उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव शुरू होने से पहले तक भ्रष्टाचार से लेकर कानून व्यवस्था और विकास जैसे मुद्दों की चर्चाएं जोरों पर थीं, लेकिन आज जमीनी स्तर पर यहां चुनाव जातीय समीकरणों के आधार पर लड़े जा रहे हैं.'
समाजसेवी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में जो मुहिम चलाई और उसे जिस प्रकार का समर्थन मिला था, उससे लगने लगा था कि कम से कम उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह जरूर मुद्दा बनेगा, क्योंकि मुख्यमंत्री मायावती भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरी हुई हैं. कुछ राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश की, लेकिन जातीय जंजीर में जकड़े देश के सबसे बड़े इस राज्य में अभी तक कोई भी मुद्दा परवान नहीं चढ़ पाया है. स्थानीय मुद्दे कहीं-कहीं जरूर हावी दिखते हैं.
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी अपनी रैलियों में विकास की बातें करते हैं और सत्ता में आने पर उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का दावा करते हैं, लेकिन यहां के मतदाताओं का इन सबसे कितना सरोकार है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां का हर मतदाता अपनी ही बिरादरी के उम्मीदवार को जिताने की बात करता है. उसके लिए विकास हो या भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है. उसे बस इतना ही मतलब है कि जरूरत पड़ने पर कौन उसके साथ खड़ा होगा.
राष्ट्रीय राजनीति में राम मंदिर सालों से विवाद का विषय रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में अयोध्या में ही यह कोई मुद्दा नहीं है. एक दर्जन स्थानीय नागरिकों से हुई बातचीत से तो यही निकल कर सामने आया. गोरखपुर और बस्ती जिले के लोग पिछले कुछ सालों से जापानी इंसेफेलाइटिस से परेशान हैं. अब तक इस बीमारी से लगभग 50,000 बच्चे पीड़ित हुए हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश यहां भी यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं है.
गोरखपुर में विधानसभा की पांच सीटें हैं और इन पांचों सीटों पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार इसकी चर्चा तक नहीं करते. ये उम्मीदवार मुद्दों को पीछे छोड़कर उन इलाकों में वोट मांग रहे हैं, जो उनके जातीय समीकरण में फिट बैठते हैं. कुशीनगर डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. कौस्तुभ नारायण मिश्र का कहना है कि जापानी इंसेफेलाइटिस इस क्षेत्र में बड़ा मामला है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कोई भी राजनीतिक दल इसकी बात नहीं कर रहा. स्थानीय लोग भी इसे मुद्दा बनाने में नाकाम रहे हैं. लोग अपनी ही जाति और बिरादरी के लिए वोट करेंगे.
विकास और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता जब विधानसभा चुनाव में पहुंचते हैं तो वे भी जातिगत समीकरण की ही राग अलापते हैं. भाजपा के ऐसे ही एक वरिष्ठ नेता कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कह रहे थे कि चुनाव के लिहाज से हमने एक सामाजिक तानाबाना बुना है, जिसके तहत 123 पिछड़े वर्ग, 78 ब्राह्मण, 76 ठाकुर, 36 कुर्मी और 23 वैश्य उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
देवरिया जिले की रामपुर कारखाना सीट इससे थोड़ी अलग कहानी बयां करती है. यहां एक निर्दलीय उम्मीदवार हैं गुड्डू शाही. वह अपने क्षेत्र में पिछले चार साल से नि:शुल्क एम्बुलेंस सेवा दे रहे हैं और इस सेवा के बदले वह मतदाताओं से सत्ता की मेवा मांग रहे हैं. देवरिया जिले की रूद्रपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह चुनाव मैदान में हैं. यहां के 70 वर्षीय मतदाता कलाम खान कहते हैं, सिराज अहमद खान हमारे भाई हैं और बिरादरी के हैं. हम उन्हें ही मत देंगे. सिराज भाजपा के उम्मीदवार हैं.
इसी सीट से सपा के मुक्तिनाथ यादव भी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन अधिकतर मुस्लिम मतदाता इस बार उनके साथ नहीं हैं. उनकी पहली पसंद मुलायम सिंह यादव हैं और वे उन्हें ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. कलाम खान का कहना है कि यहां के चार आना मुसलमान मुक्तिनाथ के साथ हैं तो 12 आने सिराज के साथ. मुलायम से कोई नाराजगी नहीं है. उन्हें हम मुख्यमंत्री के रूप में फिर से देखना चाहते हैं, लेकिन अपना वोट सिराज को ही देंगे.