नवरात्रि की पूजा के दौरान देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए श्रद्धालु श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं. हालांकि सप्तशती का पाठ करना थोड़ा कठिन हो जाता है और इसमें समय भी लगता है. वहीं कई बार नौकरी पेशा लोग इतनी कठिन पूजा कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं. ऐसे में एक उपाय ऐसा भी है जिसके करने से दुर्गा सप्तशती के पाठ का पूरा लाभ मिलेगा. यह है दुर्गा सप्तशती में ही शामिल सिद्ध कुंजिका स्त्रोत.
श्रीदुर्गा सप्तशती में है यह अध्याय
अगर सारी बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ जरूर करें. श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय भी शामिल है. अगर समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं. नाम के अनुसार ही यह सिद्ध कुंजिका है. जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए.
भगवती आपकी रक्षा करेंगी. सिद्ध कुंजिका की यह महिमा खुद भगवान शंकर ने बताई है. एक श्लोक में वह कहते हैं कि अगर आप सिद्ध कुंजिका का ही पाठ कर लेते हैं तो कवच, अर्गला, कीलक मंत्र और रहस्य कोई भी पाठ अलग से करने की जरूरत नहीं है.
शिवजी ने खुद बताया यह रहस्य
वह कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी जरूरी नहीं है. केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है. इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है. इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है. योग और प्राणायाम है.
श्री_सिद्धकुंजिकास्तोत्रम् *
शिव उवाच-
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्।।१।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।२।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।३।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।४।
अथ मन्त्रः-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।
इति मन्त्रः।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि।।1।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।8।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।9।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।10।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।11।।
।। इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।।