Sahitya Aajtak 2025: राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में आयोजित साहित्य आजतक का तीन दिवसीय कार्यक्रम अपने पूरे शबाब पर है. साहित्य के इस महापर्व का आज दूसरा दिन है. शनिवार, दूसरे दिन के एक सत्र 'अधिकार, समानता और न्याय' में जाने-माने प्रोफेसर-लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर डॉ. रीतिका खेड़ा ने सामाजिक न्याय, आदर्श राज्य, समानता जैसे मुद्दों पर बात की.
सत्र के दौरान डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि समाज में राज्य सत्ता का उदय इसलिए हुआ ताकि सामाजिक सुरक्षा का वातावरण बना रहे. पहले राज्य सत्ता नहीं थी तब कुछ लोगों के मन में सबकुछ हथियाने की लालच आ गया जिसे रोकने के लिए राजंदड का जन्म हुआ.
उन्होंने कहा, 'असमानता खत्म करने के लिए राज्यसत्ता की जरूरत होती है. महाभारत में जब युधिष्ठिर भीष्म से पूछते हैं कि राजा का उदय कैसे हुआ? तो भीष्म बताते हैं कि पहले तो राजा की जरूरत नहीं थी, सब एक-दूसरे का सहयोग करते थे, आनंद से रहते थे, लेकिन फिर कुछ लोगों के मन में लालच पैदा हुई और उन्होंने दूसरों को परेशान करना शुरू किया. ऐसे दुष्टों का रोकने के लिए राजदंड की रचना हुई.'
उन्होंने कहा कि आज राज्यसत्ता के बावजूद असमानता कायम है और ऐसे में राज्य की कल्याणकारी योजनाएं लोगों का हक हैं. प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, 'कुछ लोग बेहद संपन्न हैं...अपनी पत्नी को एयरक्राफ्ट गिफ्ट दे सकते हैं, बेटी को 18 करोड़ की अंगूठी गिफ्ट कर सकते हैं और कुछ लोग 10 हजार पाकर समझते हैं कि उन्हें बहुत कुछ मिल गया. इन्हीं चीजों के लिए राज्यसत्ता की जरूरत होती है.'
प्रोफेसर ने कहा कि जरूरतमंद लोगों के लिए योजनाएं चलाना, उन्हें पैसे देना 'रेवड़ी' नहीं है. ये सब लोगों के हक हैं, किसी सरकार की कृपा नहीं.
इसी मुद्दे पर बोलते हुए प्रोफेसर रीतिका ने कहा कि रेवड़ी और हक पर हमारा दोहरा स्टैंड हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 1961 में मातृत्व अवकाश का चलन शुरू हुआ. हम इसका स्वागत करते हैं. कामकाजी महिलाओं को इसी के तहत आज 6 महीने का मातृत्व अवकाश मिलता है जिसमें उन्हें पूरी सैलरी भी मिलती है और उनकी नौकरी भी सुरक्षित रहती है. लेकिन ये हक केवल वैसी कामकाजी महिलाओं को मिला जो कि पूरी महिला आबादी का लगभग 10 प्रतिशत ही हैं.
उन्होंने आगे कहा कि लेकिन जब 2013 में खाद्य सुरक्षा कानून के तहत इसी तरह का प्रावधान बना कि बाकी बची देश की 90 प्रतिशत वंचित महिलाओं को बच्चा होने पर 6 हजार रुपया दिया जाएगा तब कुछ प्रगतिशील महिलाओं ने ही इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि अगर ऐसे बच्चा करने पर पैसे दिए गए तो गरीब महिलाएं और बच्चे पैदा करेंगी.
प्रोफेसर रीतिका ने कहा, 'ये द्वंद्व साफ दिखता है जब हम जैसे मध्य वर्ग के लिए कुछ होता है तो हम कहते हैं कि ये तो हमारा हक है और जब गरीबों के लिए कुछ होता है तो उसे तुरंत रेवड़ी का जामा पहनाया जाता है.'
फ्रीबीज पर ही बात करते हुए प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि बीजेपी जहां विपक्ष में होती है, वहां फ्रीबीज का विरोध करती है लेकिन खुद वही काम धड़ल्ले से करती है.
उन्होंने कहा, 'हमारे समाज में जनकल्याणकारी योजनाओं पर एक तरह से आम राय है. ये हर सरकार करती है लेकिन जब विपक्ष में होती है तो उसका विरोध करती है. लेकिन ऐसा योजनाओं के लिए के लिए रेवड़ी शब्द पीएम ने लोकप्रिय बनाया जिसके बाद रेवड़ी कल्चर एक मुहावरा बन गया.'
उन्होंने कहा, 'भाजपा की अद्भुत नीति है, अद्भुत राष्ट्रवाद है. दूसरों की रेवड़ी रेवड़ी है, इनकी रेवड़ी भगवान का प्रसाद है.'
सत्र के दौरान आधार पर भी बात हुई जहां दोनों प्रोफेसर्स की राय बंटी हुई दिखी. प्रोफेसर रीतिका ने कहा कि आधार से प्राइवेसी को नुकसान हुआ है तो वहीं प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि नागरिकों की कुछ जानकारियां सरकार के पास होनी चाहिए ताकि आतंकवाद जैसे मुद्दों को संबोधित करने में मदद मिल सके.
प्रोफेसर रीतिका ने कहा, 'निजता का सवाल आधार से जुड़ा है. ये कांग्रेस के समय ही शुरू हुआ था. आधार हर निवासी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है और यह नागरिकता स्थापित नहीं करता. बच्चों के लिए भी इसे अनिवार्य कर दिया गया है. अगर मेरा आधार, मेरा अकाउंट, मेरे काम से जुड़ा है, किसी कॉन्सर्ट में जाओ तो वहां भी आधार चेक हो रहा. ऐसे में आधार जीवन के अलग-अलग पहलू से जुड़ गया है. आपकी हर जानकारी बाहर है, ऐसे में आदमी धोखाधड़ी का काफी आसान शिकार हो गया है. लोगों की निजी जानकारी आराम से निकाली जा सकती है.'
प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, 'गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी आधार के घोर विरोधी थे लेकिन पीएम बनते ही उन्होंने सबसे पहला काम आधार लागू करने का किया. मैं इससे निराश हूं. लेकिन मैं मानता हूं कि राष्ट्र की सुरक्षा के लिए लोगों की जानकारी सरकार के पास होनी चाहिए ताकि आतंकवाद जैसी चुनौतियों से निपटा जा सके.'
विकास की परिभाषा देते हुए रीतिका खेड़ा ने कहा, 'सत्तापक्ष वाले कहते हैं कि सड़के चौड़ी, इमारतें ऊंची होनी चाहिए लेकिन विकास अर्थशास्त्री कहते हैं कि विकास का केंद्रबिंदु इंसान की खुशहाली होनी चाहिए. क्या आप स्वस्थ हैं, शिक्षित हैं, पूरी तरह से जी पाते हैं... विकास का यही पैमाना है? जब हमारा विकास होगा, तभी दुनिया का विकास होगा. यही असली विकास है.'
रीतिका खेड़ा ने कहा कि विकास की बात हो तो लोग अमेरिका की तरफ देखते हैं लेकिन अमेरिका विकास का अच्छा उदाहरण नहीं है.
उन्होंने कहा, 'अमेरिका विकास का अच्छा उदाहरण नहीं, हमें विकास देखना है तो नॉर्वे, स्वीडन की तरफ देखना चाहिए. वहां विकास की परिभाषा पब्लिक ट्रांसपोर्ट, अच्छी शिक्षा से मापी जाती है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट अच्छा है वहां ताकि लोग कम से कम गाड़ी इस्तेमाल करें.'
प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, 'विकास के नाम पर गुड़गांव जैसा शहर बना दिया लेकिन एक बारिश में नाव चलने लगती है. विकास के समय इन चीजों का ध्यान का देना चाहिए. अमेरिका में डबलरोटी पेट्रोल से महंगी है जो कि विकास का हॉलिस्टिक अप्रोच नहीं है.'
इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर रीतिका ने कहा, 'विकास तब कहा जाएगा जब या तो सब खुशहाल हो या तो कोई न हो. गाजा में युद्ध चल रहा है, बच्चे मारे जा रहे हैं, हमारे यहां नहीं हो रहा तो इसका मतलब यह नहीं हम उस पर आंख मूंद लें. हमें गाजा पर बोलना होगा. एक जगह विकास विकास नहीं बल्कि ये सब जगह होना चाहिए.'
प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, 'अवसर की समानता न्याय की आदर्श अवधारणा है. मतलब वंचितों को समानता की स्थिति तक पहुंचाना ही न्याय है. धर्म, जाति, रंग से परे सबको समानता मिले. अवसर की समानता की राह में बाधाओं को दूर करना न्याय की आदर्श अवधारणा है.'