सरकार ने अदालतों में सरकारी अधिकारियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के तहत सुप्रीम कोर्ट में कुछ सुझाव सौंपे हैं. इन सुझावों में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेशी, सरकारी अधिकारियों की भौतिक उपस्थिति और शैक्षिक पृष्ठभूमि पर टिप्पणी करने से बचना और न्यायिक आदेशों के अनुपालन के लिए उचित समय-सीमा आदि शामिल हैं.
SG ने सौंपे सुझाव
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अवमानना कार्यवाही सहित अदालती कार्यवाही में सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति के संबंध में शीर्ष अदालत में मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) से संबंधित कुछ सुझाव सौंपे. सुप्रीम कोर्ट के विचार के लिए प्रस्तुत एसओपी का उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों और अन्य सभी अदालतों के समक्ष सरकार से संबंधित मामलों की सभी सुनवाई पर लागू होना है जो अपने संबंधित अपीलीय और/या मूल क्षेत्राधिकार (रिट याचिका, जनहित याचिका (पीआईएल) आदि) के तहत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं या अदालत की अवमानना से संबंधित सुनवाई कर रहे हैं.
एसओपी के अनुसार, सरकारी मामलों से संबंधित कार्यवाही के मामले में जहां एक सरकारी अधिकारी की व्यक्तिगत उपस्थिति शामिल है, वहां सरकारी अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति को केवल असाधारण मामलों में ही बुलाया जाना चाहिए, न कि नियमित मामले के रूप में. अदालतों को अवमानना मामलों सहित मामलों (रिट, जनहित याचिका आदि) की सुनवाई के दौरान सरकारी अधिकारियों को तलब करते समय आवश्यक संयम बरतना चाहिए.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेशी की मिले अनुमति
इसमें कहा गया है, ‘असाधारण परिस्थितियों में जहां संबंधित सरकारी अधिकारी के पास अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है तो ऐसे अधिकारी को व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए उचित नोटिस दिया जाना चाहिए और पेश होने के वास्ते पर्याप्त समय भी दिया जाना चाहिए.’ इसमें कहा गया है कि असाधारण मामलों में, जहां किसी सरकारी अधिकारी की व्यक्तिगत उपस्थिति फिर भी अदालत द्वारा मांगी जाती है, अदालत को पहले विकल्प के रूप में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने की अनुमति देनी चाहिए.
'असाधारण मामलों में ही अधिकारियों को हाजिर होने को कहा जाए', सुप्रीम कोर्ट में SoP की पेशकश
SOP के मुताबिक,'भौतिक उपस्थिति और ऑनलाइन के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का लिंक जैसा भी मामला हो, उसमें सुनवाई से निर्धारित समय से कम से कम एक दिन पहले संबंधित अधिकारी के दिए गए मोबाइल नंबर/ई-मेल आईडी पर एसएमएस/ईमेल/व्हाट्सएप पर लिंक या सूचना देना चाहिए.' दिशानिर्देशों में कहा गया है कि अदालत के समक्ष पेश होने वाले सरकारी अधिकारी की "पोशाक/शारीरिक उपस्थिति/शैक्षणिक और सामाजिक पृष्ठभूमि" पर टिप्पणी करने से बचा जाना चाहिए.
अदालत के अधिकारी नहीं है सरकारी अफसर
एसओपी में कहा गया, 'सरकारी अधिकारी अदालत के अधिकारी नहीं हैं और उनके सभ्य कार्य पोशाक में उपस्थित होने पर तब तक कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, जब तक कि ऐसी उपस्थिति गैर-पेशेवर या उनके पद के लिए अशोभनीय न हो... यदि कोई आदेश पहले ही पारित किया जा चुका है और न्यायिक आदेश में बताई गई समय सीमा को सरकार की ओर से संशोधित करने का अनुरोध किया गया है, तो संशोधन के ऐसे अनुरोध पर अदालत ऐसे न्यायिक आदेशों के अनुपालन के लिए संशोधित उचित समय सीमा की अनुमति दे सकती है.'
अदालत की अवमानना पर एसओपी में कहा गया है कि सरकारी वकील द्वारा अदालत में दिये गये ऐसे बयानों के मामले में अवमानना की कोई कार्रवाई शुरू नहीं की जानी चाहिए जो उसके समक्ष हलफनामे या लिखित बयान के माध्यम से व्यक्त किये गये सरकार के रुख के विपरीत हैं.