फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) का पूरा नाम सैम होर्मुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था. वे भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल थे, जिन्हें जीवन भर बहादुरी, उत्कृष्ट रणनीति और तीक्ष्ण नेतृत्व कौशल के लिए जाना गया. मानेकशॉ का जन्म अमृतसर, पंजाब में पारसी परिवार में हुआ था. उन्होंने सबसे पहले शेरवुड कॉलेज (नैनीताल) में पढ़ाई की और फिर भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून के पहले बैच में शामिल हुए.
1939 में बर्मा में सेवा के दौरान उन्हें जापानी सेना से लड़ते हुए सात गोलियां लगीं, किंतु उन्होंने हास्यपूर्ण अंदाज में घटना को 'खच्चर की लात' बताया और मिलिट्री क्रॉस जीतकर देश-विदेश में वीरता का नाम हुआ. घायल होते हुए भी उन्होंने अपनी कंपनी को आगे बढ़ाया, जिसके लिए उन्हें योग्य सम्मान मिला.
उन्होंने 1947, 1962, 1965 और विशेष रूप से 1971 के भारत–पाक युद्धों में अहम भूमिका निभाई. सैम मानेकशॉ 1968 में पद्म भूषण एवं 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किए गए.
जून 1969 में वे भारत के Chief of Army Staff नियुक्त किए गए. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मोनसून के दौरान पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) पर तुरंत आक्रमण करने की मांग पर उन्होंने मोनसून पूरा होने तक इंतजार करने की कूटनीतिक बात कही. दिसंबर 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति में उन्होंने निर्णायक नेतृत्व प्रदान किया, जिस में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो इतिहास में सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पणों में से एक.
वे 15 जनवरी 1973 को सेवानिवृत्त हुए. बाद में उन्होंने कई कंपनियों के बोर्ड में निदेशक के तौर पर योगदान दिया.
27 जून 2008 को वेलिंगटन, तमिलनाडु में 94 वर्ष की उम्र में निमोनिया के कारण उनका निधन हो गया. वेलिंगटन में उनका एक स्टैच्यू बनाया गया. उनके याद में 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
उनकी जीनव पर आधारित फिल्म "सैम बहादुर" में विक्की कौशल ने उनका किरदार निभाया है.
भारतीय सेना और सशस्त्र बलों ने शुक्रवार को फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की 17वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की. 1971 के बांग्लादेश युद्ध में भारत की ऐतिहासिक जीत के रणनीतिक शिल्पकार मानेकशॉ को सेना ने 'कुशल नेतृत्व, साहस और ईमानदारी' का प्रतीक बताया. उनके विचार और जीवन आज भी सैन्य अधिकारियों और आम लोगों को प्रेरित करते हैं.