लोकसभा चुनाव की गूंज के साथ हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी के भीतर अटल की विरासत पर कब्जा जमान की होड़ शुरू हो गई है.
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने 2 मार्च को लखनऊ में मोदी की विजय शंखनाद महारैली में जो कुछ जिन शब्दों और जिस तरह की शैली में कहा, उससे इस बात के संकेत साफ हो गए कि उनकी नजरें कहां पर टिकी हैं. भले ही मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो चुके हों लेकिन राजनाथ ने अभी हार नहीं मानी है.
बीजेपी के संकट मोचक माने जाने वाले सिंह अपनी राह के कांटों को निकालने की योजना में लग गए हैं. महारौली में राजनाथ सिंह ने कहा कि वह दुनिया में चाहे जहां रहे लेकिन लखनऊ का होकर रहेंगे. उन्होंने इसी लखनऊ में तमाम रूपों में किए गए काम को गिनाए तो यह साफ हो गया कि उनका इशारा किधर है. नरेन्द्र मोदी भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने भी लखनऊ से जुड़ाव का उल्लेख करने में चूक नहीं की. अटल व लखनऊ को लेकर जितनी प्रशंसा हो सकती थी, वह सब की. इससे साफ है कि वाजपेयी की विरासत का महत्व बीजेपी में कितना अहम है.
राजनाथ की यह कोशिश है कि वह लखनऊ से चुनाव लड़कर दिल्ली पहुंचे. जिससे उनके पास भी यह तर्क रहे कि वह अटल की विरासत को संभालने आए हैं. उस अटल की विरासत वह संभाल रहे हैं, जिसने विरोधी विचारधारा वाले दलों से तालमेल बनाकर एनडीए के रूप में शासन संभाला था.