आस्था और अंधविश्वास के बीच एक बारीक लकीर होती है. जब भी आस्था उस हद से आगे बढ़ जाती है, तो अंधविश्वास में बदल जाती है और अंधविश्वास की कोई हद नहीं होती. अंधविश्वास में लोग कुछ भी कर बैठते हैं. फिर चाहे उसमें जान का जोखिम ही क्यों ना हो.