मालदा जिले के मानिकचाक ब्लॉक के इनायतपुर गांव में हाईस्कूल की इमारत को क्वारनटीन सेंटर बनाया गया है .इसी सेंटर में मो. अलाऊद्दीन को 150 वर्ग फीट के कमरे में परिवार समेत अपने लिए जगह बनाने को जूझना पड़ रहा है. उनके जैसे और भी तमाम लोग एक स्कूल के इसी कमरे में हैं.
मालदा के मूल निवासी अलाऊद्दीन को हाल ही में बिहार से लौटना पड़ा. वहां मजदूरी का काम करने वाले अलाऊद्दीन जैसे और भी कई लोगों को दो हफ्ते के क्वारनटीन के लिए इस कमरे में रखा गया है. ये अवधि पूरी होने के बाद ही वो अपने घर जा सकते हैं. करीब 125 प्रवासी मजदूर यहां नारकीय स्थिति में दिन बिताने को मजबूर हैं. कई के परिवार भी साथ हैं.
अलाउद्दीन का कहना है, “स्कूल में 125 लोग एक साथ रह रहे हैं. सोशल डिस्टेंसिंग जैसी या अन्य कोई सुरक्षा उपाय यहां नजर नहीं आते. इसलिए हमें यहां क्वारनटीन में रखने का मकसद ही मायने नहीं रखता.”
फोटो-भास्कर रॉय
इसी तरह यहां रह रहे मोहम्मद रिजवान का कहना है कि क्वारनटीन में इस तरह रहना बीमारी से बचने की जगह उसे अधिक न्योता देने वाला है. रिजवान ने कहा, “हम पटना में कहीं बेहतर थे, वहा हमें हमारे बचाव के लिए सभी प्रबंध थे. यहां हम 125 लोग साथ हैं. यहां ग्लव्स, मास्क तो दूर बाल्टी तक नहीं हैं. इतने लोगों के लिए सिर्फ 4 बाथरूम्स हैं. इस तरह तो बीमारी और फैलेगी.”
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असम से गृह राज्य आए हों या बिहार से, स्कूल में मौजूद अधिकतर मजदूरों का यही कहना कि ये इलाज कम, सदमा ज्यादा है. असम के कोकराझार से वापस आए सोहेल अंसारी कहते हैं, “हम सब खराब हालात का सामना कर रहे हैं. एक ही कमरे में कई-कई लोग ठहराए गए हैं.”
महिलाओं का ऐसे हालात में अपने बच्चों के साथ रहना तो और भी मुश्किल है. खाने से लेकर वॉशरूम तक, दिक्कतों का कोई अंत नहीं है. आलिनी मुशा पड़ोसी राज्य में मजदूर के तौर पर काम करती थीं. अपने गृह राज्य में वापस आने पर भी परेशानी घटने की जगह और बढ़ गई है. आलिनी ने कहा, “हम एक कमरे में 15 महिलाए हैं. हमें इससे कोई समस्या नहीं लेकिन सबके लिए एक ही बॉथरूम है.”
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इन मजदूरों को यहां लाने से पहले सभी बुनियादी सुविधाएं दिए जाने का वादा किया गया था. लेकिन जमीनी हकीकत ठीक इससे उलट है. स्कूल में जैसे ही डॉक्टर का प्रवेश होता है, हर कोई उसे अपनी परेशानी बताना चाहता है. गुस्सा जता रहा है. मालदा जिले में सरकारी डॉक्टर नासेर अली को सबकी नाराजगी झेलनी पड़ रही है. चुनौती को महसूस करते हुए डॉ अली कबूल करते हैं कि स्थिति बिगड़ रही है.
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डॉ अली कहते हैं, “यहां 76 लोग हैं. हर कमरे में तीन-चार लोग रह रहे हैं. यहां 3 टॉयलेट्स हैं. यहां सुविधाएं अच्छी नहीं हैं. ऐसे में ये लोग समझौता करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते.” Covid-19 को फैलने से रोकने का सबसे कारगर तरीका सोशल डिस्टेंसिंग है, लेकिन उसी की अनदेखी हो रही है.
इनायतपुर पंचायत के प्रधान शेख आपेल मजदूरों को जिस स्थिति में रहना पड़ रहा है, उन हालात पर अपने तरीके से सफाई देते हैं. शेख ने कहा, “हम उन्हें नाश्ता, दोपहर और रात का खाना मुहैया करा रहे हैं. हम लोगों में जागरूकता लाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए.”
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ऐसे सेंटर्स पर ग्लव्स और मास्क मिलना तो दूर साफ-सफाई का भी अभाव है. सही तरह से खाना नहीं मिलना और बिना सैनिटाइजेशन यहां ठहराए गए प्रवासी मजदूरों के स्वास्थ्य का बचाव कम, खतरा अधिक पेश हो रहा है. ये क्वारनटीन सेंटर्स मानिकचाक, चंचल, हरिशचंद्रपुर, नियामतपुर, इनायतपुर और अन्य इलाकों में बनाए गए हैं. ये अधिकतर सरकारी मदद से और कुछ अन्य स्थानीय नेताओं की मदद से चलाए जा रहे हैं.
इन सेंटर्स पर कमरे में ज्यादा लोगों के रहने और बाथरूम साझा करने की समस्या तो है ही वैसे भी यहां मजदूरों को साथ खाते, और झुंड में बैठ कर बातें करते या संगीत सुनते देखा जा सकता है. इन मजदूरों से यहां रिश्तेदारों या परिचित भी मिलने आते हैं. ये अपने आप में संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ाने वाला है. इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है.
मालदा जिले के इंग्लिशबाजार के नियामतपुर गांव में टीएमसी नेता की ओर से चलाए जाने वाले स्कूल के सेंटर की हालत भी बेहतर नहीं लगी. नेताओं की तरफ से सुविधाओं के वादे तो बहुत किए जा रहे हैं लेकिन हकीकत में कुछ होता नजर नहीं आता.
एक और प्रवासी मजदूर रिंटू शेख की शिकायत है, “हमें ना तो कोई पैसे की मदद मिल रही है और ना ही राशन. हम बस किसी तरह अपने दिन बिता रहे हैं. हमें पुलिस ने पकड़ कर यहां पहुंचा दिया. वादा करने के बावजूद नेता हमारी मदद के लिए यहां नहीं आ रहे हैं.”
मजदूर नारायण गोस्वामी ने कहा, “टीएमसी नेता ने यहां का दौरा कर भरोसा दिया कि कोई परेशानी नहीं आएगी. लेकिन हुआ कुछ नहीं.” इंग्लिशबाजार से टीएमसी पार्षद नरेंद्र नाथ तिवारी ने ऐसी स्थिति के लिए ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ने में देर नहीं लगाई.
तिवारी ने कहा, “लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए. अगर भारत को अपना वजूद बचाना है तो इसे अपने लोगों की सही देखभाल करनी होगी. जैसे किया जाना चाहिए वैसे नहीं हो रहा. प्रशासन लापरवाही दिखा रहा है.”
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मालदा से कांग्रेस विधायक इशा खान चौधरी ने कहा, “हाल ही में बहुत से दिहाड़ी मजदूर बसों से माल्दा लौटे हैं. उन्हें दो हफ्ते के लिए क्वारनटीन में रहना है क्योंकि वे कोरोना वायरस के वाहक हो सकते हैं. अगर नियमों का पालन नहीं किया जा रहा तो मैं अवश्य मालदा के डीएम और एसपी से बात करूंगी.”
मालदा के एसपी आलोक राजोरिया से बात की गई तो उन्होंने कहा, “राज्य और केंद्र सरकार के हमें निर्देश हैं कि राज्य के बाहर से आने वाले प्रवासी मजदूरों को प्रवेश की इजाजत न दी जाए. अगर किसी तरह वो आ गए हैं तो उन्हें अनिवार्य रूप से संस्थानों में बने क्वारनटीन सेंटर्स में 14 दिन तक रखा जाए.”
फोटो-भास्कर रॉय
स्थानीय ग्रामीणों में भी अब नाराजगी दिख रही है. उनका कहना है कि क्या होगा अगर इनमें (प्रवासी मजदूरों) में से कोई कोरोना वायरस पॉजिटिव निकला तो? उनका कहना है कि किसी तरह का टेस्ट न होना भी गंभीर बात है.
एक स्थानीय ग्रामीण चंद्रनाथ रे ने कहा, “जब हालात इतने खतरनाक हैं तो सरकार कैसे बाहरी लोगों को गांव में आने की इजाजत दे सकती है. जिन राज्यों में ये मजदूर काम करते हैं, उन्हें ही इनकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए. लोग किसी भी साधन से आ रहे हैं. कोई वाहन नहीं मिलता तो पैदल ही आ रहे हैं. ये हम सभी की जान को खतरे में डाल रहा है. ये पूरी तरह से राज्य सरकार की नाकामी है.”
(मालदा में भास्कर रॉय के इनपुट के साथ)