हर साल जून महीने में गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में लगने वाला अम्बुबाची मेला आस्था, रहस्य और श्रद्धा का अनोखा संगम होता है. मान्यता है कि इस दौरान मां कामाख्या अपने मासिक धर्म के चक्र में होती हैं, इसलिए मंदिर के द्वार तीन दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं. मंदिर खुलते ही भक्तों की लाखों की भीड़ उमड़ पड़ती है, जैसे इस तस्वीर में नजर आ रहा है. भक्त देवी के योनि रूपी पिंडी के दर्शन कर लाल कपड़े में बंधे विशेष प्रसाद को पाने के लिए आतुर होते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि इन दिनों ब्रह्मपुत्र का पानी भी लाल हो जाता है जो देवी की शक्ति का प्रतीक माना जाता है. (PTI)
गुवाहाटी के प्राचीन कामाख्या मंदिर में जैसे ही अम्बुबाची मेले के बाद चार दिन बाद कपाट खुले वहां मौजूद श्रद्धालुओं की आंखों में आस्था छलक उठी. तीन दिन तक मां तपस्या और विश्राम में रहती हैं और फिर चौथे दिन उनका शुद्धिकरण कर मंदिर खोला जाता है. इस तस्वीर में देख सकते हैं भक्तजन जैसे सिर्फ दर्शन के नहीं, मां के सान्निध्य के इंतजार में थे. हाथों में प्रसाद, माथे पर लाल चंदन और आंखों में शक्ति की तलाश लिए हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना में लीन नजर आए.(PTI)
गुवाहाटी के कामाख्या धाम में इन दिनों सिर्फ कदमों की नहीं, आस्था की आहटें सुनाई दे रही हैं. अंबुबाची मेले के दौरान मां के दर्शन के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां जुटे हैं. मंदिर की ओर बढ़ती ये भीड़ केवल भीड़ नहीं, ये हर किसी की मनोकामना, श्रद्धा और शक्ति के प्रति समर्पण का जुलूस है. हर कोई बस एक झलक चाहता है उस शक्ति की, जो जीवन देने वाली भी है और उसे दिशा देने वाली भी. मंदिर परिसर में गूंजते मंत्र, लाल कपड़ों की बारीक कतारें और भाव-विभोर चेहरे, ये सब मिलकर अंबुबाची को एक अनुभव बना देते हैं, महज उत्सव नहीं. (PTI)
गुवाहाटी में वार्षिक अम्बुबाची मेले के अंतिम दिन लोग तस्वीर में कामाख्या मंदिर के दर्शन करते हुए दिख रहे हैं. गुवाहाटी की नीलांचल पहाड़ियों पर स्थित मां कामाख्या का दरबार और वो पल जब अम्बुबाची मेले का अंतिम दिन होता है, लेकिन श्रद्धा का उत्साह अब भी चरम पर होता है. तस्वीर में नजर आते ये भक्त जैसे जान गए हों कि अब मां के दरबार से विदा लेने का वक्त है. हाथों में प्रसाद, मन में ऊर्जा और आंखों में सुकून...ये दर्शन सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं आत्मा की यात्रा हैं. चार दिन तक चले इस शक्ति पर्व का समापन जितना शांत होता है, उतना ही गहरा प्रभाव छोड़ जाता है हर श्रद्धालु के भीतर. (PTI)
गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में चार दिन की प्रतीक्षा के बाद जैसे ही कपाट खुले, भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. तस्वीर में कतारबद्ध दीयों की रोशनी में पूजा-अर्चना में लीन महिला श्रद्धालु नजर आ रहे हैं. माथे पर माता रानी की लाल चुनर बांधे, आंखों में भक्ति की चमक और हाथों में श्रद्धा लिए हर कोई मां कामाख्या के साक्षात दर्शन के लिए आतुर दिख रहा है. ये सिर्फ दर्शन की भीड़ नहीं, एक भावनात्मक जुड़ाव है शक्ति, स्त्रीत्व और प्रकृति के रहस्यों से. (PTI)
गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर में ‘अंबुबाची मेला’ के दौरान यह तस्वीर एक अनोखे क्षण को पकड़ती है, जब एक महिला भक्त शंखनाद करती हुई मां के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित कर रही है. शंख की गूंज जैसे मंदिर परिसर में शक्ति का कंपन फैला देती है और उसी के साथ हर श्रद्धालु का मन भी जाग उठता है. आंखों में भक्ति और हाथों में शंख का ये दृश्य अंबुबाची मेले की आत्मा को बयान करता है. (PTI)
‘अम्बुबाची’ महोत्सव के दौरान कामाख्या मंदिर परिसर में यह तस्वीर एक गहरे निजी क्षण को कैद करती है. इसमें एक युवा महिला हाथ में अगरबत्ती और मोमबत्ती लेकर मां से अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना कर रही है. तेज धूप, भीड़ और शोर के बीच भी उसका ध्यान सिर्फ अपने और देवी के बीच के उस मौन संवाद पर है. अगरबत्ती की धीमी लहर और मोमबत्ती की लौ जैसे उसकी प्रार्थना को आसमान तक पहुंचाने का रास्ता बनाती हैं. ये तस्वीर बताती है कि अम्बुबाची सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हर श्रद्धालु के भीतर चल रही एक आध्यात्मिक यात्रा है. (PTI)
अम्बुबाची’ उत्सव के दौरान कामाख्या मंदिर की दीवारों पर महिलाएं धार्मिक प्रतीक स्वस्तिक बनाती नजर आती हैं. यह सिर्फ रंगों की कलाकारी नहीं बल्कि शक्ति की पुकार है. स्वास्तिक, जो सौभाग्य, समृद्धि और शुभ की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. दीवार पर उसे उभारते हुए इन भक्त महिलाओं की आंखों में पूरी श्रद्धा झलकती है. हर रेखा, हर रंग जैसे मां कामाख्या को अर्पित एक मौन मंत्र हो. इस तस्वीर में सजीव होती है परंपरा और आस्था की वो विरासत, जो पीढ़ियों से चली आ रही है और हर वर्ष इस पर्व में फिर से जी उठी है. (PTI)
चार दिवसीय अम्बुबाची मेले के बाद खुले कामाख्या मंदिर में पूजा-अर्चना करती महिला भक्त की नजरों की तरफ देखिए. श्रद्धा की लौ जलाए इस तस्वीर में महिला भक्त पूजा-अर्चना में लीन नजर आ रही हैं जैसे मां के सामने अपने मन की हर बात रख रही हों. सिंदूर, चुनरी, दीपक और श्रद्धा से झुके सिर... सब मिलकर उस भाव का दृश्य बना रहे हैं जो शब्दों से नहीं, केवल आस्थावान के आत्म बोध से समझा जा सकता है. (PTI)
कामाख्या मंदिर परिसर, ‘अम्बुबाची मेले’ की तैयारियों से गूंज रहा है. इसी माहौल में एक बेहद अद्भुत दृश्य सामने आता है. जब एक महिला भक्त जूना अखाड़े की ट्रांसजेंडर साध्वी से श्रद्धा और सम्मान के साथ आशीर्वाद लेती है. ये तस्वीर सिर्फ एक आशीर्वाद का पल नहीं, बल्कि समाज की सीमाओं से परे जाकर आत्मा से आत्मा के जुड़ाव का प्रतीक है. जहां एक ओर अंबुबाची मेला स्त्रीत्व और प्रकृति की शक्ति का उत्सव है, वहीं यह दृश्य दर्शाता है कि सच्ची भक्ति में न कोई लिंग होता है, न भेद. सिर्फ समर्पण होता है. मंदिर की पवित्र भूमि पर ये दो महिलाएं एक श्रद्धालु, एक साध्वी जैसे मां कामाख्या की दो अलग-अलग लेकिन बराबर शक्तियों का रूप लगती हैं. (PTI)
गुवाहाटी के कामाख्या धाम में हर साल लगने वाला अम्बुबाची मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि देशभर से उमड़ी श्रद्धा और साधना की संगम स्थली है. तस्वीर में नजर आते ये हजारों श्रद्धालु और साधु, जो उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक से यहां पहुंचे हैं. सबका एक ही उद्देश्य है: मां कामाख्या की शक्ति से जुड़ना. साधुओं की जटाएं, भक्तों की लाल चुनरियां, घंटियों की गूंज और मंत्रों की ध्वनि ये सब मिलकर बना देते हैं एक ऐसा वातावरण, जो निराकार को भी साकार कर दे. (PTI)
कामाख्या मंदिर के प्रांगण में, जैसे ही साधु ने पूरे जोश से तुरही बजाई, अम्बुबाची मेले की आधिकारिक शुरुआत की घोषणा हो गई. यह दृश्य सिर्फ एक धार्मिक उद्घोष नहीं, बल्कि सदियों पुरानी परंपरा का जीवंत प्रमाण है जहां ध्वनि के माध्यम से शक्ति को आमंत्रित किया जाता है. साधु की आंखों में तप, चेहरे पर तेज और हाथों में उठी तुरही ये पल गवाही देता है कि अम्बुबाची सिर्फ एक मेला नहीं, शक्ति की पुकार है, जो हर वर्ष इसी तरह अनुगूंजित होती है. (PTI)
असम की लहरों पर, एक विशाल नाव में सवार सैकड़ों श्रद्धालु मानो मां कामाख्या के दर्शन की लालसा ही उन्हें जल के सहारे भी जोड़ लाती है.तस्वीर में दिख रहा यह भक्तों का जमावड़ा, न केवल एक धार्मिक उत्साह है बल्कि एक चलती-फिरती यात्रा है विश्वास की, जहां मंज़िल एक ही है मां के चरणों तक पहुंचना. भीड़ के बावजूद चेहरों पर है सुकून और नाव के हर हिचकोले में छुपी है एक उम्मीद कि इस बार मां जरूर मनोकामना सुनेंगी. (PTI)