राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रहे 'साहित्य आजतक 2025' के दूसरे दिन 'जूते फटे पहन के आकाश पे चढ़े थे…' सेशन में देश के मशहूर गीतकार, लेखक और कवि मनोज मुंतशिर शुक्ला शामिल हुए. भावनात्मक गहराई और बातचीत के सहज अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले मनोज मुंतशिर ने आते ही माहौल में एक अनोखी ऊर्जा भर दी. उन्होंने अपनी रचनाओं, संघर्ष, सफलता और शब्दों की शक्ति पर ऐसी बातें कही, जो सीधे दिल में उतरती चली गईं.
इस दौरान उन्होंने अपने कई लोकप्रिय गीतों और कविताओं का संदर्भ दिया. उन्होंने बताया कि कैसे साधारण से दिखने वाले जीवन के अनुभव सबसे असाधारण पंक्तियों को जन्म देते हैं. भीड़ में बैठे हर श्रोता ने महसूस किया कि मनोज मुंतशिर सिर्फ लिखते नहीं, वे शब्दों को अपनी आवाज से जीवंत भी कर देते हैं.
मनोज मुंतशिर के साथ इस सेशन को एंकर श्वेता सिंह ने आगे बढ़ाया. मनोज ने बताया कि ये जो टाइटल है, इसकी कहानी मजेदार है. मेरे कॉलेज का टाइम था. मैंने अपनी माशूका को बोल दिया कि मुझे गाने लिखने हैं फिल्मों में. तो मुझसे कहा गया कि सपने देखो, लेकिन औकात में रहकर देखो. मैंने कहा कि औकात में रहकर सिर्फ किराए के मकान देखे जाते हैं. सपने वही हैं, जो औकात से बाहर देखे जाते हैं. बुलंदियों का रिश्ता डिजाइनर फुटवेयर से नहीं, फटे जूतों से होता है.

मुंबई की बारिश में मैं सचमुच फटे जूते पहनकर संघर्ष किया था. एक प्रोडक्शन हाउस में पहुंचा तो वहां डांटा गया था. मगर आज उस प्रोडक्शन हाउस के मालिक मेरे दोस्त हैं. उनके साथ मैंने कई फिल्में की हैं. आपकी जेब में अगर सपनों के सिक्के भरे हुए हैं, तो कोई गरीब नहीं.
अमेठी से निकलकर मनोज मुंतशिर शुक्ला बनने की कहानी शेयर की. उन्होंने कहा कि साल 2005 में मेरी पहली फिल्म रिलीज हुई थी, छह साल के संघर्ष के बाद... उस वक्त खुशी से पागल हो गया था. अंधेरे में एक थियेटर है, वहां एक दोस्त और पत्नी के साथ फिल्म देखने पहुंचा. आधा घंटा लाइन में लगा, मगर टिकट नहीं मिला. उस दिन मेरी फिल्म देखने वाले सिर्फ हम ही थे. थियेटर वाले ने साइड में होने को कह दिया. वहां कोई चौथा फिल्म देखने नहीं आया. इसके बाद जब बाहुबली रिलीज हुई तो फिर तीन टिकट लिए, फिर नहीं मिला. इस बार पूरा हिंदुस्तान पूछ रहा था कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा.
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मनोज मुंतशिर ने कहा कि अधूरा प्यार इतना बुरा नहीं होता, जितना चिल्लाते रहते हैं. अगर पूरा भी हो जाता तो क्या कर लेते. अधूरा प्यार पहाड़ों में जाता है, महफिलें जमाता है, यारबाजियां करता है, और पूरा प्यार संडे के दिन घर के कामों में लगा होता है. मैं इंदीवर को सुनकर आया था... मेरा दल खुला है, खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए... जब छोटे शहर का लड़का मुंबई पहुंचा तो कहा गया कि जो तुम लिख रहे हो, वो कोई सुनता नहीं है. वहां चल रहा ... मैं लड़का पों, पों.. ये सब सुनकर मुझे कल्चरल शॉक लग गया था कि मैं कैसे लिखूंगा ये सब... बड़ा समय लगा - ये गलियां मेरी गलियां... तक का सफर तय करने में.
सत्र में बातचीत के दौरान मनोज ने लेखन पर बेहद गंभीर चर्चा की. उनके शब्दों में...
'...अगर इस दुनिया में कोई भी लिखने वाला आपसे आके ये कहे कि मैं कंप्लीटली ओरिजिनल राइटर हूं, उससे बड़ा झूठा कोई नहीं है, उसको सुनिएगा मत आप लोग. ये आपके इंटेलेक्ट की तौहीन है, आपके आईक्यू की तौहीन है कि कोई राइटर यहां बैठ के ये कहे कि मैंने आज के जमाने में मैंने सबकुछ ओरिजिनल लिखा. तकरीबन 800 गाने और 100 फिल्में लिखने के बाद मैं आपसे कह रहा हूं कि मैंने अपनी जिंदगी में एक भी ओरिजिनल गाना नहीं लिखा है. अगर मोमिन ने नहीं लिखा होता- तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नहीं होता... अगर सैकड़ों साल पहले मोमिन ये लिखकर नहीं गए होते तो मनोज मुंतशिर कभी नहीं लिख पाता- कि तू मेरी नींदों में सोता है, तू मेरे अश्कों में रोता है... सरगोशी सी है खयालों में, तू न हो फिर भी तू होता है. मोमिन थे, इसलिए मनोज मुंतशिर हैं. अगर फिराक गोरखपुरी ने नहीं लिखा होता- कि मुझे गुमरही का नहीं खौफ कोई, तेरे दर को हर रास्ता जाए है. तो मनोज मुंतशिर कभी नहीं लिख सकता था- तेरे संग यारा मैं, कभी किसी गली से जाऊं मैं... अगर बाबा तुलसीदास ने नहीं लिखा होता- जब आवै संतोष धन, सब धन धूल समान. तो मनोज मुंतशिर कभी नहीं लिख सकता था- ओ देश मेरे, तेरी शान पे सदके, कोई धन है क्या तेरी धूल से बढ़के. सब वहीं से सीखा है. मैंने अपने बड़ों को सुनकर सीखा है. क्या क्या साहित्य लिखकर छोड़ गए. आपको किसी न किसी से इंस्पायर्ड होना ही होता है. इंस्पायर होने में कोई भी बुराई नहीं है...'
फेलियर को डील कैसे किया जाए, आजतक कई घटनाएं ऐसी आ रही हैं कि कुछ बच्चे हार मान लेते हैं? श्वेता सिंह के इस सवाल पर मनोज मुंतशिर ने कहा कि तेरी गलियां मेरा पहला हिट गाना था, जो 40वां था, उससे पहले 39 गाने फ्लॉप थे. मेरी पहली हिट फिल्म 9वीं थी, उससे पहले आठ फिल्में फ्लॉप हुई थीं. मेरी मात हुई है, मौत नहीं हुई है. ये जो बच्चे अपनी मार्कशीट देखकर कागज का टुकड़ा देखकर बड़े-बड़े स्टेप उठा लेते हैं. मार्कशीट सिर्फ एक कागज का टुकड़ा है, और तुम किसी के दिल के टुकड़े हो. दुनिया में कोई कागज का टुकड़ा इतना कीमती नहीं हो सकता कि वो दिल के टुकड़े की बराबरी कर पाए. आप मां के दिल के टुकड़े हो. कभी ऐसा काम नहीं करना कि जिस मां ने तुम्हारी किलकारियां सुनीं, जिसने माथा चूमा, उसे छोड़कर तुम चले जाओ. ऐसी गलती भगवान भी माफ नहीं करता.

मनोज ने दो पंक्तियां पढ़ीं...
लपक के जलते थे, बिल्कुल शरारे जैसे थे
नए-नए थे तो हम भी तुम्हारे जैसे थे.
मनोज ने कहा कि आजकल के बच्चे बहुत तेज हैं, बहुत शार्प हैं. उन्होंने बच्चों को कई जरूरी टिप्स दिए. इसी के साथ मनोज ने प्रेम को लेकर कहा कि अगर किसी को सच में दिल से प्यार करते हो तो ये जरूरी नहीं है कि वो मिल ही जाए. प्यार वही सच्चा है, जिसमें मिलना कोई शर्त नहीं है.
भगवान राम पर लिखे गीतों पर बात करते हुए मनोज ने कहा कि जो राम का नहीं, वो किसी काम का नहीं... अयोध्या में आज उत्सव की सदी है. भगवान राम अयोध्या आए. आदिपुरुष फिल्म पर बात करते हुए कहा कि उसमें जो मुझसे भूल हुई. ये लोग बड़े क्षमाशील लोग हैं. मैं मर जाऊंगा, लेकिन कभी ऐसी गलती नहीं करूंगा. मनोज कहते हैं कि मेरे डायरेक्टर्स अक्सर कहते हैं कि मैं अपनी नॉर्मल फिल्मों में देशभक्ति का एक गाना इसलिए सोच लेता हूं कि हमारे पास मनोज मुंतशिर जैसा लिखने वाला है, मुझे इस बात पर बहुत गर्व होता है.
मनोज ने कहा कि मेरी कई फिल्में आ रही हैं, फिल्म बॉर्डर टू आ रही है. इसमें मैं पहली बार फिर से रिग्रुप हो रहा हूं, सात साल बाद हम फिर से वापस आ रहे हैं. इसके अलावा अगले साल 'द केरला स्टोरी टू' आएगी. मनोज ने बताया कि आप मुझे बड़े मंच पर देखेंगे. मैं 'कृष्णा' बना रहा हूं, हमारे कृष्ण भगवान करा रहे हैं. जनवरी या फरवरी में हम 'कृष्णा' शुरू करने वाले हैं. कुल मिलाकर मनोज मुंतशिर शुक्ला के साथ बातचीत का ये सत्र इसलिए भी यादगार रहा, क्योंकि यहां शब्दों ने संघर्षों की कहानी कही और संघर्षों ने उम्मीद की.