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'शिबू सोरेन समाज सुधारने में फेल हुए, राजनीति में...', क्यों बोले धरमबीर सिन्हा

'लाल समाधि' पुस्तक के लेखक धरमबीर सिन्हा ने कहा कि शिबू सोरेन भले ही संसदीय राजनीति में सफल रहे, लेकिन वह समाज सुधारने में फेल हुए. उन्होंने अपनी इस बात के पीछे कारण भी गिनाए.

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धरमबीर सिन्हा ने राजनीति और पैसे पर भी खुलकर की बात (Photo: ITG)
धरमबीर सिन्हा ने राजनीति और पैसे पर भी खुलकर की बात (Photo: ITG)

आजतक के सालाना लिटरेचर फेस्ट साहित्य आजतक 2025 का समागम शुरू हो चुका है. इस आयोजन के दूसरे दिन लेखन के सरोकार और हम लिखते क्यों हैं, इस विषय पर भी चर्चा हुई. लेखन के सरोकार, हम लिखते क्यों हैं नामक सेशन में वरिष्ठ पत्रकार और लाल समाधि के लेखक धरमबीर सिन्हा, पत्रकार और लेखक सतीश सिंह और हाशिए पर पुस्तक के लेखक केडी सिंह ने बेबाकी से अपनी राय रखी.

जातीय प्रश्न उठाने के सवाल पर धरमबीर सिन्हा ने कहा कि हिंदी पट्टी में जाति की बात तो अक्सर होती है. जाति के पुनरुत्थान की बात है. जाति से आगे बढ़कर कुछ लोग परिवारवाद पर चले गए, लेकिन इसके आर्थिक और सामाजीकरण की जरूरत है जो हिंदी पट्टी में नहीं हुआ. उन्होंने नाडार जाति का उदाहरण दिया और कहा कि आंदोलन हुआ और महिलाएं न सिर्फ ऊपर वस्त्र पहनने लगीं, बल्कि दुनिया आज गुड़ के लिए जानती है. धरमबीर सिन्हा ने कहा कि हिंदी पट्टी में आर्थिकीकरण और सामाजिकीकरण नहीं हुआ, जो होना चाहिए था.

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उन्होंने झारखंड की आदिम जनजाति असुर और अन्य जनजातियों का उदाहरण दिया और कहा कि टाटा ने भी असुर जनजाति के लोगों को खोजा, कि कैसे हथियार बनाते हैं जो जंग नहीं लगती. सबर जनजाति को अब कोई खोजने वाला नहीं है, जिससे शबरी थीं और राम बेर खाकर राम बने. धरमबीर सिन्हा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की स्थापना के समय के स्वरूप की चर्चा करते हुए कहा कि यह शुरू से संसदीय पार्टी नहीं थी. एके रॉय कम्युनिस्ट नेता थे और कभी पेंशन नहीं लेते थे. उनके मित्र थे विनोद बिहारी महतो. कई आदिवासी आज भी अपनी मां का भी कत्ल करके आते हैं कि इसने मेरे बच्चे को खा लिया.

धरमबीर ने कहा कि सामाजिक कुरीतियों के ऐसे दौर में एक नारा दिया कि हम लाल खंड बनाएंगे. वह शिबू सोरेन को जोड़ते हैं. एके रॉय ने शिवाजी समाज विनोद बिहारी महतो को दे दिया कि आप सामाजिक कुरीतियां निकालो और शिबू सोरेन को शिक्षा की ज्योत जलाने और साहुकारों-महाजनों को खदेड़ने की जिम्मेदारी दे दी. एके रॉय और विनोद बिहारी महतो, दोनों वामपंथी थे. बाद में पार्टी बनी और शिबू सोरेन दुमका चले गए और सांसद भी बने. धरमबीर सिन्हा ने कहा कि शिबू सोरेन संसदीय राजनीति में भले जीत गए, समाज सुधारने में फेल हुए.

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उन्होंने कहा कि विनोद बिहारी महतो समाज सुधारने में सफल रहे, संसदीय राजनीति में फेल हुए. संथाल में आज भी डायन बताकर हत्याएं हो रही हैं. धरमबीर सिन्हा ने कहा कि गठबंधन सत्ता पाने के लिए मत करिए, मुद्दे पर बात करिए. सामाजिक मुद्दों पर बात करके कभी आगे नहीं बढ़े. वामपंथ को लेकर फिर कहूंगा कि पहले की तरफ आगे बढ़ना होगा. सत्तामुखी होकर चलेंगे तो लोग भूल जाएंगे, आपको जनमुखी होना होगा. उन्होंने कहा कि बिहार चुनाव में ही देखिए, चंद्रशेखर की हत्या करने वाले शहाबुद्दीन. वही पार्टी सीपीआईएमएल उसी ढर्रे पर चले जाते हैं और जो आपके कैडर को मारा, उसके जुलूस निकल रहे और अमर रहे के नारों में लाल झंडे भी दिख रहे हों, सोचिए कैडर का मन कितना कचोटता होगा.

धरमबीर सिन्हा ने कहा कि आज की डेट में लोग सत्ता से पैसे, पैसे से सत्ता... ज्यादा करोड़पति हैं. लेफ्ट भी करोड़पति के साथ खड़ा रहा, टिकट भले ही खाकपति को दिया. कैडर की सुनिए, कैडर क्या चाहता है. उन्होंने नक्सलवाद के शुरुआती दिनों की चर्चा की और कहा कि तब तमाम विश्वविद्यालयों के छात्र भी पढ़ाई छोड़कर नक्सलवाद की ओर गए. दुर्गापुर के आरआईटी में ऐसा ही सम्मेलन चल रहा था, बैच बांटे जा रहे थे और एक लड़का गया और कहा कि मुझे भी चाहिए.

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धरमबीर सिन्हा ने कहा कि लड़के की मांग पर अधिकारी ने कहा कि सक्रिय लोगों को ही यह मिलता है. जिसके हाथ वर्ग शत्रु के खून से रंगे हों, उसको ही मिलता है. वह एक कंपनी के गार्ड को चाकू मारकर फिर से मंच पर पहुंचा. यह बता देगा कि किस तरह का नक्सलवाद को लेकर किस तरह का रोमांटिज्म था.

उन्होंने कहा कि एक समय था, जब चारू मजूमदार और कानू सान्याल तक यही कहते थे कि बंदूक की नोंक पर लोकतंत्र को लाना है. एक समय ऐसा भी आया जब कानू सान्याल को आत्महत्या करना पड़ा. धरमबीर सिन्हा ने कहा कि आखिरी विकल्प बंदूक मिली. आदिवासी विस्थापित हुए, पुरुष शहर की ओर चला गया दिहाड़ी करने. महिलाएं अपनी ही जमीन पर दिहाड़ी मजदूरी करती हैं. उन्होंने कहा कि यही भूख किचन में पहुंचती हैं और यही विवश करती हैं.

ये कहने का युग, सुनने का नहीं- केडी सिंह

वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी केडी सिंह ने कहा कि ये कहने का युग है, सुनने का नहीं. हर कोई अपनी बात कहना चाहता है, सुनना किसी की नहीं चाहता. उन्होंने कहा कि जब कोई आदमी किसी को सुनना नहीं चाहे, पढ़ने की संभावनाएं तब भी बची रह सकती हैं. जब भी समाज को इतिहास में किसी भी सभ्यता को दुख-दर्द-हताशा से गुजरा है, वहां का साहित्य उस वक्त सबसे ज्यादा समृद्ध और गुणवत्तापूर्ण होता है. केडी सिंह ने कहा कि जब हर घर में आइने की जरूरत है, तब क्या समाज को आइने की जरूरत नहीं है. साहित्य समाज का आइना है. इसलिए हर युग के साहित्य में आपको वही दिखेगा, जो उस वक्त समाज में होगा.

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उन्होंने कहा कि हम जिस लेखन की आलोचना करते हैं, होता यही है कि जब आपको अपनी शक्ल आइने में अच्छी नहीं लगती, तब आप कहते हैं कि आइना खराब है. ये दौर रंग-बिरंगा है. केडी सिंह ने कहा कि लिखना अक्षर से होता है और अक्षर क्षरित नहीं होता. इसलिए लिखना जरूरी है. केडी सिंह ने सामाजिक कुरीतियों को लेकर सवाल पर कहा कि बुरा समाज बुरा साहित्य रचेगा, अच्छा समाज अच्छा साहित्य रचेगा. उन्होंने भोपाल के पास भीम बैठका का उल्लेख करते हुए कहा कि आदिवासियों ने वहां की दीवारों पर कुछ चित्र उकेरे हैं.

केडी सिंह ने कहा कि जरा सोचकर देखिए कि उन लोगों ने इतने प्रतिकूल मौसम में कैसे चित्र उकेरे. दरअसल, वह लोग अपने होने का प्रमाण छोड़ना चाहते थे कि हम यहां हैं. उन्होंने वाचन परंपरा का जिक्र करते हुए कहा कि जब लेखन का अविष्कार हुआ्र, तब हम तब की लिखी किताबें आज पढ़ते हैं. अब की लिखी किताबें आने वाले समय में पढ़ी जाएंगी.

केडी सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जब भी कोई यह कहता है कि व्यस्तता की वजह से नहीं लिखा जा सकता, मेरी समझ से व्यवस्तता न हो तो नहीं लिखा जा सकता. व्यस्तताएं साहित्यिक क्षमता की वृद्धि करती हैं, कम नहीं.उन्होंने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के लड़खड़ाने और रामधारी सिंह दिनकर के उन्हें संभालने के प्रसंग का उल्लेख भी किया. केडी सिंह ने 'इल्म को खरीदकर...' गजल की पंक्तियां भी सुनाईं. इस सत्र के मंच पर ही आजतक के न्यूज डायरेक्टर सुप्रियो प्रसाद ने धरमबीर सिन्हा की पुस्तक लाल समाधि का विमोचन किया.

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