संतोषी मां (Santoshi Maa), हिन्दू धर्म में संतोष, शांति और भक्ति की देवी के रूप में पूजनीय हैं. उनका नाम ही उनके स्वरूप को दर्शाता है "संतोष" यानी संतुष्टि और "मां" यानी मातृ स्वरूप. संतोषी मां को विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा पूजा जाता है, और यह माना जाता है कि उनकी उपासना करने से जीवन में सुख, समृद्धि और पारिवारिक शांति प्राप्त होती है.
संतोषी मां की उत्पत्ति से जुड़ी कथा बेहद लोकप्रिय है. पुराणों में इस देवी का वर्णन नहीं मिलता, लेकिन लोककथाओं और श्रद्धालुओं की मान्यताओं में संतोषी मां का विशेष स्थान है. एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार संतोषी मां, भगवान गणेश की पुत्री मानी जाती हैं. जब गणेश जी के पुत्र शुभ और लाभ ने उनसे एक बहन की मांग की, तो उन्होंने अपनी शक्ति से संतोषी मां को उत्पन्न किया.
इस कथा का चित्रण 1975 में आई फ़िल्म "जय संतोषी मां" में हुआ था, जो घर-घर में आस्था का केंद्र बन गई और संतोषी मां की पूजा का चलन पूरे भारत में फैल गया.
संतोषी मां की पूजा विशेष रूप से शुक्रवार को की जाती है. श्रद्धालु 16 शुक्रवार तक व्रत रखते हैं और व्रत के दौरान केवल मीठा भोजन ही ग्रहण करते हैं. पूजा में गुड़ और चने का विशेष महत्व होता है. यह माना जाता है कि खट्टा भोजन और झूठी बातें इस व्रत में वर्जित हैं.
संतोषी मां का व्रत श्रद्धा और संयम का प्रतीक है. माना जाता है कि व्रती अगर पूरी श्रद्धा से इस व्रत को करे, तो उसके घर में कभी आर्थिक तंगी नहीं रहती. पारिवारिक कलह, मानसिक अशांति और संतान संबंधी समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है. यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों के बीच लोकप्रिय है, लेकिन पुरुष भी इसे कर सकते हैं.