दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट का ताजा आदेश नेशनल हेराल्ड केस में एक बड़ा मोड़ लेकर आया है. अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की मनी लॉन्ड्रिंग वाली चार्जशीट पर कॉग्निजेंस लेने से इनकार कर दिया. सीधी भाषा में कहें तो कोर्ट ने फिलहाल इस केस को आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी. स्पेशल जज विशाल गोगने इस संबंध में ईडी को लेकर एक आदेश जारी किया. जिससे सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य आरोपियों को तात्कालिक राहत मिली है. लेकिन क्या इसका मतलब केस खत्म हो गया? नहीं. कहानी इससे कहीं ज्यादा पेचीदा है.
अदालत ने क्या कहा और ‘झोल’ कहां फंसा
अदालत का मुख्य आधार तकनीकी है. मेरिट यानी आरोप सही हैं या गलत, इस पर कोर्ट ने कुछ नहीं कहा. कोर्ट का कहना है कि ईडी ने जिस आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग की कार्रवाई शुरू की, उसमें एक अहम कड़ी गायब है- एफआईआर.
PMLA (मनी लॉन्ड्रिंग कानून) के तहत आम तौर पर किसी मूल अपराध को लेकर दर्ज एफआईआर के बाद ही ईडी अपनी कार्रवाई को टिकाऊ बनाती है. यहां अदालत ने माना कि सब्रमण्यम स्वामी की निजी शिकायत पर जो प्रक्रिया चली, वह इस स्तर पर ईडी की चार्जशीट को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसी तकनीकी कमी पर कोर्ट ने कॉग्निजेंस लेने से मना कर दिया. यही वह झोल है- एफ़आईआर का अभाव.
क्या यह गांधी परिवार के लिए बड़ी राहत है?
हां, तुरंत और प्रक्रिया के स्तर पर यह बड़ी राहत है. अगर कोर्ट कॉग्निजेंस ले लेती, तो गांधी परिवार को आरोपी के तौर पर समन जारी हो जाता और ट्रायल की औपचारिक शुरुआत हो जाती. वह नहीं हुआ. इसलिए फिलहाल कोई ट्रायल शुरू नहीं होगा. समन नहीं होंगे. आपराधिक कार्रवाई दहलीज पर ही रुक गई. लेकिन यह अंतिम जीत नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगी कि केस पूरी तरह ढह गया. कांग्रेस पार्टी ने ट्वीट किया है कि कोर्ट का आदेश 'सच्चाई की जीत' है. यह बयान विशुद्ध राजनीतिक है. कानून के अखाड़े में इसके कोई मायने नहीं हैं.
चार्जशीट का चक्कर क्या है?
ईडी ने PMLA के तहत प्रॉसिक्यूशन कंप्लेंट दाखिल की थी. जिसे आम भाषा में चार्जशीट कहा जाता है. कोर्ट को पहले यह तय करना होता है कि वह इस पर कॉग्निजेंस ले या नहीं. यहां अदालत ने कहा चार्जशीट अभी मेंटेनबल नहीं है, क्योंकि जिस मूल अपराध से मनी लॉन्ड्रिंग जुड़ी है, उसमें विधिवत एफआईआर नहीं है. कोर्ट के आदेश को ऐसे भी समझा जा रहा है कि एक निजी शिकायतकर्ता सुब्रमण्यन स्वामी की शिकायत पर इतना बड़ा मामला खड़ा कर दिया गया है. जबकि सरकार का कोई विभाग जैसे वित्त या कोई अन्य महकमा या एजेंसी इस मामले में एफआईआर क्यों नहीं दर्ज करवा रहे हैं?
ईडी का तर्क है कि यह साधारण निजी शिकायत नहीं थी. इसमें पहले ही अपराध का संज्ञान लिया जा चुका था. ईडी यह भी कह रही है कि कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के विजय मदनलाल चौधरी फैसले के कुछ महत्वपूर्ण पैरा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया. इसी आधार पर ईडी के अपील में जाने के संकेत हैं.
क्या गांधी परिवार के खिलाफ केस कमजोर है?
यह सवाल दो हिस्सों में बांटना जरूरी है-
1. तकनीकी रूप से- अभी के आदेश से साफ है कि प्रक्रियागत कमजोरी सामने आई है. एफआईआर न होना ईडी के लिए बड़ा झटका है. इस स्तर पर केस कमजोर दिखता है. कम से कम अदालत में आगे बढ़ाने के लिहाज से.
2. मेरिट के स्तर पर- कोर्ट ने आरोपों की सच्चाई पर कुछ नहीं कहा. ईडी का दावा है कि मनी लॉन्ड्रिंग स्थापित है. यानी कानूनी लड़ाई का असली मैदान अभी खुला ही नहीं है. इसलिए यह कहना कि केस पूरी तरह कमजोर या खत्म हो गया, अभी संभव नहीं.
जांच एजेंसियों की दुविधा क्या है?
ईडी एक दुविधा में फंसी दिखती है. एक तरफ कोर्ट कह रही है पहले एफआईआर चाहिए. दूसरी तरफ ईडी का मानना है कि मौजूदा शिकायत और जांच PMLA के तहत पर्याप्त है. अब एजेंसी के सामने दो रास्ते हैं.
पहला, दिल्ली पुलिस की चार्जशीट का इंतेजार. फिलहाल, ईडी की ओर से एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. ईडी का यही कहना है कि वह अपनी जांच जारी रखेगी. और दिल्ली पुलिस की चार्जशीट के साथ अपनी चार्जशीट फाइल करेगी.
दूसरा, ऊपरी अदालत में अपील. ईडी सूत्रों के मुताबिक राउज एवेन्यू कोर्ट के आदेश को चुनौती दी जाएगी और यह तर्क रखा जाएगा कि निचली अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की सही व्याख्या नहीं की. यानी एजेंसी पीछे हटने के मूड में नहीं है.
सब्रमण्यम स्वामी का रुझान क्या है?
इस पूरे मामले की शुरुआत सब्रमण्यम स्वामी की निजी शिकायत से हुई थी. स्वामी लगातार यह कहते रहे हैं कि नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों पर गलत तरीके से नियंत्रण हासिल किया गया. यंग इंडियन और कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका संदिग्ध है. हालांकि, पिछले कुछ दिनों से स्वामी लगातार प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी नेतृत्व पर हमलावर हैं. इसलिए बीच में यह भी खबर उड़ी कि उन्होंने नेशनल हेराल्ड केस में कदम पीछे खींच लिए हैं. स्वामी ने इन खबरों को झूठा बताया है. उनकी संस्था विराट हिंदुस्तान संगम के जनरल सेक्रेटरी जगदीश शेट्टी के 11 दिसंबर के ट्वीट को स्वामी ने रीट्वीट किया है. जिसमें बताया गया है कि उनकी तरह से यह झूठी अफवाह उड़ाई जा रही है कि वे नेशनल हेराल्ड केस वापस ले रहे हैं. सच ये है कि इस केस में 18 अप्रैल 2026 को अगली तारीख है, जिसके लिए वे तैयार हैं.
आगे क्या होगा?
बहुत संभावना है कि ईडी उच्च अदालत में जाएगी. लेकिन तब तक राजनीतिक सरगर्मी तो होगी ही. कांग्रेस इसे 'राहत' और 'राजनीतिक बदले की राजनीति' कहेगी, जबकि बीजेपी इसे 'तकनीकी अड़चन' बताएगी. और इसकी शुरुआत हो भी चुकी है. एक ओर से कांग्रेस सांसद और इस केस में वकील अभिषेक मनु सिंघवी कह रहे हैं कि कोर्ट के आदेश से साबित होता है कि यह मामला खोखला है. इसमें कोई वजन नहीं है. वहीं दूसरी और भाजपा सांसद और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा दावा कर रहे हैं कि यह गांधी परिवार के लिए महज तात्कालिक राहत है. नेशनल हेराल्ड केस फूल प्रूफ है. चार्जशीट दाखिल होने के बाद सब साफ हो जाएगा.
कुलमिलाकर, नेशनल हेराल्ड केस में अदालत का आदेश गांधी परिवार के लिए तत्काल राहत है, क्लीन चिट नहीं. झोल तकनीकी है, एफआईआर का. लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. असली परीक्षा तब होगी जब अपील, या नई चार्जशीट के साथ मामला दोबारा अदालत के सामने आएगा. फिलहाल, गेंद ईडी के पाले में है और सियासत अपने पूरे शोर के साथ मैदान में.