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महिला U-19 वर्ल्ड कप जिताने वाली सौम्या के हैं ये दो सपने, परिवार ने संघर्ष को किया याद

महिला अंडर-19 वर्ल्ड कप के फाइनल में ऑलराउंडर खिलाड़ी सौम्या तिवारी ने विजयी शॉट लगाया था. सौम्या ने ही भारत की ओर से खेलते हुए इंग्लैंड के खिलाफ 37 गेंद पर 24 रन बनाए. इस जीत पर भोपाल में रहने वाला उनका परिवार इन दिनों बहुत खुश है.

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भोपाल की सौम्या तिवारी के परिवार से आजतक की खास बातचीत
भोपाल की सौम्या तिवारी के परिवार से आजतक की खास बातचीत

महिला अंडर-19 वर्ल्ड कप के फाइनल में भोपाल की ऑलराउंडर खिलाड़ी सौम्या तिवारी ने भारत की ओर से खेलते हुए इंग्लैंड के खिलाफ 37 गेंद पर 24 रन बनाए. इस मैच में सौम्या ही वो खिलाड़ी लगाई थीं जिन्होंने विजयी शॉट लगाया था. सौम्या के इस प्रदर्शन से उनका परिवार, उनका भोपाल शहर और पूरा प्रदेश गौरवान्वित है. हर तरफ सौम्या की तारीफ हो रही है. ऐसे में आजतक ने सौम्या के माता-पिता से खास बातचीत की है.

भोपाल के रहने वाले मनीष तिवारी और उनकी पत्नी भारती तिवारी सहित उनका पूरा परिवार इन दिनों बेहद खुश है. उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है, घर में जश्न का माहौल है. वजह है कि 12वीं क्लास में पढ़ने वाली बेटी ने उनका और भोपाल का नाम पूरे देश में रोशन कर दिया है. दरअसल भोपाल के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली 12वीं कक्षा की कॉमर्स की छात्रा सौम्या तिवारी ने अंडर-19 महिला T-20 वर्ल्ड कप में भारत की विजय में अहम योगदान दिया है.

भोपाल के सामान्य परिवार से आती हैं सौम्या

सौम्या के पिता मनीष तिवारी शासकीय कर्मचारी हैं जो कलेक्ट्रेट में निर्वाचन शाखा में पदस्थ हैं. सौम्या की मां भारती तिवारी हाउस वाइफ हैं. सौम्या की एक बड़ी बहन हैं जो बैंक में जॉब करती हैं. सौम्या की मां बताती हैं कि सौम्या को बचपन से ही लड़कों की तरह रहना और लड़कों के खेल पसंद थे. वह जब पांचवी क्लास में थी तब उसने क्रिकेट खेलना शुरू किया था.

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मां ने कहा, पहले हम लोग पुराने भोपाल के शाहजहानाबाद में रहते थे. फिर हम रचना नगर शिफ्ट हो गए यहां पर कोई ग्राउंड नहीं था, तो सौम्या अपने भाई बहनों के साथ ही रोड पर क्रिकेट खेलती थी. लेकिन छोटे होने की वजह से कोई उसको अपने साथ नहीं खिलाता था. इसके बावजूद भी सौम्या कपड़े धोने वाली लकड़ी (कुटनी/ मोगरी )से क्रिकेट खेलती थी.

सफलता में कोच का अहम योगदान

सौम्या का क्रिकेट के प्रति जुनून और समर्पण देख उसकी मां और बहन उसका एक एकेडमी में एडमिशन कराने पहुंचे. लेकिन उस समय उस एकेडमी के कोच लड़कियों को ट्रेनिंग नहीं देते थे इसलिए उसको एडमिशन नहीं दिया गया. लेकिन सौम्या लगातार जिद पर अड़ी रही और आखिर में कोच मान गए और उसको अपनी एकेडमी में एडमिशन देकर ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया. सौम्या की सफलता में उनके कोच सुरेश चेलानी का बहुत सहयोग रहा है. सुरेश चेलानी ने ही सौम्या को एकेडमी में ट्रेनिंग दी.

ग्वालियर से खुला अंडर-19 का रास्ता

सौम्या का सीनियर डिवीजन में सिलेक्शन हो गया था. सौम्या को ग्वालियर जाना था, लेकिन 10 साल की बच्ची को पहली बार अकेले भेजने में माता-पिता काफी संकोचित थे. लेकिन उस समय सौम्या की कोच चित्रा वाजपेई ने परिजनों को समझाया और विश्वास दिलाया कि उनकी बेटी को वह अपनी बेटी की तरह रखेंगे. तब उन्होंने ग्वालियर जाने दिया और उसका नतीजा ये रहा कि सौम्या ने ग्वालियर में बहुत अच्छा परफॉर्म किया और यहीं उसके कैरियर के ऊंचाई मिली. सौम्या विराट कोहली की बहुत बड़ी फैन है, उसने अपने रूम में विराट कोहली की कई तस्वीरें लगाई हुई हैं और उसकी तमन्ना है कि वह विराट कोहली से मिले. 

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सौम्या के ये दो सपने

सौम्या की मां भारती तिवारी बताती हैं कि बेटी की सफलता के पीछे उनके पिताजी का बहुत बड़ा हाथ है. पिताजी सुबह ऑफिस जाते थे और फिर दिन में लंच में आते थे, बच्ची को एकेडमी छोड़ते थे फिर वापस एकेडमी से लेकर घर छोड़ते थे और फिर वापस आकर अपना पूरा काम निपटा कर घर जाते थे. कोरोना काल में पिताजी ने बच्ची के लिए घर की छत पर ही पूरा ग्राउंड बना दिया था, नेट प्रैक्टिस की मशीन से लेकर सब कुछ छत पर लगा दिया था. सौम्या की मां बताती हैं कि उनकी बेटी के दो सपने हैं एक तो वह विराट कोहली से मिलना चाहती है, वहीं दूसरा सपना उसका देश का प्रतिनिधित्व करना है. वह भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ओर से खेलना चाहती है.

परिवार ने 7 साल अपनाया ये रूटीन

सौम्या की सफलता पर उनके पिता का कहना है कि सफलता पाने के लिए बहुत मेहनत और तपस्या करना पड़ती है. हमने 7 साल तक लगातार सौम्या को सुबह शाम प्रैक्टिस कराई है. वह बहुत पंक्चुअल है. अगर रात को 2 बजे भी आए तो सुबह प्रैक्टिस पर जरूर जाती थी. पिता ने बताया कि जैसे-जैसे बच्ची के गेम में सुधार आता गया, वैसे-वैसे उसके सेशन डबल होते गए. सुबह 6 बजे से 4 घंटे का सेशन होता था, ठंडा में 7 बजे से यह सेशन स्टार्ट होता था. पिता पहले बच्ची को सुबह एकेडमी छोड़ते और फिर तैयार होकर ऑफिस जाते थे. शाम के सेशन के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था की थी. या तो बड़ी बहन जाती थी या फिर परिवार का कोई और सदस्य छोड़ने जाता था और में ऑफिस से लौटते समय पिता वहां से लेकर आते थे. परिवार ने यह प्रक्रिया लगातार 7 साल तक की है. 

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एक बार सिलेक्ट न होने से दुखी हुई सौम्या

पिता ने बताया 2017-2018 में एक कैंप लगा था, इसमें सौम्या का सिलेक्शन नहीं हुआ था. इस बात से सौम्या बहुत दुखी हुई थी और करीब 6 महीने तक वह उदास रही. इसके बाद सौम्या ने उसकी डबल मेहनत की. पिछले 3 साल में सौम्या ने अपना लक्ष्य बनाया कि हमें इंडिया टीम में शामिल होना है और वर्ल्ड कप खेलना है.

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