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देवी कुष्मांडा की पूजा आज... इस एक गलती से खंडित हो जाएगा व्रत, लगेगा गर्भनाश जैसा दोष

शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है, जो सुख, समृद्धि, बुद्धि और स्वास्थ्य में वृद्धि करती हैं. देवी के प्रति श्रद्धा और पूजा विधि का सही पालन आवश्यक है.

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नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है

मां दुर्गा की आराधना का विशेष पर्व शारदीय नवरात्रि जारी है. नौ देवियों के इस अनुष्ठान में आज चौथी देवी कुष्मांडा का दिन है. नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा करने से सुख-समृद्धि के साथ ताकत और बुद्धि में भी वृद्धि होती है. इसके अलावा व्यक्ति के जीवन से सभी रोग,कष्ट और शोक समाप्त हो जाते हैं. देवी कुष्मांडा शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों को अभय और मनचाहा वर देनी वाली हैं, लेकिन ये ध्यान रखना है कि आज उनकी पूजा के दिन भूल से भी ये एक बड़ी गलती न हो जाए. ऐसा हुआ तो आपका व्रत खंडित हो जाएगा और देवी भी नाराज हो सकती हैं. 

देवी भागवत पुराण में दर्ज है वजह
देवी भागवत पुराण में देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा वाली माता बताया गया है. जिनमें देवी कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जप माला धारण किए हुए हैं. मां सिंह की सवारी करती हैं. उनका यह स्वरूप शक्ति, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है. कहीं-कहीं देवी को चार हाथ से युक्त भी दिखाते हैं जो उनके क्रम में चौथे होने का प्रतीक है, साथ ही जीवन के चार लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को भी सामने रखता है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. 

सूर्यलोक में है देवी का निवास
देवी कु्ष्मांडा ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं. इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है. वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है. इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दिव्यमान हैं. इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं. ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में जो तेज समाया हुआ है वह इन्हीं की छाया है.

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गर्भ में पल रही संतान की रक्षिका हैं देवी कुष्मांडा
सूर्य का एक नाम हिरण्यगर्भ है. ऋग्वेद में उन्हें इसी नाम से पुकारा गया है. हिरण्यगर्भ का अर्थ है, सुनहले प्रकाश वाला गर्भ, या वह आवरण जिसके भीतर सुनहला प्रकाश छिपा हुआ है. वह आवरण ही कुष्मांडा है. वह गर्भ भी देवी का ही है, जिसमें सारे संसार की चेतना गर्भस्थ शिशु के रूप में मौजूद रहती है. संसार की सभी माताएं असल में देवी कुष्मांडा का ही रूप हैं. जो भी सृजन का कार्य हो रहा है, वह भी देवी कुष्मांडा के कारण ही हो रहा है. इस संसार का सारा गर्भ देवी के रूप में है. देवी ही गर्भ में पल रही संतान की रक्षिका हैं. वह जन्म के बाद भी हर नवजात का ध्यान रखती हैं, जिन्हें कहीं-कहीं बैमाता तो कहीं छठी तो कहीं कृत्तिका कहा जाता है, लेकिन असल में ये सभी देवी कुष्मांडा के ही अलग-अलग स्वरूप के नाम हैं.

जल्द प्रसन्न हो जाती हैं माता
जब भी किसी कार्य की सिद्धि के लिए हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और उस निर्माण को ठीक से पूरा हो जाने की मनोकामना करते हैं तो वह मनोकामना देवी ही पूरा करती हैं. देवी ही पहली शुरुआत हैं. इसलिए देवी की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. मां कुष्मांडा बहुत जल्द ही सेवा से प्रसन्न होने वाली हैं, अगर मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे बहुत आसानी से परम पद की प्राप्ति हो सकती है.

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...लेकिन एक गलती से बिगड़ सकती है बात

बस आज के दिन साधक को खासकर महिलाओं के ध्यान रखने की जरूरत है कि भूल से भी एक गलती न हो जाए, वरना उनका व्रत खंडित हो सकता है. महिलाओं को ध्यान रखना है कि वह आज के दिन अपने हाथ से चाकू लेकर एक भरा-पूरा गोल कद्दू न काटें. इसके साथ ही देवी कुष्मांडा के ही नाम का एक और कद्दू जैसा फल होता है. स्थानीय स्तर पर इसे भतुआ (पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ गांव) कहते हैं, कुछ लोग इसे पेठा का फल भी कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस कुष्मांडा फल से ही पेठा नामकी मिठाई बनती है, जिसका भोग देवी को प्रिय भी है.  

कद्दू-पपीता, नारियल से देवी का कनेक्शन
असल में कद्दू, पपीता, पेठा, नारियल, खरबूजा, तरबूज और गोल वाली लौकी इस तरह के सभी फल गर्भ के स्वरूप माने जाते हैं. इस स्वरूप के कारण ही इनमें कुष्मांडा का वास होता है. ऐसे में महिलाओं को वैसे भी इन सभी फलों को खुद से नहीं काटना चाहिए. व्रत वाले दिन, देवी पूजा के इस समय में तो यह कार्य बिल्कुल नहीं करना है. इसके पीछे का कॉन्सेप्ट ये है कि एक मां खुद अपने हाथ से 'गर्भ नहीं उजाड़' सकती. 

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इसलिए इन फलों को काटते या फोड़ते समय किसी कुंआरी कन्या से या फिर घर के किसी पुरुष सदस्य से इन फलों पर एक चीरा लगवाना चाहिए. या फिर दुकान से लाते समय है, दुकानदार से ही इसके टुकड़े करवा लेने चाहिए, या फिर चीरा लगवा देना चाहिए. 

अव्वल तो नवरात्रि पर्व के चौथे दिन इनमें से कोई भी फल या सब्जी नहीं खानी चाहिए. और अगर बाकी किसी अन्य दिन खाना हो या सब्जी बनाना हो तो वही चीरा लगवाने वाला तरीका अपनाएं. इस तरह आपका देवी कुष्मांडा के व्रत का अनुष्ठान पूरा होगा और कोई दोष भी नहीं लगेगा.

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