दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक के मंच पर तीसरे और अंतिम दिन मोटिवेशनल गुरु, प्रोफेसर और लेखक विजेंद्र चौहान ने अपनी बातें रखीं. उन्होंने सक्सेस और संतुष्टि को लेकर कई दिलचस्प बातें कही. उन्होंने यह भी बताया कि दूसरों के बेचे गए सपनों से कैसे बचना है और अपने सपने और उसे पूरा करने का रास्ता खुद तय करना है.
विजेंद्र चौहान ने बताया कि जिसे हम सफलता कहते हैं वो एक चीज है और दूसरी चीज है जिसे हम सार्थकता या संतुष्टि कहते हैं. इनके बीच निरंतर चल रहा द्वंद है. ऐसा जब कोई व्यक्ति कहता है तो उसे बहुत गहरा यानी पढ़ा लिखा मान लिया जाता है. कभी-कभी सफलता के रास्ते भी लोगों में संतुष्टता आती है. यानी आपकी संतुष्टि का रास्ता सफलता से होकर भी जाता हो. ऐसा भी हो सकता है.
सफलता का मतलब क्या है?
इसलिए ऐसा मान लेना कि सफलता अलग चीज है और संतुष्टि अलग चीज. इसलिए ऐसा नहीं मानना चाहिए कि ये दोनों चीजें एक दूसरे की विरोधी चीजें हैं. सफलता का अंतिम रूप से मतलब क्या है. अंतत सफलता का मतलब है कि आपके पास कितनी ज्यादा मात्रा में आजादी है. अपने जीवन लिए भी आजादी और दूसरों के लिए भी फैसले करने की आजादी.
यूपीएससी करने वालों के लिए सुकून क्या है?
विजेंद्र चौहान ने बताया कि यूपीएससी या मीडिया या और तमाम दूसरी जगहों पर जो भागदौड़ दिखाई देती है. वो या तो अपनी जिंदगी के लिए कुछ आजादी हासिल करने के लिए होती है कि मैं जो चाहूं हो कर सकूं. मुझे यह न सोचना पड़े कि मेरी जेब में पैसा है कि नहीं और दूसरा अगर संभव हो तो दूसरों की जिंदगी को भी ऐसे ही प्रभावित कर सकूं.
ये जो प्रतियोगी परीक्षाओं से निकली हुई नौकरी होती है- एसडीएम बनना, डीएम बनना जैसा ये ऐसा अवसर देती हैं कि आप अपने तरीके से दूसरों की जिंदगी के लिए फैसला ले सकें. आपकी कलम से निकले हुए हस्ताक्षर से हो सके और लोगों की भी जिंदगियां बदल रही हों.मुझे नहीं लगता कि इसके बीच में हमें किसी द्वंद को खोजना चाहिए.
कैसे दूसरों को मोटिवेट करना एक इंडस्ट्री बन गया है
उन्होंने कहा कि सक्सेस का मंत्र क्या है? आज जो सक्सेस को लेकर मोटिवेशनल स्पीकर आज हैं, दुर्भाग्य से मेरे परिचय में भी आपने मोटिवेशनल स्पीकर लिखा हुआ है. जबकि, मेरी किताब जो है वो मोटिवेशनल नहीं है, ये मोटिवेशन को क्रिटिक करती है. क्योंकि मुझे लगता है दूसरों को सक्सेस के लिए मोटिवेट करना एक उद्योग बन गया है.
उन्होंने कहा कि मोटिवेशनल स्पीच इंडस्ट्री, इंफ्लुएंस इंडस्ट्री और कई मायनों में कोचिंग इंडस्ट्री अंतत क्या करने की कोशिश करती है. ये इंडस्ट्रियां आखिर क्या करती हैं? इनका काम है कि ये आपका स्वप्न तय करे और इन सपनों तक पहुंचने का रास्ता बताने का दावा करे. यह कोई नई चीज नहीं है, जो कोई 10-12 सालों से आया हुआ है. क्योंकि हमेशा से सपना सबसे ज्यादा बिकने वाली चीज रही है.
सबसे ज्यादा सपने बिकते हैं
किसी का सुंदर दिखने का एक सपना रहा है, किसी का सफलता पाने का सपना, किसी का आजादी पाने का सपना उनका स्वप्न है, किसी का ट्रेवल करने का सपना रहा है. और अलग-अलग उद्योग यही बेचने की कोशिश करते हैं तो यह शर्म की बात नहीं है. अब इसमें कोई कहे कि यह कोई उद्योग ही नहीं है तो यह आश्चर्यजनक बात है.
यात्रा का आनंद लेना ही सफलता और सुकून है
जिंदगी कभी भी आसान नहीं है. जिंदगी यात्रा है. अगर आप यात्रा का आनंद लेना नहीं चाहते, अगर आप यात्रा में सुकून महसूस नहीं करते तो कोई मंजिल आपको सुकून देने वाली नहीं है. इसलिए अपनी यात्रा को समझने और इसे एंजॉय करने की कोशिश करें. लबास्ना (प्रशासनिक अधिकारियों का ट्रेनिंग सेंटर) पहुंचने के बाद किसी को मोक्ष नहीं मिलता. वह फिर से एक नई यात्रा की शुरुआत भर है.
मैं एक शिक्षक हूं और मैं जब अपनी क्लास में छात्रों की चमकती हुई आंखों को देखता हूं. वह जो चमक है वहीं मेरी उपलब्धि है. बाकी तमाम उपलब्धियां कि आप किस मंच पर बोल रहे हैं या आपको कितना पैसा मिल रहा है, इत्यादि इत्यादि सब की अलग भूमिका है. लेकिन, अंतत एक शिक्षक के रूप में बच्चों की आंखों में जो चमक है, वहीं मेरी उपलब्धि है और वही मेरी सफलता है.
अगर आप गणित पसंद करते हैं और आप जब किसी सवाल में फंस जाते हैं. फिर जैसे ही उसका सोल्यूशन मिलता है तब जो आनंद आता है वही सुकून है. क्योंकि आप किसी सवाल में तीन घंटे तक फंसे हैं, लेकिन जैसे ही वो सॉल्व हुआ आपकी आंखों में एक चमक आती है. आप एक आनंद फील करते हैं. यही एचिवमेंट है. दुनिया में उससे तुलना करने वाली दूसरी और कोई चीज नहीं हो सकती है.
एल्गोरिद्म्स बेच रहे हैं सपने
विजेंद्र चौहान से जब पूछा गया कि आपकी किताब 'लुक अराउंड' में आपने लिखा है कि पढ़ने से ज्यादा आसपास की चीजें देखो, तो क्या लोग सोशल मीडिया या इंटरनेट पर जो चीजें देख रहे हैं वो सही कर रहे हैं. इस पर उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अगर गलती से आपने मेरी किसी रील को 5 सेकंड देख लिया तो एल्गोरिद्म्स आपको एक के बाद एक मेरी दूसरी रील्स भेजने लगता है.
फिर एक के बाद एक आप मेरी रील देखकर यह तय करना भूल जाते हैं कि आपको ये देखना था या नहीं. इसका मतलब आज एल्गोरिद्म तय कर रहा है कि आप क्या देखें या नहीं देखें. आज एल्गोरिद्म्स आपको सपने बेच रहा है.
अपना सपना खुद तय करें
इसलिए आप अपने सपनों को खुद तय कीजिए, किसी कोड या एल्गोरिद्म्स को यह तय नहीं करने दीजिए. आप खुद तय करना सीखिए कि आप क्या बनना चाहते हैं, क्या देखना चाहते हैं, क्या खाना चाहते हैं, क्या पहनना चाहते हैं. वरना ये कोड या ये एल्गोरिद्म्स बनाने वाले तय करते रहेंगे कि आपको आगे क्या करना है. इसलिए आप अपना सपना खुद तय करें.
विजेंद्र चौहान ने बताया कि रील्स देखते हुए हमारे अंदर कम्पैरिजन एंजायटी आ जाती है. आप अपनी जिंदगी की तुलना उन रील्स में दिखाई देने वाली चीजों से करने लगते हैं. फिर आप एंजायटी पालते हैं. मैं इंफ्लुएंसर इंडस्ट्री का हिस्सा ही हूं. इसलिए मेरी बात का विश्वास कीजिए, उन इन्फ्लुएंर्स की जिंदगी भी वैसी नहीं होती जैसी उनकी रील्स पर दिखाई जाती है. इसका मतलब है कि अपनी जिंदगी का किसी और की जिंदगी के बैकग्राउंड से तुलना मत कीजिए. वरना आपकी जिंदगी के लिए हमेशा यही एल्गोरिद्म्स और रील्स फैसले लेते रहेंगे.
बहुत कुछ अच्छा कर रहे Gen-Z, बस...
उन्होंने बताया कि Gen-Z की दुनिया में सबकुछ गलत ही नहीं हो रहा है. इसलिए ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया संवेदनाओं को मार देती है. क्योंकि हमने नेपाल के मामले में, या जैसमिन रिवोल्यूशन के मामले या अन्य देशों में जो आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया के जरिए चीजें कर रही है वो गलत है. लेकिन, ज्यादा से ज्यादा कंटेंट कंज्यूम करने से एक नंबनेस आती है. फिर आपको झझकोर देने के लिए दूसरे चीजों की जरूरत पड़ती है.
उदाहरण के लिए जब लैंड स्लाइंडिंग की कई खबरे आ रही थी. काफी वीडियो आ रहे थे. तब इसे देखकर लोग कहीं न कहीं आनंदित हो रहे थे. अलग बाद है कि वो इसका ढिंढोरा नहीं पीट रहे थे, लेकिन ऐसे वीडियो उन्हें आनंदित कर रहे थे और अंदर से उनकी संवेदनाओं को मार रहे थे. इसिलए अगर कहीं सोशल मीडिया या रील्स आपकी संवेदनाओं को मार रहा है तो हम कम मानवीय बन रहे हैं. इसलिए हमे सचेत रहना पड़ेगा.
खुद के अंदर पैदा करें क्रिटिकल थिंकिंग
विजेंद्र चौहान ने आगे कहा कि विद्यार्थियों में क्रिटिकल थिंकिंग पैदा होनी चाहिए. अगर आप लैंड स्लाइडिंग के वीडियो देख रहे हैं तो आपमें क्रिटिकल थिकिंग पैदा होनी चाहिए, तब आप सवाल करते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है. सरकार को क्या करना चाहिए, समाज को क्या करना चाहिए. अगर हम कोई वीडियो देखकर सवाल नहीं उठाते, उसे सिर्फ मजे के लिए देखते हैं और फिर अच्छा नहीं लगने पर दूसरा रील देखने लग जाते हैं तो ये आपको कमतर बनाती है. इसलिए हमें हर चीज पर सवाल करना सीखना चाहिए.
अगर हम ऐसा कर पाएंगे तो हम बेहतर मनुष्य बन पाएंगे.
विजेंद्र चौहान ने बताया कि अगर हम अपने खाली वक्त की गुणवत्ता की इज्जत नहीं करेंगे, तो आपके अंदर कुछ नया रचने की संभावनाएं कम होती जाएंगी. जिन लोगों ने अच्छी किताबे लिखीं, कुछ रचना बनाई, यकीन कीजिए, उनलोगों ने अपने खाली वक्त का उपयोग किया. उसकी इज्जत की. क्योंकि वो वक्त खाली नहीं था. अगर आप रूटीन की इज्जत नहीं करेंगे तो आप कूड़ेदान बन जाएंगे जो सिर्फ चीजों को कंज्यूम करेंगे और एक समय पर आकर कूड़ा ही उगलेंगे.
खाली समय की इज्जत करें
उन्होंने कहा कि जब मेरा सेमेस्टर खत्म हो जाता है तो मैं अपने छात्र-छात्राओं से कहता हूं कि आप मुझे तीन अच्छे सवाल दे दीजिए. मैं इसके जवाब नहीं मांगता, सिर्फ सवाल देने को कहता हूं. अगर ऐसा होता है तो मुझे लगता है कि मैंने अच्छा पढ़ाया. ठीक इसी तरह रात को सोने के समय आपने पूरा दिन जो करना था किया. बस रात को सोते समय अपने मन में तीन सवाल पैदा करें. अगर आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तो आप सिर्फ कंटेंट कंज्यूम कर रहे हैं और लोग इस ताक में बैठे हैं कि उन्हें आपका अटेंशन मिले और इसे वो एडवर्टाइजर को बेचे. तब आप एक प्रोडक्ट बन जाते हैं.
सक्सेस का मंत्र देने वालों से बचें
विजेंद्र चौहान ने कहा कि वैसे लोग जो सक्सेस का मंत्र देते हैं उनसे बचिए. अगर आपको कोई प्लेट में सजाकर, कोई शॉर्टकट दे रहा है तो आप जान लीजिए सफल वो होने वाला है आप नहीं. आप उनके लिए सिर्फ एक चारा है. किसी भी सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है.आपको बार-बाह दोहराने वाली चीजें, बोरिंग चीजें, रूटीन की चीजों को एंजॉय करना चाहिए.
क्योंकि अगर आप क्रिकेटर बनना चाहते हैं और मान लीजिए आप एक इंटरनेशनल क्रिकेटर बन भी गए तो एक्साइटमेंट तो सिर्फ मैच में ही मिलेगा. बाद बाकी तो आपको प्रैक्टिस, फिटनेस, डायट के लिए रूटीन चीजें और रोज-रोज की बोरिंग चीजें ही करनी पड़ेंगी. क्योंकि, असल जिंदगी में सफलता का एक्साइटमेंट इन्हीं रूटीन वर्क को करने से आता है. इसलिए हमें इन्हें एंजॉय करना सीखना चाहिए.
सिर्फ पैशन फॉलो करने से बचें
विजेंद्र चौहान ने कहा कि सिर्फ पैशन फॉलो करने वाली दुनिया से बचिए. पैशन फॉलो करिए, लेकिन पैशन फॉलो करने के लिए भी जो रास्ते हैं वो भी रूटीन वर्क और बोरिंग कहे जाने वाले चीजों से होकर ही जाता है. इसलिए पैशन फॉलो कीजिए, लेकिन उसके लिए भी रूटीन बनाना पड़ेगा. क्योंकि, सक्सेस पाने का कोई भी शॉर्टकट नहीं है. इसके लिए आपको निरंतर एक रूटीन फॉलो करना ही पड़ेगा.
सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले जान लें, आपका सफल होना या न होना केवल आपकी मेहनत, आपकी लगन और कमिटमेंट पर निर्भर नहीं करता है. आपने प्रिवेलेज और अपनी कमियों को पहचानना और उनके पार जाने पर सफलता मिल पाएगी. इसलिए खुद को जानने की कोशिश कीजिए.