मध्य प्रदेश सरकार ने अभी अगस्त महीने में ही अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की सीमा 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का ऐलान किया था. यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में है और आठ अक्टूबर से इस पर नियमित सुनवाई होनी है. सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश सरकार ने हलफनामे भी दायर किए हैं.
सोशल मीडिया पर कुछ अंश वायरल हो रहे हैं, जिनको लेकर दावा किया गया कि यह मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए हलफनामे के हैं. यह अंश वायरल होते ही मध्य प्रदेश सरकार सोशल मीडिया यूजर्स के निशाने पर आ गई. सूबे में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार है और उस पर यह आरोप लगने लगे कि उसने भगवान राम और आचार्य द्रोणाचार्य का अपमान किया है.
सोशल मीडिया पर विवाद बढ़ा, तो मध्य प्रदेश सरकार को सफाई देनी पड़ी. सरकार ने सोशल मीडिया पर वायरल अंश हलफनामे का अंग होने की बात से इनकार किया है. मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण का जो मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, उसे लेकर सोशल मीडिया पर क्यों बवाल मच गया और वायरल कागज पर सरकार कैसे घिर गई?
सोशल मीडिया पर दावा क्या
सोशल मीडिया पर यह दावा किया गया कि मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दिया है, उसमें ऋषि शम्बुक के वध का जिक्र करते हुए धार्मिक व्यवस्था की कठोरता का वर्णन है. दावे के मुताबिक इसमें उल्लेख है कि छोटी जाति के व्यक्ति का जप-तप करना और सम्मान पाना नियम-व्यवस्था के विपरीत माना गया. राजा राम से शम्बुक ऋषि का वध कराकर यह व्यवस्था भंग करने का दंड दिया गया, जबकि शम्बुक ऋषि तपस्या कर रहे थे.
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सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट का अंश बताकर वायरल इसी अंश में एकलव्य का भी जिक्र है. सोशल मीडिया पर किए गए दावों के मुताबिक भील पुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा देने से मना कर दिया था. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब छोटी जाति के चलते योग्य व्यक्तियों को भी विद्या अध्ययन की मनाही की गई थी.
मध्य प्रदेश सरकार ने दी सफाई
मध्य प्रदेश सरकार ने इस पूरे प्रकरण पर सफाई दी है. सरकार ने सोशल मीडिया पर वायरल टिप्पणियों को भ्रामक और असत्य बताते हुए कहा है कि यह न तो हलफनामे का हिस्सा है, और ना ही किसी आधिकारिक नीति या नियम का. सरकार ने कहा है कि सोशल मीडिया पर वायरल अंश 17 नवंबर 1980 को गठित ओबीसी आयोग के अध्यक्ष रामजी महाजन की ओर से 22 दिसंबर 1983 में प्रस्तुत अंतिम प्रतिवेदन का हिस्सा है.
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सरकार ने साफ किया है कि महाजन आयोग की रिपोर्ट के साथ ही अन्य वार्षिक आयोग के प्रतिवेदन न्यायालयों में प्रस्तुत किए जाते रहे हैं.सोशल मीडिया पर किसी एक हिस्से को बिना संदर्भ के दिखाना निंदनीय प्रयास है. सरकार ने सफाई में यह भी कहा है कि महाजन आयोग ने ओबीसी के लिए 35 फीसदी आरक्षण लागू करने की सिफारिश की थी, लेकिन हमने केवल 27 फीसदी आरक्षण ही लागू किया. इससे भी यह स्पष्ट होता है कि हमारा निर्णय इस रिपोर्ट पर आधारित नहीं है. सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार करने वालों पर कार्रवाई की जाएगी.