क्रिकेट में अंपायर का रोल उतना ही अहम है, जितना किसी अदालत में जज का. अंपायर ही इस खेल की सुप्रीम अथॉरिटी हैं. हम सब शुरुआत से सुनते आए हैं - अंपायर्स डिसिजन इज द लास्ट डिसिजन! खिलाड़ियों को चाहे-अनचाहे अंपायर्स के निर्णय को सिर झुकाकर मानना ही पड़ता है. ज्यादा तीन-तेरह करने पर डिमेरिट पॉइंट्स चुकाना पड़ता है या मैच फीस की आहुति देनी पड़ती है.
मगर अंपायर भी इंसान होते हैं और उनसे भी गलतियां होती रही हैं. क्रिकेट का इतिहास ऐसे कई उदाहरणों से पटा पड़ा है जब अंपायर के फैसलों पर भौहें तनी हैं, उंगलियां उठी हैं. कई बार उनके फैसले से पक्षपात की बू आती रही है. यही कारण है कि ICC ने अंपायरिंग के स्टैंडर्ड को बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाए हैं. नब्बे के दशक में आईसीसी ने ज्यादा से ज्यादा न्यूट्रल अंपायर्स तैनात करने पर जोर देना शुरू किया. गलती की बारंबारता को कम करने के लिए पिछले एक-डेढ़ दशक से DRS जैसी चीज लाई गई. कहना होगा कि इससे चीज़ें सुधरी भी हैं. पर हमेशा ऐसा नहीं था.
13 खिलाड़ियों से होता था मुकाबला
2008 का वो सिडनी टेस्ट कौन ही भूल सकता है, जो घटिया अंपायरिंग की मिसाल ही बन गई थी. भला हो तकनीक का, जिसके चलते हम सबने अपनी आंखों से अंपायरिंग का निम्नतम स्तर देखा. हालांकि इंडियन क्रिकेट टीम काफी पहले से खराब अंपायरिंग की भुक्तभोगी रही है. 70 और 80 के दशक की कई कहानियां हैं, जहां खेल के नतीजों पर बल्ले और गेंद से ज्यादा असर अंपायर के फैसलों ने डाला. मशहूर कॉमेंटेटर विनीत गर्ग ने आजतक रेडियो के पॉडकास्ट 'बल्लाबोल' में ऐसी ही कुछ दिलचस्प यादें साझा कीं. उन्होंने दिग्गज क्रिकेटर और पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर के हवाले से बताया कि वो ज़माना ऐसा था जब भारत को "11 नहीं, 13 खिलाड़ियों" से भिड़ना पड़ता था.
नए अंपायर होते थे टेस्ट
सुनील गावस्कर ने अपनी पहली किताब Sunny Days में लिखा है कि दोनों अंपायर भी विपक्षी टीम के साथ होते थे. यही वो दौर था जब ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों में भारतीय खिलाड़ियों के साथ अंपायरिंग के नाम पर सरासर नाइंसाफी हो रही थी. विनीत गर्ग ने 2005-06 के वेस्टइंडीज दौरे की एक घटना याद करते हुए कहा कि पूरे दिन अनिल कुंबले को एक भी एलबीडब्ल्यू डिसिशन नहीं मिला. दिन का खेल ख़त्म होने के बाद उन्होंने कप्तान राहुल द्रविड़ से इस बाबत चर्चा की तो द्रविड़ ने बड़ा दिल दिखाते हुए अंपायर ब्रायन यार्लिंग का बचाव करते हुए कहा कि क्या किया जाए, वो एक यंग अंपायर हैं. विनीत गर्ग ने उस बात को भी रेखांकित किया कि अक्सर नए अंपायरों को इंडिया के मैचों में आजमाया जाता था और उनकी ग़लतियों का खामियाजा भारतीय टीम को उठाना पड़ता था.
ब्रायन लारा ने की जबरदस्ती
इसी दौरे पर एंटीगा टेस्ट मैच के दौरान ब्रायन लारा ने फील्ड अंपायर पर दबाव डालकर महेंद्र सिंह धोनी को आउट करवाया. लेग स्पिनर डेव मोहम्मद की गेंद पर लगातार तीन छक्के लगाने के बाद धोनी ने एक और हवाई शॉट खेला और बॉउंड्री लाइन पर डेरेन गंगा ने उनका कैच पकड़ लिया. हालांकि, वो कैच क्लीन था या नहीं इसको लेकर फील्डर आश्वस्त नहीं थे. काफी देर तक टीवी रीप्ले देखने पर भी अंपायर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहे थे. ऐसे में वेस्टइंडीज के कप्तान ब्रायन लारा ने कहा कि अगर फील्डर कह रहा है कि उसने कैच लिया है तो उसकी बात मानते हुए धोनी को आउट करार दिया जाना चाहिए. उन्होंने धोनी से भी पवेलियन जाने को कहा. अंततः पर्याप्त सबूत न होने के बावजूद धोनी को आउट होकर जाना पड़ा. पाकिस्तानी अंपायर असद रऊफ ने लारा की शिकायत भी की, लेकिन उन्हें कोई सजा नहीं मिली.
डेविड शेफर्ड ने कान में क्या कहा
विनीत गर्ग बताते हैं कि भारतीय टीम 2003-04 में पाकिस्तान के दौरे पर गई थी. उस दौरान लाहौर एयरपोर्ट पर उनकी मुलाकात मशहूर अंपायर डेविड शेफर्ड से हुई. विनीत गर्ग ने भारत के ख़िलाफ विदेशी अंपायरों के पक्षपातपूर्ण रवैये को लेकर सवाल किया. विनीत ने वेटरन अंपायर से पूछा कि जिस तरह से इतने फैसले भारत के खिलाफ जाते हैं, ऐसा लगता है कि ये किसी योजना के तहत हो रहा हो. डेविड ने हंसते हुए हामी भरी और उनके कान में कहा कि कई बार लोगों को लगता है कि अगर भारत के खिलाफ फैसला देंगे, तो अगला असाइनमेंट पक्का हो जाएगा.
आईपीएल ने सब बदल दिया
विनीत गर्ग ने बताया कि आईपीएल के आने के बाद चीजें काफी हद तक बदल गई हैं. अंपायरों को एहसास हुआ कि अगर वो भारत के साथ इंटरनेशनल मैचों में अन्याय करेंगे तो आईपीएल में उन्हें काम नहीं मिलेगा. इस एक चीज से भारत के प्रति उनका नजरिया और रवैया बदलने लगा. विनीत गर्ग ने कहा कि अंपायर की तरह एक कॉमेंटेटर को भी न्यूट्रल होना चाहिए, मगर वो दौर ऐसा था कि भारत के साथ हो रही नाइंसाफी को भारतीय दृष्टिकोण से उठाना और फैन्स को बताना उनका फर्ज था.
विनीत गर्ग ने खोला क़िस्सों का पिटारा
इसके अलावा विनीत गर्ग ने पॉडकास्ट में क्रिकेट कमेंट्री से जुड़े अपने अनुभव और क़िस्से सुनाए. पहली कॉमेंट्री असाइनमेंट के लिए दिल्ली आने से पहले उनके हाथ-पांव क्यों फूल गए थे? क्रिकेट में नए नए आए सचिन तेंदुलकर को लिफ़्ट में उन्होंने क्या सलाह दी, इंडियन कोच जॉन राइट ने कैसे उनकी फिरकी ली थी, इमरान ख़ान विनीत गर्ग से ख़फ़ा क्यों हो गए थे, पाक़िस्तान में कम्युनिकेशन सिस्टम फ़ेल होने पर उन्होंने कैसे कॉमेंट्री की, उनके कॉमेंट्री करियर के बेस्ट मोमेंट्स कौन से हैं? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए सुनिए पूरा पॉडकास्ट.