व्यापार जगत पर आर्थिक मंदी के होने वाले प्रभावों को पूरी दुनिया जानती है पर अन्डरवर्ल्ड की दुनिया पर हुए इसके असर को बहुत ही मनोरंजक रूप में तीन दिसम्बर को रिलीज होने वाली बालीवुड फिल्म 'फंस गये रे ओबामा' में दर्शाया गया है.
राजधानी दिल्ली में मीडिया के लिए आयोजित फिल्म के विशेष प्रदर्शन के मौके पर इसके निर्देशक सुभाष कपूर ने बताया कि पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी को लोग सिर्फ बेरोजगारी और निगमित कंपनियों की आय में आई गिरावट को रूप में समझते हैं लेकिन इसका असर हमारे यहां के फिल्म उद्योग पर भी हुआ और इस गुस्से को हमने व्यंग्य के रूप में दर्शकों को परोसने की कोशिश की है.
उन्होंने कहा कि हमें ख्याल आया कि मंदी का असर तो अन्डरवर्ल्ड के काम करने के तरीके पर भी आया होगा और यहीं से इस फिल्म का विचार निकल कर सामने आया. जिसे हमने कामेडी के रूप में परोसने की कोशिश की है.
फिल्म की कहानी एक एनआरआई के अपहरण के इर्द गिर्द घूमती है जिसे लेकर तमाम छोटे बड़े गिरोह और अंत में एक नेता भी सक्रिय हो जाते हैं. इस अपहरण के काफी पैसे मिलने की उम्मीद में इन गिरोहों में आपसी टकराहट भी मजेदार रूप ले लेती है. यह मंदी को लेकर समाज पर हुए तमाम दुष्प्रभावों और अपराधी गिरोहों की आपसी खींचातानी को मजेदार ढंग से दर्शकों के सामने लाती है.
लगभग साढ़े तीन करोड़ की इस कम बजट की फिल्म को बनाने के बारे में निर्देशक कपूर ने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में हाल के दिनों में छोटे बजट की फिल्मों ने अच्छा व्यवसाय कर साबित किया है कि अगर कहानी अच्छी हो और उसे मनोरंजक तरह से पेश किया जाये तो दर्शक उसे हाथों हाथ लेते हैं और यही हमारी प्रेरणा का स्रोत था.
उन्होंने कहा कि सिनेमा का यह एक नया दौर है जिसमें फिल्म की कहानी कल्पनाओं की दुनिया से आजाद होकर वास्तविक के धरातल पर आ रही है और दर्शक भी यथार्थ से उपजे मनोरंजन को तलाश रहे हैं ऐसे में बहुत तामझाम और बड़े बजट की कोई जरूरत नहीं होती.
इस फिल्म के लगभग सभी कलाकारों का काम उम्दा है. विशेषकर मुख्य चरित्र अदा करने वाले संजय मिश्रा, अनिवासी भारतीय बने रजत कपूर, पुलिस इंस्पेक्टर विजेन्द्र काला, लेडी डान के रूप में नेहा धूपिया, गैंगस्टर मनु ऋषि इत्यादि का काम सराहनीय है. फिल्म के निर्माता अशोक पांडे हैं जो उनकी पहली फिल्म है.