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राजधानी दिल्ली का कालका देवी मंदिर... जहां से जोत लाकर जलती है घर-घर में अखंड ज्योति

दिल्ली-एनसीआर की खास परंपरा में श्रद्धालु नवरात्रि से दो दिन पहले कालका देवी मंदिर से ज्योति लेकर पैदल यात्रा करते हैं. यह ज्योति घरों में अखंड ज्योति के रूप में जलाकर नौ दिन तक नवरात्रि पूजन किया जाता है. मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन माना जाता है और यह पांडवों से जुड़ा हुआ है.

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दिल्ली स्थित कालकजी मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन बताया जाता है
दिल्ली स्थित कालकजी मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन बताया जाता है

भोर होने वाली है, रात अपना सारा अंधेरा समेटकर बीतने को है, इसलिए इस वक्त न उजाला ही है और न ही पूरी तरह अंधकार. इसी अंधेर-उजाले के इसी मेल-जोल वाले समय में सड़कों पर नजर जाती है तो कुछ दीपक हिलते-डुलते टिमटिमाते, हवा के जोर से बुझते हुए से लगते और फिर स्थिर होकर एक लय में जलते से दिखते हैं. इसीके साथ नजर आता है एक पूरा जत्था, जो थका-हारा सा दिख रहा है, उनकी चाल में थकावट साफ नजर आ रही है, फिर भी वह बीच-बीच में जोर से बोल पड़ते हैं 'कलिका माता की... जत्थे के बाकी लोग कहते हैं जय'... दु्र्गा माता की... जय. जय भवानी... और इसी तरह जयकारे लगाते हुए ये लोग अपने-अपने घरों की ओर बढ़े जा रहे हैं.

ये जत्था आस्था का है, भावना का है, शुद्ध भक्ति से अलग और तेजी से संक्रमण की तरह फैल रही डीजे वाली संस्कृति के विपरीत. कुछ शांत लोगों का जत्था जो असल में श्रद्धालु होने का धर्म निभा रहे हैं और चुप-चाप अपना व्रत-संकल्प लिए रास्ते के एक ओर से चले जा रहे हैं. इनका संकल्प एक है. इन टिमटिमाते दीपकों को इसी तरह जलते हुए घरों तक ले जाना, जहां प्रतीक्षा कर रही है वह अखंड ज्योति, जो इसी दीपक की लौ से जलाई जाएगी और पूरे नौ दिन तक जलती रहेगी. इस तरह नवरात्रि का पूजन यहां किया जाएगा.

दिल्ली-एनसीआर की खास परंपरा
यह दिल्ली-एनसीआर की एक खास परंपरा है. जिसमें श्रद्धालु दो दिन पहले से ही एक जत्थे के रूप में पैदल यात्रा करते हुए निकलते हैं. यह यात्रा राजधानी दिल्ली के कालका जी मंदिर तक की होती है. इसके लिए श्रद्धालु अमावस्या को ही मंदिर प्रांगण में जुटने लगते हैं. कालका मंदिर में नवरात्रि की सुबह जब चार बजे ब्रह्म मुहूर्त में मंगला आरती होती है और अखंड ज्योति जलती है, तब श्रद्धालु इसी अखंड ज्योति से ज्योति लेकर अपनी ज्योति जगाते हैं और इसे लेकर पैदल ही अपने घर ले जाते हैं. यहां इसी ज्योति से घरों में नवरात्रि पूजन की अखंड ज्योति जलाई जाती है और कलश स्थापना करते हुए नौ दिन तक देवी की प्रतिष्ठा की जाती है. 

मंदिर से ज्योति लाकर अखंड ज्योति प्रज्वलित करने की पुरानी परंपरा
हालांकि यह परंपरा, सिर्फ दिल्ली-एनसीआर की है, ऐसा नहीं है, क्योंकि कई स्थानों पर मंदिर से ज्योत लाकर घर में अखंड ज्योति जलाने की परंपरा रही है. सहारनपुर में भी शाकंभरी शक्ति पीठ से ज्योति लाकर अखंड ज्योति जलाई जाती है. इसी तरह हिमाचल के चिंतपूर्णी धाम से भी लोग नवरात्र में ज्योति लेकर आते हैं. ज्वाला जी से भी ज्योति लाई जाती है. दिल्ली में ही झंडेवालान देवी मंदिर और छतरपुर स्थिति कात्यायनी मंदिर से ज्योत लाकर अपने घरों में अखंड ज्योति जलाने की परंपरा है, लेकिन सबसे प्राचीन परंपरा कालका देवी मंदिर की है, क्योंकि इस मंदिर की मान्यता महाभारत कालीन है और पांडवों से जुड़ी है.

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वहीं मंदिर का मौजूद इतिहास 3000 साल तक पुराना बताया जाता है. सत्रहवीं सदी में इसकी जीर्णोद्धार का जिक्र मंदिर प्रांगण से ही मिलता है और उससे भी पहले एक मठी मंदिर के रूप में यहां की मान्यता के बारे में जानकारी मिलती है, जहां स्थानीय लोग बताते हैं कि घने जंगलों के बीच, अरावली की गोद में पहाड़ी की ऊंचाई पर एक देवी स्थान की मौजूदगी थी. 

मंदिर का प्राचीन इतिहास
मंदिर के वर्तमान भवन के सबसे पुराने हिस्से 1764 ईस्वी से पहले के नहीं माने जाते, जिन्हें मराठों द्वारा बनवाया गया था. साल 1816 में अकबर द्वितीय के पेश्कार मिर्जा राजा किदार नाथ ने इसमें और विस्तार किया और मंदिर के आसपास के क्षेत्र को भी घेर कर एक बड़ा परिसर बनवाया. बीसवीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में दिल्ली के हिंदू व्यापारियों- बैंकरों और धनी-मानी लोगों ने मंदिर के आसपास बड़ी संख्या में धर्मशालाएं बनवाईं और इस तरह मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती गई.

पांडवों ने की थी देवी कालिका की पूजा
मंदिर को महाभारत काल का मानने को लेकर एक वजह यह भी कि इस कथा में जिक्र आता है, भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध से पहले पांडवों से देवी की आरधना करने के लिए कहा था. महाभारत में दर्ज है कि अर्जुन ने खुद स्त्रोत रचकर देवी की आराधना की थी और इसके प्रभाव से देवी भयंकर कालिका अवतार में प्रकट हो कर आईं थीं. उन्होंने अर्जुन को विजय का आशीर्वाद भी दिया था. युधिष्ठिर ने भी द्रौपदी के साथ देवी की पूजा की थी. पांडवों ने विजय के बाद देवी का आभार जताने के लिए आराधना की थी और उन्हें मनोकामना पूर्ति करने वाली कहा था. इसलिए देवी के पीठ को जयंती पीठ (विजय देने वाला स्थान) और मनोकामना सिद्ध पीठ कहा जाता है. 

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Delhi Kalka Ji Mandir
राजधानी दिल्ली स्थित कालकाजी मंदिर से ज्योति ले आने की पुरानी मान्यता है

सूर्यकुट्टा पीठ और जयंती पीठ कहलाता है मंदिर
घने जंगल के बीच पर्वत शिखर पर सूर्य की किरणों से अभिषेक होने के कारण देवी का निवास स्थान सूर्यकुट्टा पीठ भी कहलाता था, इसलिए देवी को सूर्यकुट्टा वासिनी कहते हैं. देवी यहां शिलारूप में विराजमान हैं जो कि स्वयंभू हैं. दर्शन के दौरान उनका भव्य शृंगार देखा जा सकता है, जिसमें देवी के भव्य नेत्र दिखाई देते हैं. चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि मंदिर परिसर में मनाया जाने वाला एक बड़ा उत्सव है, जब देवी को दूध से अभिषेक कराया जाता है.

इसके साथ ही यह स्थान लोक आस्था का प्रतीक भी है, जहां बच्चों के मुंडन संस्कार कराए जाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चों का जीवन सफल होता है और रोग, नजर, ऊपरी हवा आदि से उनका बचाव होता है. मंदिर प्रांगण की भभूति से बच्चों के माथे पर तिलक किया जाता है, जिसे माता का प्रत्यक्ष आशीर्वाद मानते हैं. नवरात्र के पहले दिन सुबह ही देवी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है, जहां से लोग आरती दर्शन कर ज्योति लेकर जाते हैं और अपने घरों में अखंड ज्योति जलाते हैं.

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