हिंदू धर्म में अनेक देवताओं की पूजा होती है, लेकिन भगवान भैरव (Bhairav) की आराधना का एक अलग ही रहस्य और महत्त्व है. भैरव न केवल तंत्र साधना और शक्ति मार्ग के अधिष्ठाता हैं, बल्कि वे धर्म की रक्षा, न्याय की स्थापना और अधर्म का विनाश करने वाले महाकाल के रूप हैं। उन्हें शिव का रौद्र और उग्र रूप माना जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने एक बार शिव का अपमान किया. शिव ने क्रोधित होकर अपनी जटाओं से एक तेजस्वी रूप उत्पन्न हुआ जिसे भैरव कहा गया. उन्होंने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया, जो अहंकार का प्रतीक था. इस कारण भैरव को "ब्रह्महत्या" का दोष लगा और वे 'भिक्षाटन मुद्रा' में समस्त लोकों में घूमते रहे, जब तक कि उन्होंने अपने पाप का प्रायश्चित काशी में जाकर नहीं किया.
भैरव के कुल 64 रूपों का वर्णन शास्त्रों में मिलता है, लेकिन आठ मुख्य रूपों की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिन्हें अष्ट भैरव कहते हैं-
असितांग भैरव
चण्ड भैरव
क्रोध भैरव
रुरु भैरव
उन्मत्त भैरव
कपाल भैरव
भीषण भैरव
संहार भैरव
इन सभी रूपों का दर्शन साधक को शक्ति, साहस, निर्णय क्षमता और आत्मज्ञान प्रदान करता है.
भैरव के साथ कुत्ते का विशेष संबंध है. कुत्ता उनके वाहन के रूप में जाना जाता है. कुत्ता सतर्कता, निष्ठा और भूत-प्रेत से रक्षा का प्रतीक माना गया है. इसीलिए भैरव मंदिरों में कुत्तों को भोजन खिलाना शुभ माना जाता है.
भैरव की पूजा से नकारात्मक ऊर्जा, भय, बाधा और शत्रु का नाश होता है. विशेषकर काल भैरव की आराधना तंत्र साधकों के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है. भैरव अष्टमी, जो मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है, भैरव भक्ति का विशेष पर्व है. इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, रात भर जागरण करते हैं और भैरव चालीसा का पाठ करते हैं.
कुछ प्रमुख काल भैरव मंदिरों में - काल भैरव मंदिर, वाराणसी (काशी) – यह सबसे प्राचीन और शक्तिशाली भैरव मंदिरों में से एक है.
भैरव बाबा मंदिर, उज्जैन – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकट स्थित यह मंदिर भी तांत्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध है.
भैरवगढ़ मंदिर, जोधपुर,
दौलतपुर भैरव, बिहार
बटुक भैरव मंदिर, दिल्ली
भैरव केवल एक देवता नहीं, बल्कि चेतना के भीतर छिपी शक्ति को जाग्रत करने का माध्यम हैं. उनकी उपासना भय को साहस में, भ्रम को स्पष्टता में और कमजोरी को शक्ति में परिवर्तित करने का आह्वान है.