दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में तीन दिनों तक चले साहित्य आजतक 2025 का शानदार समापन हो गया है. यह साहित्यिक महाकुंभ कविताओं, कहानियों, बहसों, विचारों और संगीत का ऐसा संगम बना, जिसने राजधानी को एक सांस्कृतिक उत्सव में बदल दिया. रविवार को तीसरे और आखिरी दिन मंचों पर एक साथ कई दिग्गज, कई चर्चित चेहरे और कई यादगार सत्र हुए. भीड़ का जोश अपने चरम पर था और स्टेडियम में बार-बार तालियों की गड़गड़हाट गूंज रही थी.
रविवार को स्टेडियम का माहौल सुबह से ही अलग था. दर्शकों की भीड़, मंचों पर सजती रोशनी और दूर से आती कविताओं की गूंज, सब मिलकर एक अद्भुत सांस्कृतिक उत्सव की अनुभूति करा रहे थे. तीनों मंचों हल्ला बोल चौपाल, दस्तक दरबार और साहित्य तक पर ऐसे-ऐसे सत्र होने थे, जिनके लिए दर्शक पहले से ही बेताब थे. कार्यक्रम का भव्य समापन सुप्रसिद्ध गायिका नेहा कक्कड़ की म्यूजिकल नाइट के साथ हुआ जिसमें दर्शक झूमते हुए नजर आए.
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तीन दिनों के आकर्षणों में से एक था कुमार विश्वास का ‘अपने–अपने राम’. साहित्य आजतक के तीसरे दिन उनकी रामकथा का आखिरी सत्र था. दर्शकों की भारी भीड़ इस बात को साबित करती है कि साहित्य प्रेमियों के लिए यह एक ऐसा मौका था जिसे वे खोना नहीं चाहते थे. उनकी कविताओं, दृष्टांतों और मंच-संवादों ने जैसे पूरे आयोजन को एक आध्यात्मिक गहराई से जोड़ दिया.
हल्ला बोल चौपाल: दिन भर सितारों की बरसात
इसके बाद मंच पर एक से बढ़कर एक चर्चित चेहरे आते रहे. स्मृति ईरानी, जो अपनी अभिनय, लेखन और राजनीति पर चर्चा करती नजर आईं.
‘पाताल लोक’ से लोकप्रिय हुए जयदीप अहलावत, अपनी सादगी और अभिनय यात्रा के साथ मंच पर छाए रहे. प्रसिद्ध गीतकार इरशाद कामिल ने अपनी चर्चित लाइनों ‘सैयारा तू तो बदला नहीं है…’ गाने के बोल के पीछे की कहानी सुनाई.
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शाम ढलते-ढलते देवेशी सहगल और विशाल मिश्रा ने सूफियाना और soulful presentation से माहौल को सुरों की गहराई से भर दिया. चेतन भगत अपने नए अध्याय की वापसी करते नजर आए. इस बार लेखक से आगे बढ़कर कंटेंट क्रिएटर के रूप में भी. दिन का अंत हुआ नेहा कक्कड़ के ग्रैंड फिनाले से, जिनके गानों ने स्टेडियम में एक संगीत समारोह जैसा जोश भर दिया.
दस्तक दरबार: विचार, विमर्श और कहानियों की दुनिया
दूसरे मंच पर पूरी तरह अलग ही रंग था. लोकतंत्र और राजनीति पर दिग्गज पत्रकार शाहिद सिद्दीकी, नीरजा चौधरी और राजदीप सरदेसाई ने बेबाक चर्चा की. साध्वी भगवती सरस्वती ने मन, आत्मा, मोक्ष और जीवन-परिवर्तन की बातें कर माहौल को आध्यात्मिक छटा से भर दिया. दिव्य प्रकाश दुबे, परितोष त्रिपाठी और याह्या बू़टवाला जैसे लोकप्रिय कथाकारों ने कहानियों की दुनिया में दर्शकों को डुबो दिया.
सेक्सुअल हेल्थ पर खुली और वैज्ञानिक बातचीत सत्र में डॉ तान्या नरेंद्र और डॉ किरण सेठी ने यह संदेश दिया कि ज्ञान तब ही सार्थक है जब वह संकोच तोड़े. शाम को ग्रैंड मुशायरा ने उर्दू अदब के शेरों से आयोजन को एक अलग ऊंचाई दी.
साहित्य तक: किताबों, कविताओं और विचारों का असली संगम
तीसरे मंच का फ्लेवर था विचार, चेतना, रचनात्मकता और साहित्यिक डेप्थ. आईएएस अधिकारियों से लेकर लेखकों तक सज्जन यादव, नवीन चौधरी और रत्नेश्वर ने ‘ज़िंदगी के ताले खोलने’ पर प्रेरक सत्र लिया. हिंदी कविता की त्रयी माधव कौशिक, ओम निश्चल और नितीश्वर कुमार ने श्रोताओं को कविता की यात्रा कराई.
कहानीकारों, आलोचकों और उर्दू साहित्य के महारथियों ने भाषा, समय और साहित्य के बदलते रूपों पर गहन चर्चा की. प्रो. खालिद जावेद जैसे उर्दू साहित्य के दिग्गज की मौजूदगी ने मंच को गंभीरता और गरिमा से भर दिया.