अक्सर होता यह है कि जो भी हमारी आलोचना करता है, हम उसे बिल्कुल पसंद नहीं करते, उसके आस-पास नहीं रहना चाहते. जबकि हमारी आलोचना हमें अक्सर अपने अंदर झांकने का मौका देता है. हमारा आलोचक ही कई बार हमारा सही मित्र होता है, जिसे हमारे सही गलत से मतलब होता है, सही गलत से फर्क पड़ता है. वह हमें टोकता है ताकि हम सही रास्ते पर चल पाएं. इसलिए आलोचना से डरिए मत.