Sahitya Aajtak 2024: दूसरे दिन भी कलाकारों और कला के क्रद्रदानों से साहित्य आजतक 2024 कार्यक्रम रोशन है. तीन दिन (22, 23 और 24 नवंबर) चलने वाले इस कार्यक्रम में देश के जाने-माने शायर, लेखक, साहित्यकार, कलाकार और इतिहासकार शामिल हो रहे हैं. इस दौरान तमाम मुद्दों और विचारों पर चर्चा हो रही है. दूसरे दिन 'क्या गुम हो जाएगी हिंदी/देवनागरी?' सेशन पर भी खुलकर बातचीत हुई. पक्ष और विपक्ष, दोनों तरह के तर्क सुनने को मिले.
क्या गुम हो जाएगी हिंदी/देवनागरी? सेशन में भाषा विशेषज्ञ, लेखक, भाषा संशय शोधन कमलेश कमल, भाषा विशेषज्ञ एवं लेखक प्रो परिचय दास और भाषा कार्यकर्ता, सलाहकार, स्पीकर रिसर्च इनिशिएटिव राहुल देव मंच पर उपस्थित रहे. इस सेशन का मॉरेडशन भाषा विशेषज्ञ और लेखक डॉ. सुरेश पंत ने किया.
हिंदी कितनी सुनाई और दिखाई पड़ती है?
भाषा विज्ञानी राहुल देव ने कहा कि भाषा वो है जो हम और आप बोलते हैं, आम आदमी जिस आम माध्यम में बात करता है वह भाषा है. भाषा की एक दृश्यता होती है, एक श्रव्यता होती है यानी दिखाई देना और सुनाई देना. केवल इन दो कसौटी पर भारत की राजधानी में आपको हिंदी कितनी सुनाई और दिखाई पड़ती है? बाजारों में , होटलों में रेलवे स्टेशन, सड़कों और जगहों के नामों को देखें तो अंग्रेजी ज्यादा दिखती है या हिंदी? सभी को पता है. हिंदी के हृदय में हिंदी की दृश्यता कम हो रही है. छोटे शहरों में 99 प्रतिशत हिंदी सुनाई देती है लेकिन वह नई हिंदी है आज से 20 साल पहले वाली हिंदी नहीं है. मुझे गंभीर संदेह है कि देवनागरी और हिंदी जिस रूप में हम चाहते हैं और जिस रूप में जिंदा रहना चाहिए वो उस रूप में जिंदा नहीं रहेगी.
उन्होंने कहा, 'अब माता-पिता अपने बच्चों को हिंदी माध्यम के बजाय अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में पढ़ा रहे हैं. लिपि के बगैर हिंदी बचेगी क्या? मैं 25 साल से कह रहा हूं कि हिंदी सहित भारत की सारी भाषाएं गहरे संकट में है, जिन्हें बनने में एक-एक हजार साल लगे हैं. अगर इसे बदला नहीं गया तो वो दो पीढ़ियों के भीतर खत्म हो जाएंगी.'
सरकार के स्तर पर हिंदी को बचाने के लिए क्या हो रहा है?
भाषा विज्ञानी और लेखक कमलेश कमल ने कहा कि मैं राहुल देव की बात से सहमत नहीं हूं. क्योंकि ऐसा लग रहा था कि हिंदी बहुत दयनीय स्थिति में है, हिंदी और देवनागरी का कोई भविष्य नहीं है. दिल्ली की छोटी-छोटी दुकानों पर जाकर देखिए हिंदी का इस्तेमाल. भारत की 70 फीसदी आबादी हिंदी की है और पूरे विश्व में 143 करोड़ लोग हिंदी समझते हैं. भारत महज तीन प्रतिशत अंग्रेजी का तबका है. सबसे ज्यादा देखा जाने वाला चैनल और सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अखबार हिंदी में है. वीर कुंवर सिंह और तात्या टोपे एक-दूसरे को हिंदी में पत्र लिखते थे. भारत की संपर्क भाषा पहले भी हिंदी थी और आज भी हिंदी है.
हिंदी को लेकर सरकार के स्तर पर बात करते हुए कमलेश कमल ने कहा, 'भारत का संविधान 343 से लेकर 351 हिंदी के लिए बात करता है. हालांकि कुछेक क्षेत्र हैं जैसे न्याय में, लेकिन भारत के चार न्यायलयों में हिंदी में न्याय दिए जा रहे हैं. मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में हिंदी में पढ़ाई की तैयारी चल रही है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उसके बाद राजस्थान में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में कराने के लिए प्रयास कर रहे हैं. भारत सरकार की योजना वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के माध्यम से सिविल इंजीनियरिंग शब्दकोष बनाया जा रहा है मैं खुद उसका हिस्सा हूं.'
मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में नहीं हो सकती?
कमलेश कमल ने कहा कि लोगों ने माइंड सेट बना लिया है. अगर जैपनीज, जर्मन, मैंडरिन, रशियन समेत कई भाषाओं में पढ़ाई हो सकती है तो किस तर्क के साथ इसकी पढ़ाई हिंदी में नहीं हो सकती, यह तर्क गलत है. अमेरिका के एक वैज्ञानिक ने कहा कि देवनागरी लिपि कंप्यूटर और विज्ञान के लिए सबसे उपयुक्त है. भारत में भी प्रयास हो रहे हैं. केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो है, सात लाख से अधिक शब्दों का हिंदी में अनुवाद हो गया है. गृह मंत्रालयों द्वारा शब्द सिंधु परियोजना है, अलग-अलग भाषाओं और राज्यों के शब्दों को मिलाकर एक विशाल समावेशी शब्दकोष बन रहा है. गूगल और सोशल मीडिया पर हिंदी की सामग्री बढ़ी है, फिल्मों में, बिजनेस में, OTT प्लेटफॉर्म्स में हिंदी बढ़ी है.
जिस भाषा में स्मृति बची रहेगी उसके लुप्त होने का खतरा नहीं: प्रो परिचय दास
भाषा विज्ञानी और लेखक, प्रोफेसर परिचय दास ने कहा कि अभी भी आपके सोचने की भाषा हिंदी है. जिस भाषा में स्मृति बची रहेगी, उस भाषा के लुप्त होने का खतरा नहीं हो सकता. सोशल मीडिया पर भी सबसे ज्यादा सामग्री हिंदी में ही है. दिल्ली, बैंगलोर, मुंबई और कोलकाता से बाहर निकलकर आस-पास के शहरों में जाना पड़ेगा, आपको मेरठ, लखनऊ, आजमगढ़, बलिया, नालंदा जैसी जगहों पर जाना पड़ेगा वहां रचनात्मक हिंदी के दर्शन होंगे. हालांकि कई बार अखबारों और चैनलों पर हिंदी की त्रुटियां होती हैं.
'इंजीनियरिंग की 200 किताबें हिंदी में लिखी गई हैं लेकिन...'
राहुल देव ने प्रोफेसर परिचय दास और कमलेश कमल की बातों का जवाब देते हुए कहा, 'अच्छी बात यह है कि हिंदी में इंजीनियरिंग की धाराओं सिविल और इलेक्ट्रिकल में प्रथम वर्ष के लिए 200 मौलिक हिंदी में लिखी गई किताबें तैयारी हो चुकी हैं. लेकिन अभी कुछ NITs को छोड़कर कहीं भी हिंदी या भारतीय भाषाओं में पढ़ाई सुचारू रूप से शुरू नहीं हुई है. छात्र ही नहीं पढ़ रहे. गरीब अपने बच्चों को जैसे-तैसे इंग्लिश मीडियम में पढ़ा रहे हैं. हिंदी का संकट सारी भाषाओं का संकट है. अकेली हिंदी बच जाएगी तो बाकी भाषाएं भी नहीं बचेंगी.'