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यातना पर समझौता के अनुमोदन में 161 देशों से पीछे है भारत

संयुक्त राष्ट्र की 30 वर्ष पुरानी यातना रोधी संधि के अनुमोदन में भारत अब भी पाकिस्तान समेत 161 देशों से पीछे खड़ा है. संधि के तहत वर्ष 1997 में हस्ताक्षर करने के बावजूद भारत अब तक इस संदर्भ में कानून नहीं बना पाया है.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

संयुक्त राष्ट्र की 30 वर्ष पुरानी यातना रोधी संधि के अनुमोदन में भारत अब भी पाकिस्तान समेत 161 देशों से पीछे खड़ा है. संधि के तहत वर्ष 1997 में हस्ताक्षर करने के बावजूद भारत अब तक इस संदर्भ में कानून नहीं बना पाया है.

यह अजीब लग सकता है कि भारत दुनिया के उन चुनिंदा नौ देशों में शामिल है जिसने अब तक इस अहम संधि का अनुमोदन नहीं किया है जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधि के अनुमोदन के मकसद से हस्ताक्षरकर्ता देश के लिये आवश्यक है.

उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर कड़ा रख अपनाते हुए सरकार से पूछा कि आखिर सरकार ने मामले में कानून बनाने की मंशा से अब तक कम से कम नेक इरादे से अपनी प्रतिबद्धता ही क्यों नहीं दर्शायी. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, हम समझते हैं कि कानूनी प्रक्रिया में समय लग सकता है लेकिन आप (केंद्र सरकार) हमें बताइए कि आखिर कानून बनाने को लेकर आपने अब तक हमारे समक्ष नेक इरादे वाली अपनी प्रतिबद्धता ही क्यों नहीं जाहिर की.

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खेहर की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने कहा, इसमें कोई विवाद नहीं है कि राष्ट्रीय हित और इससे परे यह मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है. पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब कांग्रेस नेता एवं पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि भारत दुनिया के उन चुनिंदा नौ देशों में शामिल है जिन्होंने संधि पर हस्ताक्षर करने के बावजूद अब तक इसका अनुमोदन नहीं किया है.

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