेज दिया है। बीजेपी का सियासी फोकस ओबीसी में कोइरी वोटबैंक पर है, जिसके लिए देश के अलग-अलग राज्यों में कोइरी लीडरशिप खड़ी कर रही है.
बिहार से यूपी के समीकरण साधने का प्लान
यूपी में केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम हैं तो हरियाणा में नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री हैं और बिहार में सम्राट चौधरी डिप्टी सीएम। ये तीनों नेता कोइरी समाज से हैं तो बीजेपी कुर्मी समाज पर भी फोकस किए हुए है. बीजेपी की पूरी नजर ओबीसी वोटों को साधे रखने की है, क्योंकि 2024 के चुनाव में कुर्मी और कोइरी दोनों ही वोट बीजेपी से यूपी में खिसका था. यही वजह है कि बीजेपी अब जब कमबैक की है तो उसे साधे रखना चाहती है.
बिहार के बाद 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी यूपी की सियासत में कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं है. इसीलिए नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी के सहारे यूपी के कुर्मी-कोइरी वोटों को सियासी संदेश देने की कवायद. इस तरह से अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले को काउंटर करने का भी प्लान माना जा रहा है. इसीलिए केशव प्रसाद मौर्य जैसे नेता का सियासी कद बीजेपी लगातार बढ़ाने में जुटी है तो सम्राट चौधरी को विधायक दल के नेता चुनाकर भी संदेश दे दिया है.
विजय सिन्हा के सहारे भूमिहार को संदेश
बीजेपी ने विधायक दल का उपनेता विजय कुमार सिन्हा को चुना है. विजय कुमार सिन्हा भूमिहार समाज से आते हैं, जो बीजेपी का परंपरागत वोटर है. बीजेपी ने विजय सिन्हा के जरिए सिर्फ भूमिहार समाज को नहीं, बल्कि बिहार की अगड़ी जातियों को संदेश देने का दांव खेला है.
बिहार में भले ही भूमिहार समाज की आबादी 2.86 फीसदी है, लेकिन सियासी तौर पर काफी अहम फैक्टर है। इस बार के चुनाव में 25 भूमिहार विधायक जीते हैं, जिसमें 23 एनडीए से और 2 आरजेडी से जीते हैं. बीजेपी से 13, जेडीयू से 7 और बाकी अन्य घटक दल से हैं। वहीं, सवर्ण जातियों से 72 विधायक जीतकर आए हैं.
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बिहार में राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार के कुल वोट 10 फीसदी के करीब है, लेकिन राजनीतिक ताकत आबादी से कहीं ज्यादा है. बीजेपी का सवर्ण वोटर कोर वोटबैंक माने जाते हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में अगड़ी जातियों ने भारी संख्या में एनडीए को वोट किया है.
अगड़ी जातियों में ब्राह्मण समाज का 82 फीसदी वोट एनडीए को मिला। इसके बाद भूमिहारों से 74 फीसदी और बाकी अगड़ी जातियों से 77 फीसदी वोट एनडीए को मिले.
वहीं, 2020 चुनाव में एनडीए को अगड़ी जातियों का 59 फीसदी वोट एनडीए को मिला था. इस बार का वोटिंग पैटर्न दिखाता है कि अगड़ी जातियों का लगभग पूरा वोटबैंक एनडीए के पीछे एकजुट हो गया. यही वजह है कि बीजेपी ने बिहार में पिछड़ी जाति के साथ अगड़ी जाति का संतुलन बनाने का दांव चला है.
कुबूल अहमद