गजानन महाराज को पूरे भारत में प्रथम पूज्य देव का स्थान प्राप्त है. सभी मांगलिक कार्यों में श्री गणेंश का वंदन सर्वप्रथम किया जाता है. श्री गणेश का जन्म भाद्रप्रद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर 12 बजे हुआ था. इन्हें सभी देवताओं का सम्मान व शक्तियां प्राप्त है. श्री गणेश के संबध में कई रोचक और पौराणिक कथाओं का वर्णन मिलता है.
लेकिन कई ऐसे रोचक किस्से गणेश जी के बारे में हैं, जिनसे शायद ही आप परिचित हों. हम आपको यहां कुछ ऐसे ही रहस्यों और रोचक तथ्यों के बारे में बता रहे हैं...
क्या आप जानते है माता पार्वती ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुण्यक नामक उपवास किया था. इसी उपवास के चलते माता पार्वती को श्री गणेश पुत्र रूप में प्राप्त हुए.
शिव महापुराण के अनुसार माता पार्वती को श्रीगणेश का निर्माण करने का विचार उन्हीं की सखी जया और विजया ने दिया था. उनकी सखियों ने उनसे कहा था कि नंदी और सभी गण सिर्फ महादेव की आज्ञा का ही पालन करते हैं, इसलिए आपको भी एक ऐसे गण की रचना करनी चाहिए जो सिर्फ आपकी ही आज्ञा का पालन करें. इस विचार से प्रभावित होकर माता पार्वती ने श्रीगणेश की रचना अपने शरीर के मैल से की.
शिव महापुराण के अनुसार श्रीगणेश को जो दूर्वा चढ़ाई जाती है, वह जड़रहित बार अंगुल लंबी और तीन गांठों वाली होनी चाहिए.
क्या आप जानते हैं गणेश जी के शरीर का रंग कैसा है. शिवपुराण में इस बात का वर्णन किया गया है कि गणेश के शरीर का रंग लाल तथा हरा है. इसमें लाल रंग शक्ति का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इसका आशय है जहां गणेशजी हैं वहां शक्ति और समृद्धि दोनों का वास है.
गणेशजी को पौराणिक पत्रकार भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंनें महाभारत का लेखन किया था. इस ग्रंथ के रचयिता तो वेदव्यास थे परंतु इसे लिखने का दायित्व गणेशजी को दिया गया. इसे लिखने के लिए गणेशजी ने शर्त रखी कि उनकी लेखनी बीच में ना रुके. इसके लिए वेदव्यास ने उनसे कहा कि वे हर श्लोक को समझने के बाद ही लिखे. श्लोक का अर्थ समझने में गणेशजी को थोड़ा समय लगता और उसी दौरान वेदव्यासजी अपने कुछ जरूरी कार्य पूर्ण कर लेते.
भगवान श्रीगणेश के सिर कटने की घटना के पीछे भी एक प्रमुख किस्सा है. ब्रह्हवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार किसी कारणवश भगवान शिव ने क्रोध में आकर सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार कर दिया था. इस प्रहार से सूर्यदेव चेतनाहीन हो गए. सूर्यदेव के पिता कश्यप ने जब यह देखा तो उन्होंने क्रोध में आकर शिवजी को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुम्हारे त्रिशूल से मेरे पुत्र का शरीर नष्ट हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे पुत्र का मस्तक भी कट जाएगा. इसी श्राप के फलस्वरूप भगवान श्रीगणेश के मस्तक कटने की घटना हुई.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब सारे देवी-देवता श्रीगणेश को आशीर्वाद दे रहे थे, तब शनिदेव सिर नीचे किए खड़े थे. पार्वती द्वारा पुछने पर शनिदेव ने कहा कि मेरे द्दारा देखने पर आपके पुत्र का अहित हो सकता है. लेकिन जब माता पार्वती के कहने पर शनिदेव ने बालकर को देखा, उसके कुछ समय बाद ही उनके सिर कटने की घटना घटी.
- शिवमहापुराण के अनुसार श्रीगणेश की दो पत्नियां थीं सिध्दि और बुध्दि. श्रीगणेश के दो पुत्र भी हैं इनके नाम है क्षेत्र और लाभ.
शिवमहापुराण के अनुसार जब भगवान शिव त्रिपुर का नाश करने जा रहे थे, तब आकाशवाणी हुई कि जब तक आप श्रीगणेश का पूजन नहीं करेंगे, तब तक तीनों पुरों का संहार नहीं कर पाएगें. तब भगवान शिव ने भद्रकाली को बुलाकर गजानन का पूजन किया और युद्ध में विजय प्राप्त की.
श्रीगणेश के दांत के पिछे भी एक रहस्य छिपा हुआ है. एक बार परशुराम जब भगवान शिव के दर्शन करने कैलाश पहुंचे तो भगवान अपनी साधना में लीन थे. तब श्रीगणेश ने परशुरामजी को भगवान शिव से मिलने नहीं दिया. इस बात के क्रोधित होकर परशुरामजी ने अपने फरसे से श्रीगणेश पर वार किया जो उन्हें शिव ने दिया था. गणेश उस फरसे के वार को खाली नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उस फरसे का वार अपने दांत पर झेल लिया. इस वार के कारण उनका एक दांत टूट गया था. तभी से उन्हें एकदंत भी कहा जाता है.