Indian Air Force के इंटर्नल कंप्यूटर सिस्टम को हैक करने का प्रयास किया गया है. हैकर्स ने पिछले महीने इसकी कोशिश की थी. हालांकि, उन्हें इस मकसद में सफलता नहीं मिली. वायुसेना का सेंसिटिव डेटा चुराने के लिए हैकर्स ने एक ओपन सोर्स मैलवेयर का इस्तेमाल किया था.
हैकर्स की इस कोशिश में वायुसेना का कोई भी डेटा लीक नहीं हुआ है. Cyble की रिपोर्ट की मानें, तो IAF सिस्टम को टार्गेट करने के लिए Go Stealer मैलवेयर के एक वेरिएंट का इस्तेमाल किया गया है. ये मैलवेयर GitHub पर पब्लिक है. यानी इसे कोई भी डाउनलोड कर सकता है.
IAF के सिस्टम में हैकर्स ने इस मैलवेयर को ZIF फाइल की मदद से डालने की कोशिश की थी. इस फाइल का नाम SU-30_Aircraft_Procurement था. इस फाइल को टार्गेट तक पहुंचाने के लिए फिशिंग मेल का इस्तेमाल किया गया था.
हैकिंग की इस कोशिश में वायुसेना का कोई भी डेटा हैकर्स के हाथ नहीं लगा है. इस पूरी कहानी में मैलवेयर, ZIF फाइल और फिशिंग मेल जैसे कई टर्म का इस्तेमाल हुआ है. आइए जानते हैं किस तरह से हैकर्स मैलवेयर का इस्तेमाल करके किसी को टार्गेट करते हैं और मैलवेयर कैसे आपको नुकसान पहुंचा सकता है.
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मैलवेयर का सीधा अर्थ होता है मैलिसियस सॉफ्टवेयर. इस तरह के सॉफ्टवेयर को कंप्यूटर डिस्टम्स, नेटवर्क या दूसरे डिवाइसेस को नुकसान पहुंचाने के लिए डिजाइन किया जाता है. मैलवेयर शब्द का इस्तेमाल कई तरह के मैलिसियस सॉफ्टवेयर के लिए किया जाता है, जिनका काम इंटरनेट को नुकसान पहुंचाना या अनऑथराइज्ड एक्सेस हासिल करना होता है.
इंटरनेट की दुनिया में वायरस, स्पाईवेयर, रैंसमवेयर, ट्रोजन, ऐडवेयर, बॉटनेट, रूटकिट और दूसरे मैलिसियस सॉफ्टवेयर के लिए मैलवेयर टर्म का इस्तेमाल किया जाता है.
हैकर्स सिर्फ बड़े ऑर्गेनाइजेशन्स को नहीं बल्कि आम लोगों को टार्गेट करने के लिए भी मैलवेयर का इस्तेमाल करते हैं. इनमें से कुछ का मकस्द आपका डेटा चुराना होता है, तो कुछ का काम आपके फोन में छुपकर ऐड्स को प्ले करना होगा. ये कई तरह के काम करते हैं.
किसी मैलवेयर को इंप्लांट करने के दो तरीके होते हैं. एक तो इंटरनेट या किसी दूसरे संचार माध्यम से और दूसरा तरीका है ऑफलाइन. कुछ सिस्टम ऐसे होते हैं, तो ऑफलाइन काम करते हैं. सिस्टम में किसी जानने वाले शख्स के जरिए मैलवेयर इंप्लांट किया जाता है.
वहीं इंटरनेट के जरिए किसी टार्गेट तक पहुंचने के लिए फिशिंग लिंक, ईमेल, SMS और दूसरे संचार माध्यमों को इस्तेमाल होता है. अगर कोई मैलवेयर इंटरनेट से कनेक्टेड सिस्टम में मौजूद है, तो मैलवेयर सारा डेटा अपने पैरेंट डिवाइस तक इंटरनेट की मदद से पहुंचाता है.
वहीं ऑफलाइन डिवाइस में ये मैलवेयर सारे डेटा को चुराकर एक फाइल में स्टोर कर देते हैं. इस फाइल को फिजिकल तरीकों से एक्सेस करना होता है.