कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक चलने वाला चार दिन का पर्व छठ को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है. छठ व्रत में शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है. छठ का व्रत करना इतना आसान नहीं है, इसके लिए व्यक्ति को संयमित होना जरूरी है.
हर व्रत में नियमों और साधना का पालन किया जाता है लेकिन बिहार और झारखंड में विशेष रूप से मनाया जाने वाला छठ व्रत में अनेक कड़े नियमों का पालन करना होता है. छठ व्रती लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं. इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं. चार दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व पर व्रती को लगातार उपवास करना होता है. व्रत रखने वाली महिला को 'परवैतिन' कहा जाता है.
36 घंटे निर्जला रहती हैं स्त्रियां-
चार दिनों का यह व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है. यह व्रत बड़े नियम तथा निष्ठा से किया जाता है. व्रती अपने हाथ से ही सारा काम करती हैं. नहाय-खाय से लेकर सुबह के अर्घ्य तक व्रती पूरे निष्ठा का पालन करती हैं.
खरना पर प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू हो जाता
है. भगवान सूर्य के लिए 36 घंटों का निर्जला व्रत स्त्रियों इसलिए रखती
हैं ताकि उनके सुहाग और बेटे की रक्षा हो सके. वहीं, भगवान सूर्य धन,
धान्य, समृद्धि आदि प्रदान करते हैं.
छठ के पर्व में व्रती को भोजन के साथ ही बिस्तर पर सोने का भी त्याग करना पड़ता है. छठ पर्व में व्रती का एक अलग कमरे में फर्श पर एक कंबल या चादर में सोना इस परंपरा का एक हिस्सा है.
छठ पूजा में व्रती बिना सिलाई किए हुए कपड़े पहनते हैं जब कि इस त्योहार में शामिल होने वाले सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं.
अगर छठ का व्रत एक बार शुरू कर दिया जाए तो छठ पर्व को सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि घर परिवार की अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसे करना न शुरू कर दे.
छठ के चौथे दिन की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन करते हैं.