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फिल्मों की परिकल्पनाओं का आधार भी रहे हैं ताश के पत्ते

बाजीगरों के हाथ में पड़कर किस्मत बदलने वाले, कभी तिरस्कृत वस्तु तो कभी किस्मत की बनी-बिगड़ी बताने वाले ताश के पत्ते हमारी फिल्मों की इबारत लिखने का आधार भी रहे हैं.

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बाजीगरों के हाथ में पड़कर किस्मत बदलने वाले, कभी तिरस्कृत वस्तु तो कभी किस्मत की बनी-बिगड़ी बताने वाले ताश के पत्ते हमारी फिल्मों की इबारत लिखने का आधार भी रहे हैं.

दिल बहलाने, दहलाने और फुरसत के लम्हों में वक्त गुजारने का अच्छा जरिया माने जाने वाले ताश के पत्तों के इर्द-गिर्द अनेक ऐसी फिल्मों का कथानक घूमता है जिन्होंने जिंदगी के कई अनोखे और विडम्बनापूर्ण पहलुओं को पुरअसर ढंग से दुनिया के सामने रखा. चाहे मशहूर अभिनेता देवानंद की फिल्म ‘गैम्बलर’ हो, अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म ‘द ग्रेट गैम्बलर’ या फिर स्टेफन ज्वीग के उपन्यास ‘ट्वेंटी फोर आवर्स इन ए वूमेंस लाइफ’ हो, सभी की कहानी ताश के पत्तों की वजह से या उनके गिर्द बनते-बिगड़ते भाग्य की दास्तां बयान करती है.

अर्से पुराने दस्तूर के मुताबिक फिल्म में किसी जुआरी का दृश्य खींचने के लिये मेज पर शराब के जाम के साथ मुंह में सिगरेट दबाए अभिनेता को हाथों में ताश के पत्ते लिये दिखाया जाता है. फिल्मों में ताश के पत्तों के खासतौर पर दृश्यांकन के बारे में फिल्म समीक्षक ज्योति वेंकटेश बताते हैं कि स्वाभाविक रूप से इन पत्तों को जुआ खेलने वालों के हाथ में फंसी अनिवार्य चीज के तौर पर देखा जाता है.

ढके-छुपे ढंग से ही सही लेकिन इस खेल ने बेहद लोकप्रियता भी हासिल की है लिहाजा फिल्मों में एक जुआरी के दृश्यांकन में ताश के पत्तों को अभिन्न अंग बनाया गया. वेंकटेश ने कहा कि जुआरियों की जिंदगी पर आधारित फिल्मों में ताश के पत्तों के जरिये जीवन के अनेक स्याह पहलुओं को सामने रखने में कामयाबी मिली थी. दुनिया के कई देशों में 27 दिसम्बर को ‘प्लेयिंग कार्र्ड्स डे’ मनाया जाता है. हालांकि इसके इतिहास के बारे में ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है.

वेंकटेश ने कहा कि वैसे तो ताश को बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता है लेकिन सच्‍चाई यह भी है कि इनमें जीवन का एक दर्शन भी छुपा हुआ है. गौर से देखा जाए तो ताश के पत्ते जिंदगी की विडम्बनाओं और जोड़-घटाव को भी दर्शाते हैं. वे एक अलग ढंग से बताते और जताते हैं कि जीवन में किसी को सबकुछ नहीं मिलता और किस्मत हर किसी पर मेहरबान नहीं होती.

उन्होंने वर्ष 1961 में स्टेफन ज्वीग के उपन्यास पर आधारित फिल्म ‘ट्वेंटी फोर आवर्स इन ए वूमेंस लाइफ’ का जिक्र करते हुए कहा कि इन्ग्रिड बर्गमैन और रिप टॉर्न अभिनीत उस फिल्म में एक महिला ताश के पत्तों में अपनी किस्मत ढूंढ रहे व्यक्ति को सुधारने की कोशिश करती है लेकिन वक्त उसका साथ नहीं देता. एक बार उसके जहन में यह बात उठती है कि किस्मत के पत्ते उसका साथ नहीं दे रहे हैं. सच है कि बाजीगरों के हाथ में पड़कर किस्मत बदलने वाले और भविष्यवक्ता के हाथों में जाकर किस्मत की बनी-बिगड़ी बताने वाले ताश के पत्तों के फलसफे का जिंदगी से गहरा नाता है.

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