भारत के विख्यात चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को उनकी आखिरी इच्छाओं का सम्मान करते हुए पूर्ण मुस्लिम धार्मिक रस्मों के साथ ब्रिटेन की राजधानी लंदन स्थित ब्रुकवुड कब्रिस्तान में सुपुर्दे-ए-खाक कर दिया गया.
हुसैन को यूरोप के सबसे बड़े कब्रिस्तान में दफनाया गया. 95 वर्षीय हुसैन का रॉयल ब्राम्पटन अस्पताल में निधन हो गया था. उनके फेफड़े में तकलीफ थी.
हुसैन को सुपुर्द ए खाक करने से पहले दक्षिण लंदन स्थित टूटिंग जिला स्थित इदारा ए जफरिया में जनाजे की नमाज पढ़ी गई. इस दौरान लोगों ने उन्हें अपनी अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की. सुपुर्द ए खाक करने के दौरान कब्रिस्तान में हुसैन के चार पुत्र शफद, शमशाद, मुस्तफा और ओवैस तथा दो पुत्रियां अकील और रैसा भी मौजूद थीं.
इस दौरान हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उपस्थित करीब 50 लोगों में अनिवासी भारतीय एवं नून प्रोडक्ट्स के अध्यक्ष गुलाम नून शामिल थे. इसके अलावा भारतीय उच्चायुक्त नलिनी सूरी, जानेमाने अनिवासी भारतीय उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल, हिंदुजा समूह के उपाध्यक्ष जी पी हिंदुजा, जानेमाने होटल व्यवसायी एवं भारतीय विद्या भवन ब्रिटेन के अध्यक्ष जोगिंदर सांगर, भारतीय उच्चायुक्त में समन्वय मंत्री आसिफ इब्राहिम भी उपस्थित थे.
460 एकड़ के कब्रिस्तान में कब्र खोदने का काम करने वाली एलन मुनारी ने कहा कि यह कब्रिस्तान यूरोप के सबसे बड़े कब्रिस्तानों में से एक है. हुसैन की अंतिम इच्छा थी कि उन्हें वहीं दफनाया जाये जहां वह अपनी अंतिम सांस लें. पारिवारिक सूत्रों ने कहा कि सुपुर्दे खाक की प्रक्रिया में एक घंटे की देरी हुई क्योंकि ताबूत काफी बड़ा था जिसके कारण कब्र को थोड़ बड़ा करना पड़ा. उन्होंने बताया कि हुसैन चाहते थे कि उन्हें किसी पेड़ की छाया के नीचे ही दफनाया जाये.
भारत के इस चित्रकार की कलाकृतियां लंदन और न्यूयार्क में ऊंची कीमतों पर नीलाम होती थीं. हिंदू देवियों की नग्न चित्र बनाने को लेकर वर्ष 2006 में कई कानूनी मामले दर्ज होने और धमकियां मिलने के बाद हुसैन ने भारत छोड़ दिया था.
उन्होंने वर्ष 2010 में भारत का पासपोर्ट जमा कराकर कतर की नागरिकता ले ली थी. हुसैन ने वर्ष 1920 में अपने करियर की शुरूआत बॉलीवुड पोस्टर पेंटर के तौर पर की थी और बाद में उन्होंने सफलता की बुलंदियों को छुआ.