टीपू सुल्तान की आज बरसी है. वहीं कर्नाटक चुनाव के पहले से ही इस दक्षिण राज्य में टीपू सुल्तान को लेकर कांग्रेस और बीजेपी में विवाद छिड़ा हुआ है. टीपू की मौत 4 मई 1799 को हुई थी. 1782 से लेकर 1799 तक मैसूर के सुल्तान रहे टीपू के नाम पर राजनीति भी हो रही है और मुद्दे को सांप्रदायिक भी बनाया जा रहा है.
टीपू सुल्तान जिसे मैसूर का शेर कहा जाता था साथ ही इतिहास ब्रिटिश सेना को धूल चटाने के लिए याद करता है. हालांकि इसी टीपू सुल्तान पर मंदिरों को तोड़ने और हिंदूओं का नरसंहार करने का आरोप भी लगाया जाता रहा है.
बताया जाता है कि हिंदू संगठन दावा करते हैं कि टीपू धर्मनिरपेक्ष नहीं था, बल्कि एक असहिष्णु और निरंकुश शासक था. वह दक्षिण का औरंगजेब था जिसने लाखों लोगों का धर्मांतरण कराया और बड़ी संख्या में मंदिरों को गिराया. साल 2015 में आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में भी टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में टीपू को दक्षिण का औरंगजेब बताया गया है, जिसने जबरन लाखों लोगों का धर्मांतरण कराया.
19वीं सदी में ब्रिटिश गवर्मेंट के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब 'मालाबार मैनुअल' में लिखा है कि कैसे टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी. टीपू सुल्तान ने पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी और उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध पर लटकाया गया. इस किताब में विलियम ने टीपू सुल्तान पर मंदिर, चर्च तोड़ने और जबरन शादी जैसे कई आरोप भी लगाए हैं.
1964 में प्रकाशित किताब 'लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान' में कहा गया है कि सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा हिंदुओं और 70,000 से ज्यादा ईसाइयों को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया.
सांप्रदायिक दृष्टिकोण से भले ही उन पर आरोप लग रहे हैं, लेकिन टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइलमैन कहा जाता है. बीबीसी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब 'विंग्स ऑफ़ फ़ायर' में लिखा है कि उन्होंने नासा के एक सेंटर में टीपू की सेना की रॉकेट वाली पेंटिग देखी थी. असल में टीपू और उनके पिता हैदर अली ने दक्षिण भारत में दबदबे की लड़ाई में अक्सर रॉकेट का इस्तेमाल किया.
वहीं इंडिया टुडे की टीम ने कर्नाटक के उस गांव का दौरा किया था जो टीपू सुल्तान से नफरत करता है. इस गांव का नाम है मेलकोट. जो बंगलुरु से 100 किमी की दूरी पर स्थित है. कहा जाता है कि हर दिवाली को यहां आयंगार ब्राह्मण समुदाय के लोग दिवाली नहीं मनाते हैं.
इसके पीछे मेलकोट के रहने वाले श्रीनिवास बताते हैं कि दिवाली के दिन टीपू
सुल्तान ने 800 ब्राह्मणों को फांसी पर चढ़ाया था और वह ब्राह्मण हमारे
पूर्वज थे. फांसी पर चढ़ाए जाने की वजह पूछने पर श्रीनिवास कहते हैं कि टीपू
सुल्तान ने इसलिए ब्राह्मणों को मारा क्योंकि उन्होंने धर्म परिवर्तन करने
से मना कर दिया था
वहीं, टीपू सुल्तान के हिंदू धर्म के प्रति उदारता के भी कई उदाहरण मिलते
हैं. इतिहासकार मानते हैं कि टीपू सुल्तान धर्मनिरपेक्ष शासक था. उसने कई
मंदिरों में दान दिया. मेलकोट के रंगास्वामी मंदिर में आज भी उसका दान दिया
हुआ घंटा और ड्रम आज भी मौजूद हैं.
टीपू की छवि अब भी विवादों में है. इसी साल एक कार्यक्रम में जहां
केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने उसे ब्लात्कारी बताया था तो
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कर्नाटक विधानसभा के संयुक्त सत्र को संबोधित
करते हुए टीपू सुल्तान को एक ऐसा योद्धा करार दिया था जो अंग्रेजों से
लड़ते हुए ऐतिहासिक मौत को प्राप्त हुए थे.