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रिहाई के बाद आजम खान का पहला बयान अखिलेश यादव के लिए पहेली से कम नहीं

आजम खान समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनकी खींचतान तभी से शुरू हो गई थी जब मुलायम सिंह यादव जीवित थे. अखिलेश यादव से उनके संबंध हमेशा नरम-गरम रहे. आजम खान ने रिहाई के बाद जैसी बातें की हैं उससे तो यही लगता है कि वो किसी नए ठौर की तलाश में हैं.

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आजम खान 23 महीने बाद आज जेल से रिहा हो गए.
आजम खान 23 महीने बाद आज जेल से रिहा हो गए.

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खान सीतापुर जेल से रिहा हो गए हैं. लगभग 23 महीनों की कैद के बाद उनकी यह रिहाई उनके समर्थकों के लिए खुशी का बात थी, पर समाजवादी पार्टी के लिए बहुत ही असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है. आजम की रिहाई पर जेल के बाहर सैकड़ों समर्थकों का हुजूम उमड़ पड़ा, नारे लगे, मिठाइयां बांटी गईं. समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक शिवपाल यादव और पार्टी की सांसद रुचिवीरा भी उनकी अगवानी के लिए पहुंचे. 

लेकिन इन सबके बीच आजम खान ने आज तक को जो बताया वो शायद समाजवादी पार्टी के लिए उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता. आजम के बयान ने एक सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वे समाजवादी पार्टी में रहेंगे? 

पिछले कुछ दिनों से लगातार उनके बीएसपी में जाने की अफवाहें हैं. मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह भी खबर फैली कि आजम खान की पत्नी तजीना ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की थी. जाहिर है कि आजम खान ने रिहाई के बाद जैसी बातें कहीं हैं उससे तो यही लगता है कि उनका सपा के साथ रिश्ता अब पहले जैसा मजबूत नहीं रहा.

यह अनिश्चितता न केवल सपा के आंतरिक समीकरणों को प्रभावित कर रही है, बल्कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा), कांग्रेस और यहां तक कि नई राजनीतिक संरचना की संभावनाओं को भी जन्म दे रही है.

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सपा का मजबूत स्तंभ जो अब संकट में

आजम खान का नाम उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व और सामाजिक न्याय की लड़ाई से जुड़ा हुआ है. 1951 में स्वरूप नगर (रामपुर) में जन्मे आजम खान ने अपनी राजनीतिक यात्रा समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ शुरू की. 1980 के दशक में वे रामपुर से विधायक बने और बाद में लोकसभा सदस्य भी चुने गए. मुलायम सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में उन्होंने वक्फ बोर्ड और अल्पसंख्यक कल्याण जैसे विभागों को संभाला. अखिलेश यादव की सरकार में तो नगर विकास मंत्री जैसी महत्वपूर्ण भूमिका में थे. पर उनकी भूमिका को हमेशा विवादास्पद बनी रही. एक ओर वे गरीब मुसलमानों के मसीहा के रूप में देखे जाते थे, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार और भूमि हड़पने के आरोपों ने उनके कद को हमेशा चुनौती दी.

2017 में योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार बनने के बाद आजम खान पर मुकदमों की बौछार हो गई. उन पर 100 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं. रामपुर के क्वालिटी बार भूमि अतिक्रमण मामले से लेकर 2008 के सड़क अवरोध मामले तक, उनके खिलाफ दर्जनों एफआईआर दर्ज हुईं. विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट ने उन्हें कई मामलों में दोषी ठहराया, और वे सीतापुर जेल में बंद किए गए. इनमें से कई मामलों को सपा ने 'राजनीतिक साजिश' करार दिया, जबकि भाजपा ने इन्हें 'कानून का राज' स्थापित करने का हिस्सा बताया. 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में क्वालिटी बार मामले में उन्हें जमानत दे दी, जिसके बाद 23 सितंबर को उनकी रिहाई संभव हुई. रिहाई के समय जेल के बाहर का नजारा फिल्मी सीन जैसा था. उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान (सपा विधायक) और समर्थकों की भीड़ ने जोरदार स्वागत किया. सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव भी मौजूद थे, जिन्होंने कहा, आजम खान को फर्जी मुकदमों में फंसाया गया. सपा उनका साथ देती रहेगी. लेकिन इस उत्साह के बीच आजम खान के चेहरे पर मुस्कान के साथ-साथ एक गहरी थकान और सोच-विचार का भाव था. 

आजम का असमंजस, समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी 

रिहाई के तुरंत बाद आजम खान ने जो बातें कहीं, वे सतही तौर पर आभार व्यक्त करने वाली लगीं, लेकिन गहराई में सपा के प्रति उनकी नाराजगी झलक रहीं थीं. एएनआई को दिए बयान में उन्होंने कहा कि मैंने जेल में किसी से मुलाकात नहीं की. न ही कोई फोन कॉल की अनुमति मिली. मैं पांच साल से पूरी तरह कट गया हूं.

यह कथन महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे साफ होता है कि जेल के अंदर वे सपा नेतृत्व से पूरी तरह अलग-थलग थे. उनकी पत्नी तजीन फातमा, जो स्वयं जेल से रिहा हो चुकी हैं, ने पहले ही सपा पर 'समर्थन की कमी' का आरोप लगाया था. बसपा में शामिल होने की अफवाहों पर आजम खान ने कहा कि यह तो वही लोग बताएं जो ऐसी अटकलें लगा रहे हैं. यह जवाब नकारात्मक नहीं था, बल्कि तटस्थ था. उन्होंने न तो इनकार किया, न ही पुष्टि. 

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इसकी जगह पर वे यह भी कह सकते थे कि मैंने समाजवादी पार्टी को अपने खून पसीने से सींचा है. मरते दम तक पार्टी को छोड़ने का कोई सवाल नहीं है. पर आजम ने ऐसा कुछ न कहकर समाजवादी पार्टी को संकेत दे दिया. इसके साथ ही दूसरी पार्टियों को भी संदेश दे दिया. आजम ने कहा कि कि पहले अपना इलाज कराऊंगा, फिर आगे की रणनीति तय करूंगा. यह बयान साफ तौर पर राजनीतिक भविष्य पर विचार करने का संकेत देता है.

जेल से बाहर आते ही रामपुर रवाना हो जाना और सपा की कोई औपचारिक मीटिंग न करना भी कुछ ऐसा ही संदेश है. उनके करीबी नेता ने आजम की रिहाई के कुछ घंटे पहले मीडिया को बताया कि आजम साहब बड़े नेता हैं, हर दल उन्हें चाहेगा. जेल से बाहर आने के बाद रणनीति बनेगी. जाहिर है कि आजम के बारे में ऐसी खबरें सपा के लिए खतरे की घंटी है.

सपा में तनाव: अखिलेश vs आजम, पुरानी दरारें नई चुनौतियां

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, आजम खान की रिहाई न्याय की जीत है. सपा सत्ता में आई तो सभी फर्जी मुकदमे वापस लेंगे. यह बयान समर्थन का प्रतीक लगता है, लेकिन देर से आया. जेल के दौरान सपा की चुप्पी ने आजम खान को अलग-थलग महसूस कराया. शिवपाल सिंह यादव ने स्पष्ट कहा, आजम सपा नहीं छोड़ेंगे. बसपा जाने की बात अफवाह है. लेकिन आजम के बयानों से तो यही लगता है कि उनका मन सपा से ऊब चुका है. पांच साल की अलगाव ने उनके विश्वास को तोड़ा है, और अब वे एक नई शुरुआत की तलाश में हैं.

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समाजवादी पार्टी में आजम खान और अखिलेश यादव के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश ने पार्टी को मजबूत किया, लेकिन आजम खान जैसे पुराने योद्धाओं को किनारे किया. 2024 में आजम का जेल से लिखा एक पत्र इंडिया गठबंधन पर हमला बोलने वाला था, जिसमें उन्होंने कहा था कि गठबंधन 'रामपुर के पतन का मूक दर्शक' है. सपा ने इसे 'व्यक्तिगत' बताकर किनारा किया.

उनकी पत्नी तजीन फातमा की रिहाई के बाद भी अखिलेश का दौरा न होना भी दरार को गहरा किया. आजम खान रामपुर-मुरादाबाद क्षेत्र में सपा का मुस्लिम वोट बैंक हैं. हालांकि आजम खान के साथ जो अत्याचार हुआ उसके चलते पूरे प्रदेश के मुसलमानों में उनके लिए संवेदनाएं हैं. उनकी अनुपस्थिति में 2022 विधानसभा चुनावों में सपा को नुकसान हुआ था. अब रिहाई के बाद यदि वे सपा छोड़ते हैं, तो मुस्लिम वोटों के टूटने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.

क्या मायावती की शरण में जाएंगे आजम

 हाल ही में बसपा सुप्रीमो मायावती के खास और यूपी में पार्टी के इकलौते विधायक उमा शंकर सिंह के बयान से संकेत मिला कि बसपा आजम खान के स्वागत के लिए तैयार है. बीच में ऐसी खबरें आईं थीं कि कांग्रेस की प्रियंका गांधी भी आजम को इंडिया गठबंधन में लाने की कोशिशों में लगी हैं. आजम खान के एक करीबी नेता ने कहा, आजम अब सपा के नहीं रहेंगे. यदि ऐसा होता है, तो सपा 2027 विधानसभा चुनावों में कमजोर पड़ सकती है.

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आजम खान के बयानों से साफ है कि उनका भविष्य सपा में निश्चित नहीं. बसपा में शामिल होने की अटकलें सबसे मजबूत हैं. मायावती ने पहले ही मुस्लिम-दलित गठजोड़ की बात की है, और आजम का अनुभव उनके लिए फायदेमंद होगा. ऐसी खबरें भी चल रही हैं कि अक्तूबर में बीएसपी एक बहुत बड़ी रैली कर रही है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो आजम उस रैली में बीएसपी जॉइन कर सकते हैं. तजीन फातमा की दिल्ली में मायावती से कथित मुलाकात ने इन अफवाहों को बल दिया.

यदि आजम बसपा में जाते हैं, तो पूर्वांचल में सपा-बसपा की पुरानी लड़ाई जोर पकड़ेगी. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी से पूछा गया कि क्या आजम की रिहाई में यूपी सरकार का हाथ है? चौधरी ने आजम रिहाई में सरकार की किसी भी प्रकार की भूमिका से इनकार किया. उन्होंने कहा कि यह कोर्ट का फैसला है. आजम की रिहाई के पीछे हमारा कोई पैक्ट नहीं है. 

दरअसल राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि बीजेपी ने आजम की रिहाई कराकर बीएसपी में शामिल कराना चाहती है. यह 2027 के चुनावों में मुसलमानों का वोट बांटने की रणनीति के तहत ऐसा किया जा सकता है. 

आजम के सामने कांग्रेस का विकल्प भी खुला है. प्रियंका गांधी ने मुस्लिम नेताओं को मजबूत करने पर जोर दिया है, और आजम का इंडिया ब्लॉक में शामिल होना गठबंधन को मजबूत कर सकता है. लेकिन आजम की विवादास्पद छवि कांग्रेस के लिए जोखिम भरी हो सकती है. आजम के सामने एक और विकल्प अपनी नई पार्टी बनाना है. मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी ने सलाह दी है कि आजम नई पार्टी बनाएं. पर बढ़ती उम्र और संसाधनों की कमी के चलते यह संभव नहीं हो सकेगा.

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आजम खान से जेल में नगीना से सांसद बने आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कई  मुलाकात की थी. जाहिर है कि चंद्रशेखर के साथ आजम के सियासी गणित से इनकार नहीं किया जा सकता.असदुद्दीन ओवैसी भी दलित-मुस्लिम फॉर्मूले पर अपना सियासी जमीन तैयार करना चाहते हैं.

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