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अयोध्या-अरुणाचल पर पाकिस्‍तान-चीन के ऐतराज को 'बलूचिस्तान-ताइवान' से समझाना जरूरी

भारत अब चार दशक पुराना भारत नहीं है. अगर हम अपने देश को नया भारत कहते हैं तो हमें उसी अंदाज में चीन और पाकिस्तान को जवाब देना सीखना होगा. हम आज भी चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ आक्रामक तरीके से बयानबाजी क्यों नहीं करते?

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श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर धर्मध्वजा से पाकिस्तान को मिर्ची लगी (Photo: ITG)
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर धर्मध्वजा से पाकिस्तान को मिर्ची लगी (Photo: ITG)

अगर ये सही है कि भारत आज से 5 दशक पहले वाला भारत नहीं है तो देश को अब अपने पड़ोसियों को जवाब देना भी सीखना होगा. भारत आज दुनिया की टॉप इकॉनमी में शामिल है. दर्जनों देशों को हम हथियार निर्यात करते हैं, हम आज किसी के सामने अन्न के लिए हाथ नहीं फैलाते हैं. हमारे पास सरप्लस अनाज है. हमारी ग्रोथ रेट से बड़े बड़े सूरमा शरमा रहे हैं.तो क्या हमें अपने दुश्मन देशों से बातचीत में वही घिसा पिटा तरीका नहीं बदलना चाहिए. 

एक दौर होता था जब हम इससे आगे नहीं बढकर नहीं बोल पाते थे कि कोई भी हमारे आंतरिक मामले में हस्तक्षेप न करें, क्योंकि हम किसी के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करते. आज भी हम वहीं खड़े हैं. पाकिस्तान के रामजन्मभूमि पर अनर्गल बयान पर भारत ने बयान दिया कि हमें उपदेश न दे पाकिस्तान, अपना मानवाधिकार रिकॉर्ड देखे.यानि हम जहां थे वहीं हैं. क्या यही नया भारत है?

सवाल यह है कि पाकिस्तान यदि राम जन्मभूमि पर ध्वजारोहण पर अनर्गल बयान दे सकता है, चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना बता सकता है तो हमें उन्हीं के भाषा में क्यों जवाब नहीं देना चाहिए? भारत को आज क्यों नहीं बलूचिस्तान की स्वतंत्रता और ताइवान की संप्रुभता पर बात करनी चाहिए? आज के दौर में यह न केवल न्यायोचित है, बल्कि रणनीतिक आवश्यकता भी है

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बलूचिस्तान और ताइवान पर आक्रामक होना होगा भारत को 

गौरतलब है कि पाकिस्तान ने हाल ही में अयोध्या में राम मंदिर पर केसरिया ध्वज फहराने को इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरासत पर हमला बताकर संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की है. यह भारत की संप्रभुता पर सीधा हमला है. पाकिस्तान खुद बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन कर रहा है.  बलूच संगठनों के विरोध प्रदर्शनों को कुचला जा रहा है. इतना ही नहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की पूरी विरासत ही खत्म कर दी गई.जिस देश ने लाखों हिंदुओं और हजारों मंदिरों को खत्म कर दिया केवल इसलिए कि हमारी पूर्ववर्ती सरकारें अपना मुंह सिले रखती थीं. उनकी नीति थी कि हम दूसरों के मामलों में हाथ नहीं डालेंगे. पर अब तो भारत की वो स्थिति नहीं है. हम खुद रोज कहते हैं कि यह नया भारत है. अगर हम वास्तव में नया भारत हैं तो जब पाकिस्तान अयोध्या पर बोल सकता है, तो भारत बलूचिस्तान के दमन पर चुप्पी क्यों ओढ़े हुए है? भारत को खुलकर सामने आने होगा. 

इसी तरह, चीन ने अरुणाचल प्रदेश को जंगनान बताते हुए एक भारतीय महिला यात्री को शंघाई एयरपोर्ट पर 18 घंटे हिरासत में लिया, और वहां के विदेश मंत्रालय ने कहा कि अरुणाचल पर भारत का अवैध रूप से कब्जा है.भारत ने इसे खारिज किया, लेकिन तरीका वही घिसा पिटा था. अब ताइवान पर चीन का दबाव चरम पर है. यदि चीन अरुणाचल पर दावा कर सकता है, तो भारत को ताइवान के साथ सहयोग बढ़ाकर चीन की कमजोरी क्यों न उजागर करना चाहिए ?

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भारत को कूटनीतिक स्तर पर बलूचिस्तान के मानवाधिकार उल्लंघनों और ताइवान की संप्रभुता पर बयान देना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाकर और क्वाड में ताइवान को शामिल करके जवाब दिया जा सकता है. इससे न केवल इन देशों का मुंह बंद होगा, बल्कि भारत की वैश्विक छवि मजबूत होगी. चुप्पी कमजोरी नहीं, बल्कि रणनीतिक मौन है, लेकिन अब समय आक्रामकता का है. इसलिए इस चुप्पी को तोड़ना होगा.

चीन और पाकिस्तान कभी भारत के मित्र नहीं हो सकते हैं ये मानकर चलना होगा 

भारत को अब यह स्वीकार करना होगा कि चीन और पाकिस्तान कभी उसके सच्चे मित्र नहीं हो सकते. 2025 में इन दोनों का आल वेदर गठबंधन भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष में चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया. भारत को यह मान लेना चाहिए कि इन दोनों देशों के साथ पंचशील वाली कूटनीति ही बेकार है. इनके साथ भारत कितनी भी सहृदयता दिखा ले ये कुत्ते की दुम की तरह कभी सीधे नहीं हो सकते. ये संभव है कि भारत अगर खुलकर इनके साथ आक्रामक व्यवहार करने लगे तो हो सकता है कि ये नरम पड़ जाएं. क्योंकि पाकिस्तान और चीन के साथ आज भी दुनिया में मुट्ठी भर देश ही साथ हैं. दुनिया के हर बड़े मंच पर इन देशों कि उपस्थिति भी नहीं है. 

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भारत ने पिछले दिनों जिस तरह अफगानिस्तान से दोस्ती बढ़ाई है उसी तर्ज पर भारत को ताइवान के साथ गहरे संबंध बनाने चाहिए. ताइवान के लिए वैश्विक मंच पर आवाज उठानी चाहिए. चीन से हमारा संबंध केवल व्यापार का ही रह गया है. अगर चीन से व्यापार करना हमारी मजबूरी है तो चीन का भी भारत से व्यापार करना मजबूरी हो जाएगा. भारत को बस आगे बढ़कर ऐसे बयान देने हैं जिससे चीन और पाकिस्तान को मिर्ची लगे.3-आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान ही नहीं चीन की भी स्थिति कमजोर है उसका लाभ उठाना चाहिए 

पाकिस्तान और चीन की आर्थिक कमजोरी भारत के लिए सुनहरा अवसर है

 पाकिस्तान आईएमएफ कर्ज के जाल में फंसा है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था मंदी से जूझ रही है. चीन का CPEC प्रोजेक्ट कर्ज का बोझ बन गया है. भारत को इनकी कमजोरी का लाभ उठाकर वैश्विक व्यापार और निवेश में बढ़त लेनी होगी. 

वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में जिस गति से बदलाव हो रहे हैं, उसमें भारत के लिए अवसरों के नए दरवाजे खुल रहे हैं. चीन भी आज उस आत्मविश्वास के साथ नहीं खड़ा है, जैसा एक दशक पहले दिखाई देता था. ऐसे समय में भारत के पास इन दोनों देशों की कमजोरियों को सामरिक और आर्थिक अवसरों में बदलने का ऐतिहासिक मौका है.

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पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था दशकों की कुप्रबंधन, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद-प्रधान नीति के कारण लगभग दिवालिया स्थिति में पहुंच चुकी है। IMF पर निर्भरता, लगातार गिरते विदेशी मुद्रा भंडार, रुपये की ऐतिहासिक कमजोरी और महंगाई के रिकॉर्ड स्तर ने उसकी आर्थिक क्षमता को खत्म कर दिया है. ऐसे में पाकिस्तान के पास भारत-विरोधी किसी बड़े साहसिक कदम की आर्थिक शक्ति नहीं बची है.

भारत के लिए यह समय है कि वह अपनी सीमाओं पर आत्मविश्वास बनाए रखते हुए अंदरूनी विकास और रक्षा आधुनिकीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करे. पाकिस्तान की कमजोरी भारत को क्षेत्रीय नेतृत्व मजबूत करने का मौका देती है.

चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जरूर है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उसकी विकास दर धीमी हुई है. रियल एस्टेट सेक्टर का क्राइसिस, जनसंख्या में तेज गिरावट, निर्यात में कमी, अमेरिका और यूरोप के साथ बढ़ते तनाव तथा सप्लाई चेन्स के विविधीकरण (China+1) ने चीन की मजबूती को चुनौती दी है.

आज की वैश्विक राजनीति में आर्थिक ताकत ही वास्तविक सामरिक ताकत है. चीन और पाकिस्तान की आर्थिक कमजोरी यह संकेत देती है कि भारत अपनी तुलना में अधिक स्थिर, आकर्षक और भविष्य-उन्मुख अर्थव्यवस्था बन चुका है.
यदि भारत इस अवसर को सही रणनीति, सुधारों और निवेश के जरिए भुना लेता है, तो न केवल पड़ोसियों की आक्रामक नीतियों को संतुलित कर सकता है, बल्कि अगले दशक में एशिया की निर्णायक आर्थिक शक्ति भी बन सकता है.

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भारत अब किसी का मोहताज नहीं 

भारत अब आर्थिक रूप से मजबूत हो चुका है.  2025 में IMF ने भारत को दुनिया की सबसे तेज बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था घोषित किया, GDP वृद्धि 6.6% के साथ. विश्व बैंक ने भी 6.5% का अनुमान लगाया. हम अब किसी के कर्ज या सहायता पर निर्भर नहीं हैं. PLI स्कीम से विनिर्माण क्षेत्र में 18% वृद्धि हुई, और निर्यात 2025 में 450 बिलियन डॉलर पार कर गया. भारत ने CPEC जैसे प्रोजेक्ट्स को चुनौती देते हुए IMEC (India-Middle East-Europe Corridor) शुरू किया, जो वैश्विक व्यापार को बदलने की क्षमता रखता है.

 हम अब कटोरा लेकर नहीं खड़े होते; बल्कि G20 में वैश्विक एजेंडा सेट करते हैं. 2025 में ब्रिक्स के विस्तार से भारत का प्रभाव बढ़ा. आत्मनिर्भर भारत अब वैश्विक इंजन है. भारत की आर्थिक शक्ति अब निर्विवाद है. 2025 में GDP 4 ट्रिलियन डॉलर को पार कर चुकी, और IMF ने 6.4% वृद्धि का पूर्वानुमान दिया.

दुनिया के सबसे आधुनिक हथियार हमारे पास हैं .भारत के पास 2025 में दुनिया के सबसे आधुनिक हथियार हैं. अग्नि-5 ICBM (5,500 किमी रेंज, MIRV तकनीक) ने चीन को चुनौती दी है. ब्रह्मोस-NG (नई पीढ़ी) राफेल और तेजस पर फिट, 400 किमी रेंज के साथ. S-400 सिस्टम ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तानी ड्रोन्स को ध्वस्त किया.  राफेल जेट्स स्कैल्प मिसाइलों से लैस, 300 किमी स्ट्राइक क्षमता. नीरभय सबसोनिक क्रूज मिसाइल रणनीतिक गहराई देती है. आकाश और बराक-8 SAM सिस्टम एयर डिफेंस को मजबूत बनाता है. 2025 में ब्रह्मोस-II हाइपरसोनिक परीक्षण सफल हो चुका है. भारत का डिफेंस बजट 75 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है जो विश्व में चौथे स्थान पर है. ये हथियार पाक-चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं.

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2025 में भारत की कूटनीति पाकिस्तान-चीन से श्रेष्ठ साबित हुई. SCO समिट में मोदी ने आतंकवाद पर जोर दिया, पाकिस्तान को अलग-थलग किया. क्वाड में भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया ने इंडो-पैसिफिक में चीन को घेरा. G20 में भारत ने वैश्विक सुधारों का नेतृत्व किया. चीन के साथ LAC डिसएंगेजमेंट हुआ.  ब्रिक्स+ विस्तार से भारत का प्रभाव बढ़ा. EU और अफ्रीका समिट होस्टिंग से दक्षिण ग्लोबल की आवाज बने. हम SCO में रूस-चीन त्रिकोण को बैलेंस करते, क्वाड में अमेरिका के साथ मजबूत सहयोग संबंध बनाते हैं.

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