श्रीदुर्गा सप्तशती में एक श्लोक आता है. "सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते' इसका अर्थ है हे देवी, आप सभी स्वरूपों को धारण करने वाली हैं, सभी की स्वामिनी हैं और सभी शक्तियों से युक्त हैं. आप हम सभी को सभी भयों से बचाएं, हे दुर्गे देवी! आपको नमस्कार है.' सप्तशती का यह मंत्र देवी की मौजूदगी और उनकी व्पाकता को बताता है. यह बताता है कि कैसे ये पूरा संसार उनमें ही समाया हुआ है और हर तरफ उनका कोई न कोई रूप मौजूद है.
भारत में तो कई तीर्थस्थान हैं मौजूद हैं, लेकिन देवी की मौजूदगी सीमाओं से परे भी है. प्राचीन काल से बंगाल क्षेत्र शाक्त परंपरा का अनुयायी रहा है. यह शक्ति की देवी दुर्गा की आराधना का प्राचीन केंद्र है. इस केंद्र का फैलाव ओडिशा, बिहार, असम तक तो था ही आज नक्शे पर हम जिसे बांग्लादेश कहते हैं वह भी इसी परंपरा का पालक और इसी शक्ति की उपासना का अनुयायी रहा है. यही वजह है कि भले ही बांग्लादेश आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान रहा और 1971 में स्वतंत्र होकर ग्लोब पर एक नया देश बनकर उभरा, भले ही यहां मुस्लिम बहुलता हो, लेकिन बांग्लादेश में देवी भगवती के सात शक्तिपीठ मौजूद हैं.
दुर्गासप्तशती में देवी के जो 108 नाम बताए गए हैं, यह शक्ति पीठ उन्हीं नामों पर स्थापित हैं. यहां सुगंधा शक्तिपीठ, जसोरेश्वरी शक्तिपीठ, भवानी शक्तिपीठ, जयंती शक्तिपीठ, महालक्ष्मी शक्तिपीठ, अपर्णा शक्तिपीठ और स्त्रावनी शक्तिपीठ हैं.
शक्तिपीठों की आध्यात्मिक यात्रा सनातन परंपरा में बहुत अहम है. यह पीठ हिंदुओं को देवी शक्ति की दिव्य स्त्री ऊर्जा से जुड़ने का मौका देते हैं. ये पवित्र स्थल हिंदू पौराणिक कथाओं में गहरा महत्व रखते हैं. मान्यता है कि सभी शक्तिपीठ देवी सती के शरीर के विभिन्न अंगों से जुड़े हुए हैं जो एक समय भगवान शिव की पत्नी थीं. बांग्लादेश में इन शक्तिपीठों की मौजूदगी का होना वहां शाक्त परंपरा के गहरे छाप का प्रमाण है.
जेसोरेश्वरी शक्तिपीठ - सतखिरा
जेसोरेश्वरी शक्तिपीठ जिसे शुद्ध रूप में ज्येष्ठोरेस्वरी काली मंदिर कहा जाता है. यह बांग्लादेश में प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो देवी काली को समर्पित है. यह मंदिर सतखिरा के श्यामनगर उपजिले के एक गांव ईश्वरपुर में मौजूद है और 51 शक्तिपीठों में से एक है, मान्यता है कि यहां देवी सती की हथेलियां गिरी थीं. जेसोरेस्वरी" नाम का अर्थ है "जेशोर की देवी". प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में इस मंदिर का दौरा किया था और मां की मूर्ति के लिए एक सोने का मुकुट भेंट किया था, लेकिन बाद में 2024 के बांग्लादेश में हिंदू-विरोधी हिंसा के दौरान यह चोरी हो गया.

एक किंवदंती है कि यहां किसी समय में एक महाराजा प्रतापादित्य का शासन था. एक दिन उनके सेनापति ने किस सैन्य अभियान के दौरान झाड़ियों से निकलती हुई एक चमकदार रोशनी देखी. उन्होंने रोशनी का सोर्स खोजा तो घनी झाड़ियों के बीच मानव हथेली के आकार में तराशे गए पत्थर का टुकड़ा मिला. बाद में, इसी स्थान पर राजा प्रतापादित्य ने काली पूजा शुरू की और पीठ की स्थापना की. आधुनिक मंदिर 400 साल से ज्यादा पुराना बताया जाता है, जबकि साल 2021 में इसका सौंदर्यीकरण किया गया था.
सुगंधा शक्तिपीठ - शिकारपुर
सुगंधा शक्तिपीठ बांग्लादेश के शिकारपुर में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो देवी सुनंदा या उग्रतारा को समर्पित है. यह शक्तिपीठ सुनंदा नदी के तट पर स्थित है और मान्यता है कि यहां सती की नाक गिरी थी. यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और हिंदू भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. यहां के रक्षक भैरव को त्रियंबक के नाम से जाना जाता है. मंदिर के प्राचीन परिसर में प्रवेश करना समय में पीछे लौटने जैसा है, क्योंकि यह कथाओं से भरे इतिहास का साक्षी है.
चट्टल मां भवानी शक्तिपीठ - सीताकुंडा
चट्टल मां भवानी शक्तिपीठ बांग्लादेश के चटगांव (चिट्टागोंग) जिले में स्थित है, और यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह शक्तिपीठ सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रनाथ पर्वत के शिखर पर है, यहां मान्यता है कि पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती की ठुड्डी का हिस्सा गिरा था. यहां माता सती को 'भवानी' के रूप में पूजा जाता है और उनके भैरव 'चंद्रशेखर' हैं. चंद्रनाथ हिल की ऊंचाई पर बसा हुआ चट्टल शक्तिपीठ अपार आध्यात्मिक महत्व का पवित्र स्थल है. भक्त चट्टल शक्तिपीठ को भवानी शक्तिपीठ के नाम से भी संबोधित करते हैं. भैरव का मंदिर चंद्रनाथ हिल की चोटी पर स्थित है.
जयंती शक्तिपीठ - कनाईघाट
जयंती शक्तिपीठ (कनाईघाट, सिलहट) एक ऐसा पवित्र स्थल है, जहाँ देवी सती की बाईं जांघ गिरी थी, और यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. इसका दूसरा स्थान भारत के मेघालय राज्य में स्थित नर्तियांग दुर्गा मंदिर है. बांग्लादेश के सिलहट जिले के कनाईघाट के बौरबाग गांव में यह मंदिर स्थित है. पवित्र जयंती शक्ति पीठ शांतिपूर्ण बाउरबाग गांव में स्थित है, जो बांग्लादेश के सिलहट के विभागीय मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर कनाईघाट उपजिला में बसा है, इसे मूल रूप से श्रीहट्टा के नाम से जाना जाता था. लगभग 5.90 एकड़ भूमि में फैला, बौरभाग का मंदिर सदियों की भक्ति और श्रद्धा का प्रमाण है, मंदिर का प्राचीन विरासत को संरक्षण की जरूरत है.
महालक्ष्मी शक्तिपीठ - सिलहट
महालक्ष्मी शक्तिपीठ बांग्लादेश के सिलहट जिले में, गोटाटिकर के पास, दक्षिण सुरमा के जोइनपुर गांव में स्थित है. इसे श्रीशैल महालक्ष्मी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है, जहां देवी महालक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है. देवी महालक्ष्मी की पूजा भैरव के रूप संभरानंद के साथ की जाती है. माना जाता है कि यहां देवी की गर्दन का हिस्सा गिरा था.
स्रवानी शक्तिपीठ - कुमीरग्राम
बांग्लादेश में कुमारी कुंड शक्तिपीठ चटगांव जिले के कुमीरा रेलवे स्टेशन के पास स्थित है. मानते हैं कि यहां देवी सती की रीढ़ की हड्डी गिरी थी. यह स्थान गुप्त शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. यहां देवी को सर्वाणी, श्रावणी या सत्या देवी के रूप में पूजा जाता है और यहां के भैरव "निमिषवैभव" माने जाते हैं. श्री सर्वाणी करुणाकुमारी मंदिर का संबंध तंद्र चूड़ामणि से भी है. संस्कृत में 'कुमारी' का अर्थ अविवाहित कन्या होता है, जो समय के साथ 'कुमीरा' में परिवर्तित हो गया हैय
अपर्णा शक्ति पीठ - करतोया - शेरपुर
अपर्णा शक्ति पीठ बांग्लादेश के शेरपुर जिले के भवानीपुर गांव में करतोया नदी के तट पर स्थित है. यहां देवी अपर्णा (जिन्हें देवी भवानी भी कहते हैं) की पूजा की जाती है और इनके भैरव वामन हैं. कुछ मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर देवी सती का बायां पैर या पैर का आभूषण गिरा था. शेरपुर शहर से लगभग 28 किलोमीटर दूर, यह मंदिर अपने प्राकृतिक परिवेश के लिए भी जाना जाता है.