Sahitya Aajtak 2025: आजतक का लोकप्रिय कार्यक्रम 'साहित्य आजतक' दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रहा है जहां साहित्य के सितारों का जमावड़ा लगा है. 'साहित्य आजतक' में उपन्यासकार और कहानीकार दिव्य प्रकाश दुबे भी पहुंचे हैं जहां उन्होंने कहानी कहने की कला से लोगों का दिल जीत लिया और पूरे सेशन के दौरान दर्शकों को बांधे रखा. 'किस्से और कहानियां' सेशन के दौरान उन्होंने कई कहानियां सुनाई, जिसे सुन दर्शकों का खूब मनोरंजन हुआ.
दिव्य प्रकाश दुबे ने अपनी एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार है- पहले मैं शेयरिंग में कैब बुक करता था. उस वक्त मैं मुंबई में रहता था. शेयरिंग कैब बुक करने की वजह ये थी कि उससे पैसा बच जाता था और मन में एक उम्मीद होती थी कि शायद कोई 'शीला' मिल जाए. उस दिन मैंने कैब बुक किया... मैं पृथ्वी कैफे के पास खड़ा था जो कि अमिताभ बच्चन साहब के घर के बहुत पास था.
ड्राइवर को मैं बता रहा हूं कि यहां आ जाओ, वहां आ जाओ. फिर मैंने उससे कहा कि बच्चन साहब का घर जानते हो? वही आ जाओ. कैब आई तो मैंने देखा कि उसमें पहले से ही शीला बैठी हुई हैं. मेरे साथ ये पहली बार था कि शेयरिंग कैब में सामने वाली कोई लड़की हो.
मैं जब गया तो स्टाइल मारने के लिए मैंने कह दिया कि अरे, मैं तो शेयरिंग में जाता ही नहीं. तो शीला ने कहा कि अरे कोई बात नहीं आप आ जाइए... मुझे बहुत सही लगा और मैं बैठ गया.
चूंकि मैं बच्चन साहब के घर के बाहर से कैब में बैठा था तो मैंने सोचा कि अरे, ये तो बहुत अच्छा मौका है, शीला जी को इंप्रेस करने का. मैंने फोन बंद किया और फिर अपने एक काल्पनिक दोस्त को फोन मिलाने का बहाना बना कान पर फोन सटा लिया. मैंने उससे कहा कि और... हां, हां, हिमांशु भाई बच्चन साहब को तो मेरी स्क्रिप्ट पसंद आ गई. वो कह रहे हैं कि ऐसी स्क्रिप्ट तो मैं बहुत दिनों से ढूंढ रहा था. वो कह रहे हैं कि बस ये दो-तीन चीजें स्क्रिप्ट से हटा दें तो बात बन जाए.
मैं फोन पर फेंक रहा था. हिमांशु ने फिर मुझसे पूछा कि फिर क्या हुआ तो मैंने बताया कि मैंने भी कह दिया कि आप होंगे बच्चन साहब लेकिन हम भी हरिवंश राय बच्चन के फैन हैं, स्क्रिप्ट तो नहीं बदलूंगा. तो फिर बच्चन साहब ने कहा कि मैं तो स्क्रिप्टराइटर्स को ऐसे ही जज कर लेता हूं और जो स्क्रिप्ट बदल दें, उन्हें तो मैं राइटर ही नहीं मानता. बहुत दिनों बाद ऐसा लेखक मिला है...ये एटिट्यूड मैंने सलीम-जावेद में ही आखिरी बार देखा था.
जब मुझे लगा कि मैंने ठीक-ठाक फेंक दिया है, काफी खेल गया हूं तो फोन रखने का माहौल बनाया और कहा कि बच्चन साहब ने मुझे गले लगाया और कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे सलीम साहब और जावेद साहब एक साथ गले रह रहे हैं... इसके बाद मैंने फोन रख दिया.
जैसे ही मैंने फोन रखा तो शीला जी ने मुझसे पूछा, 'क्या आप लेखक हैं?' मैंने कहा, 'लिखवाने वाला तो वो है. हम तो बस कलम चला लेते हैं...थोड़ा-बहुत.' शीला जी ने कहा कि ये तो बहुत अच्छी बात है कि आप लिखते हैं और बच्चन साहब को भी सुनाकर आए हैं. मैंने कहा कि हां, व्यक्ति भी बढ़िया हैं वो, हम लोग पार्टियों में मिलते थे, मन भी था मिलने का, बच्चन जी कहते थे कि दुबे जी आपके साथ कुछ करना है.
मैं शीला जी को फेंक रहा था तभी उन्होंने कहा कि आप अपनी किताब का लिंक भेज देंगे क्या? मैंने सोचा कि ये तो बहुत अच्छा हो गया, लिंक भी नहीं मांगना पड़ा. इतने में मेरा स्टॉप आ गया.
मैं चलने लगा तो शीला जी ने कहा कि आप लिखते हैं, ये बहुत बढ़िया बात है. मैं हिंदी किताबें पढ़ती भी हूं. बस आपकी जानकारी के लिए बता दूं ताकि आपको रात में अच्छे से नींद आए. मैं बच्चन साहब की सोशल मीडिया टीम में काम करती हूं. सर 10 दिन से शहर में नहीं हैं, लेकिन अगर मुझे आपकी किताब पसंद आई तो मैं उसे बच्चन साहब तक पहुंचा दूंगी. ये कहानी वहीं पर उस दिन खत्म हो गई.