अपनी नीतियों और चालाकी के बल पर बालक चंद्रगुप्त मौर्य को अखंड भारत की गद्दी पर बैठाने वाले चाणक्य को कुशल अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ माना गया है. उन्होंने अपने नीतिशास्त्र में मनुष्य को मदद पहुंचाने वाली अनेकों नीतियों का बखान किया है. चाणक्य नीति के एक श्लोक में आचार्य उन चीजों के बारे में बताते हैं जिनसे मनुष्य को हमेशा नुकसान ही होता है. ये 6 परिस्थितियां व्यक्ति को अंदर ही अंदर बिना आग के ही जला डालती हैं. आइए जानते हैं इन परिस्थितियों के बारे में...
कुग्रामवासः कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या।
पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥
> आचार्य चाणक्य इस श्लोक में कहते हैं कि दुष्टों के गांव में रहना मनुष्य के लिए खतरनाक है. वो कहते हैं कि बदनाम हो चुके लोगों के गांव में रहने से परोपकारी व्यक्ति अंदर ही अंदर खोखला होता जाता है. साथ ही उसके परिवार पर भी गांव का गलत असर पड़ता है. इसलिए ऐसे गांव में नहीं रहना चाहिए.
> कुलहीन सेवा यानी कुकर्म करने वाले लोगों की सेवा करना धर्म के खिलाफ है. ऐसे लोगों की सेवा छोड़ देनी चाहिए. अगर व्यक्ति अच्छे कुल का न हो तो उसका असर भी सेवक के परिवार पर होता है. वो सेवक का भला नहीं कर सकता.
> चाणक्य के मुताबिक खराब भोजन व्यक्ति को नुकसान ही पहुंचाता है. इसलिए ऐसे खाना को छोड़ देना चाहिए.
चाणक्य नीति: जन्म से पहले ही तय हो जाती हैं मनुष्य के जीवन की ये 5 चीजें> क्रोधमुखी च भार्या यानी पत्नी अगर कर्कश स्वाभाव की हो या उसे बहुत गुस्सा आता हो तो वो पति और परिवार के लिए हानिकारक होती है. ऐसे में पति अंदर ही अंदर जलता रहता है और घर में हमेशा कलेश ही रहता है.
> पुत्र अगर मूर्ख या बुद्धिहीन हो तो पिता और परिवार तबाह हो जाता है. ऐसा पुत्र पूरे परिवार के लिए पीड़ा का कारण बनता है. चाणक्य कहते हैं कि मूर्खों का त्याग कर देना चाहिए, वो न केवल आपके परिवार को बल्कि पूरे खानदान को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
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> श्लोक के अंत में चाणक्य कहते हैं कि किसी भी पिता के लिए अपनी पुत्री को विधवा के रूप में देखना सबसे कष्टदायी होता है. साथ ही उस विधवा के लिए भी आगे का जीवन विकट हो जाता है, जिसमें समाज कई प्रकार के ताने देता है और परेशान करता है. विधवा पुत्री के पिता का जीवन भी कष्ट मे ही बीतता है.