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पूजा सूर्य देव की, व्रत माता के नाम का... कौन हैं छठी मैया, जिनके लिए पानी में उतरकर दिया जाता है अर्घ्य

छठ पूजा चार दिवसीय सूर्य देव की उपासना का पर्व है, जिसमें छठी मैया के रूप में देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है. यह व्रत छठवीं तिथि और छठवें अंक से जुड़ा है, जो पालन-पोषण और सुरक्षा का प्रतीक है. देवी योगमाया, जो श्रीकृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी हैं, छठी मैया के रूप में पूजी जाती हैं.

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छठ माता का नामकरण षष्ठी तिथि के आधार पर हुआ है
छठ माता का नामकरण षष्ठी तिथि के आधार पर हुआ है

छठ पर्व की शुरुआत हो चुकी है. चार दिवसीय सूर्य देव की उपासना का यह व्रत एक देवी के नाम से जाना जाता है, जिन्हें लोकभाषा में छठी मैया कहकर पुकारा जाता है. यहीं से यह सवाल सिर उठाता है कि सूर्य देव की उपासना का व्रत छठी मैया के नाम से क्यों जाना जाता है. यह एक देवी पर आधारित क्यों है?

अंकमाला में छठवां अंक, तिथियों में छठवीं तिथि और मातृका देवियों में छठवीं देवी का संबंध पालन-पोषण से जुड़ा हुआ है. भगवान विष्णु के आज्ञाचक्र में निवास करने वाली देवी योगमाया ही उनकी कल्पना शक्ति हैं जिन्हें छठी इंद्रिय भी कहा जाता है और वह पोषण की इस जिम्मेदारी को बहुत सतर्कता से निभाती हैं. यही देवी योगमाया श्रीकृष्ण के ही जन्म के साथ यशोदा के घर जन्म लेती हैं. यही देवी योगमाया विंध्यवासिनी कहलाती हैं और पूर्वकाल में इन्होंने ही कात्यायन वंश में प्रकट होकर असुरों का संहार किया था, इसलिए कात्यायनी कहलाईं.

देवी कात्यायनी से संबंधित है छठवीं तिथि
नवरात्र के दिनों में छठवां दिन देवी कात्यायनी से ही संबंधित है, इसलिए षष्ठी तिथि की आराध्या देवी कात्यायनी हैं. छठी शब्द सामाजिक संस्कारों में बहुत प्रचलित है. इसका सबसे पहला प्रयोग शिशु जन्म के ही साथ हो जाता है. जैसे ही किसी के घर संतान जन्म लेती है, लोग उसकी छठी की रीत करने की तैयारी में जुट जाते हैं. छठी की रीत यानि कि शिशु के जन्म के छठवें दिन का खास समय. हालांकि कुछ स्थानों पर बालकों की छठी पांच दिनों में ही होती है, जिसे देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय से जोड़कर देखा जाता है. नवरात्र का पांचवा दिन स्कंदमाता का दिन है, जो भगवान कार्तिकेय की माता के स्वरूप में पार्वती ही हैं. 

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गोधुली बेला में होती है देवी की पूजा
इसलिए पंचमी और षष्ठी दोनों ही तिथियां संतानों के जन्म और पालन-पोषण पर आधारित हैं. इन व्याख्याओं का जिक्र पुराण कथाओं, खास तौर पर स्कंद पुराण, नारद पुराण और देवी भागवत पुराण में भी मिलता है. नवरात्र के अवसरों में छठा दिन देवी कात्यायनी को समर्पित है. माता कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था.देवी के पूजन से साधक में सकारात्मक शक्ति का संचार होता है. माता नकारात्मक शक्तियों और दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती हैं. इनका ध्यान गोधुली बेला में करना चाहिए. इसीलिए देवी की पूजा शाम के समय की जाती है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा-दिल्ली और पंजाब तक में आश्विन-कार्तिक महीनों के दौरान संझा माता की पूजा का विधान है.

दीवार पर संझा माता का चित्र गोबर और मिट्टी से उकेर कर बनाया जाता है और फिर संझा सजाकर फिर उनकी आरती की जाती है. सूर्य ढलते हुए देखकर संझा माता के सामने बड़े दीपक जलाए जाते हैं. संझा माता, देवी कात्यायनी का ही रूप हैं. 

देवी कात्यायनी का सूर्यदेव से संबंध

अब इसी परंपरा को छठ से जोड़कर देखिए तो छठ पूजा में भी छठवीं तिथि के दिन (यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी) गोधूलि बेला, अस्ताचल गामी सूर्य को देखते हुए उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. पुराणों में वर्णन है कि देवी कात्यायनी के ही तेज से सूर्य देव का प्रभामंडल है और वह इसी प्रभामंडल में निवास करती हैं. वहीं खुद सूर्यदेव देवी के हाथों में कालचक्र बनकर विराजते हैं. देवी कात्यायनी ने असुरों का वध करके देवताओं को अभय दिया और समस्त मानव जाति को अपना शिशु माना. वह माता की ही तरह हमारी रक्षा, पालन-पोषण किए जाने के कारण अंबा कहलाईं. इस तरह नवरात्र का छठवां दिन देवी को तो समर्पित है ही, इस दिन बच्चों को अभय मिले, इसके भी विशेष प्रयास किए जाते हैं. 

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जन्म के छठवें दिन छठी मनाते हुए इसी देवी से संतान के अभय के लिए विनती की जाती है. खुद माता यशोदा ने अपने लाला कन्हैया की छठी बहुत धूमधाम से की थी और उनकी रक्षा के लिए विनती की थी. इसलिए पौराणिक आधार पर कात्यायनी माता ही छठी माता का स्वरूप हैं. 

देवी कात्यायनी का ही स्वरूप हैं छठी माता
छठ पूजा में जिस छठ मईया के नाम से पूजन होता है, वह यही देवी हैं. उन्होंने बुरी प्रकृति (यानी राक्षसों) का विनाश करके सदाचरण करने वाली प्रकृति को संरक्षित किया था. इसलिए छठ में माता की पूजा प्रकृति के शोधक-रक्षक और पालिका के रूप में होती है. वह बच्चों के लिए ममता मयी पालक-पोषक हैं. यही देवी संतान प्रदान करने वाली हैं और संतान की सुरक्षा करने वाली हैं. देवी की आराधना के जरिए उनसे माताएं यही वरदान मांगती हैं और सूर्य देव से प्रार्थना करती हैं, उग-उग हो सुरुज देव...

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