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फादर्स डे पर देखें: वो 8 पिता जो अपने ही पुत्र के खिलाफ खड़े हो गए

फादर्स डे पर देखें: वो 8 पिता जो अपने ही पुत्र के खिलाफ खड़े हो गए
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आज फादर्स डे है. पिता अपने बच्चों की खुशी के लिए और उनके सपने पूरे करने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा देते हैं. देखा जाए तो उनके लिए अपने बच्चों से बढ़कर दूसरा नहीं होता. लेकिन हिंदू पौराणिक कथाओं में कुछ ऐसे पिता भी रहे हैं जिन्होंने अलग-अलग कारणों से जाने-अनजाने बच्चों के खिलाफ कदम उठाए.

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दुष्यंत और भरत
ये दो बच्चों की कहानी है जिनके पिता ने उन्हें त्याग दिया. विश्वामित्र ने अप्सरा मेनका और अपनी नवजात बच्ची को इसलिए त्याग दिया था क्योंकि मेनका ने उनकी साधना में विघ्न डालने की हिम्मत की. मेनका उस बच्ची को स्वर्ग में नहीं लेकर जा सकती थीं इसलिए उन्होंने उसे जंगल में छोड़ दिया जहां ऋषि कन्वा को बच्ची मिली और उन्होंने उसका पालन-पोषण किया. इस तरह कालिदास के अभिज्ञानशकुंतलम की शकुंतला का जन्म हुआ. शकुंतला को राजा दुष्यंत से प्यार हुआ और उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया. तब कन्वा वहां नहीं थे. दोनों साथ रहने लगे और इसी दौरान शकुंतला गर्भवती हो गईं. शकुंतला के पास शादी के प्रमाण के तौर पर केवल एक अंगूठी थी, जो उन्हें राजा के सामने पेश करनी थी जब वो उनके राज्य में पहुंचतीं. दुष्यंत के अपने राज्य लौट जाने के बाद शकुंतला को ऋषि दुर्वासा ने श्राप दे दिया कि उनके प्रेमी उन्हें भूल जाएंगे.
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शिव और गणेश
भगवान शिव के गुस्से के बारे में तो सब जानते हैं उनके इस गुस्से से खुद उऩके पुत्र भगवान गणेश भी नहीं बच पाए. शिव पुराण में बताया गया है कि शंकर जी की गैर मौजूदगी में लक्ष्मी जी के कहने पर पार्वती ने गणेश को बनाया. पार्वती ने नहाते समय गणेश को प्रवेश द्वार की रक्षा करने के लिए कहा. उसी समय शिव लौट आए. गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया. गुस्से में भगवान शिव ने गणेश की गर्दन काट दी. इससे दुखी पार्वती ने शिव से गणेश का सिर वापिस लाने के लिए कहा जिसके बाद शिव ने गणेश के शरीर पर हाथी का सिर लगाया और इस तरह भगवान गणेश का फिर से जन्म हुआ.
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राम और लव- कुश
वनवास से लौटने के बाद एक धोबी के कहने पर अयोध्या के राजा राम ने अपनी गर्भवती पत्नी सीता को वन में छुड़वा दिया. सीता वाल्मीकि के आश्रम में रहीं. यहां उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया. बाल्यावस्था में ही दोनों ने भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोक दिया और शत्रुघ्न, भरत और लक्ष्मण को युद्ध में परास्त किया. उनकी वीरता और कौशल के किस्से सुनकर राम ने उन्हें अयोध्या में भी आमंत्रित किया, जहां सीता से उनकी पवित्रता का सबूत मांगा गया जिसके बाद सीता धरती में समा गईं.
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अर्जुन और इरावन
पांडव अर्जुन और नागा राजकुमारी उलुपी के बेटे थे इरावन. महाभारत के युद्ध में जब कौरव भारी पड़ रहे थे तो अपने पिता के कहने पर इरावन भी इस लड़ाई में आए. इरावन के इस लड़ाई का हिस्सा बनने के बाद कहा गया कि इस लड़ाई में पांडव तभी जीत सकते हैं जब मां काली को एक राजकुमार की बलि दी जाए. अपनी बलि के लिए इरावन तैयार हो गए और उन्होंने अपने पिता के लिए अपने सिर को काट दिया.
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उत्तनपाद और ध्रुव
भगवद पुराण और विष्णु पुराण में बताया गया है कि बालक ध्रुव अपने पिता का प्यार चाहते थे. उनका जन्म राजा उत्तनपाद और उनकी पहली पत्नी रानी सुनीति के यहां हुआ था. उनकी सबसे प्रिय पत्नी थीं सुरुचि उनका भी एक बेटा था उत्तम जो सिंहासन का दावेदार था. सुरुचि ने हमेशा उत्तनपाद को ध्रुव के खिलाफ करने की कोशिश की. एक बार ध्रुव अपने पिता की गोदी में बैठे थे तो सुरुचि ने ध्रुव को वहां से हटा दिया. जब ध्रुव ने अपने पिता के प्यार के लिए कहा तो सुरुचि ने कहा कि ये जाकर भगवान से मांगो. ध्रुव ने ऐसा ही किया. उन्होंने भगवान विष्णु की गहन तपस्या की. भगवान विष्णु ने उन्हें अंततः अपनी उपस्थिति, प्रेम और ध्रुवपद (जिसका मतलब है कि मरने के बाद वो तारा बन जाएंगे, जो महाप्रलय और कयामत से अछूते रहेंगे) दिया. ध्रुव अपने राज्य पहुंचे और 6 साल की उम्र में उन्हें सिंहासन मिला. वो एक अच्छे शासक बने और मरने के बाद वो ध्रुव तारा बने.
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हिरणाकश्यप और प्रहलाद
हिरणाकश्यप को ब्रह्मा से तकरीबन अमर होने का वरदान प्राप्त था. उनके बेटे प्रह्लाद का जन्म अपने पिता से दूर ऋषि नारद के संरक्षण में हुआ था. प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे जिससे हिरणाकश्यप को नफरत थी. नाराज हिरणाकश्यप ने कई बाद प्रह्लाद को मारने की कोशिश की लेकिन वो उसमें सफल नहीं हो पाया. इसके बाद हिरणाकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता में बैठ गई. होलिका को नहीं जलने का वरदान प्राप्त था. जब होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठीं तो प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन होलिका जल गईं. बाद में विष्णु भगवान ने अपने नरसिंह अवतार में हिरणाकश्यप का वध किया.

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भीम और घटोत्कच
घटोत्कच सबसे ताकतवर पांडव भीम और उनकी राक्षसी पत्नी हिडिंबा के बेटे थे. घटोत्कच को उनके पिता ने अपनी मां कुंति के कहने पर छोड़ दिया था. उन्हें पहली बार उस समय याद किया गया जब पांडव चलने लायक नहीं थे, तब घटोत्कच ने उन्हें अपने राक्षस मित्रों के साथ कंधों पर उठाया था. दूसरी बार घटोत्कच को भीम ने महाभारत की लड़ाई के समय याद किया जहां घटोत्कच ने कौरवों को चींटी की तरह रौंद दिया था. उनको रोकने के लिए कर्ण ने उस अस्त्र से उनका वध कर दिया, जो उन्होंने खासकर अर्जुन का वध करने के लिए संभाल कर रखा था.
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शांतनु और भीष्म
भीष्म शांतनु के पुत्र थे. वे शांतनु के बाद राजपद के दावेदार थे लेकिन एक दिन शांतनु जंगल में घूमने गए और वहां उन्हें सत्यवती से प्यार हो गया. सत्यवती शादी के लिए तैयार थीं लेकिन उनकी शर्त थी कि उनके पुत्र को ही हस्तिनापुर का सिंहासन दिया जाए. भीष्म को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की जिससे उनके वंश से कोई कभी भी सत्यवती के पुत्र को सिंहासन के लिए चुनौती ना दे सके. यानी शांतनु की इच्छा पूरी करने के लिए भीष्म को आजीवन ब्रह्मचारी रहना पड़ा.
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