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तलाक के मामलों में एक साल का 'कूल ऑफ पीरियड' जरूरत नहीं: दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आपसी सहमति से तलाक के मामलों में एक साल तक अलग रहना जरूरी नहीं है. 'हिंदू विवाह अधिनियम' के तहत विशेष परिस्थितियों में कोर्ट इस शर्त और कूलिंग-ऑफ अवधि में छूट दे सकती है.

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कोर्ट हिंदी विवाह अधिनियम के तहत तय की शर्त पर अपनी राय दी है. (Representative Photo: ITG)
कोर्ट हिंदी विवाह अधिनियम के तहत तय की शर्त पर अपनी राय दी है. (Representative Photo: ITG)

दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक प्रक्रिया को लेकर स्पष्ट किया है कि आपसी सहमति से तलाक लेने वाले पति-पत्नी के लिए एक साल तक अलग रहने की शर्त अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम-1955 के तहत तय की गई इस शर्त को सही मामलों में दरकिनार किया जा सकता है. 

जस्टिस नवीन चावला, जस्टिस अनूप जयराम भंबानी और जस्टिस रेणु भटनागर की स्पेशल बेंच ने कहा, "अनचाहे रिश्ते में पति-पत्नी को बेवजह फंसाए रखने का कोई मतलब नहीं रह जाता."

खंडपीठ ने यह स्पष्टीकरण एक रेफरेंस के जवाब में दिया है. उस संदर्भ में हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका पेश करने की समय सीमा पर मार्गदर्शन मांगा गया था. इस पर तीन जजों की स्पेशल बेंच ने कहा कि इस अधिनियम की धारा 13B(1) के तहत एक साल की अवधि के लिए अलग रहने का कानूनी सुझाव है. यह अनिवार्य नहीं है. 

'खाई में क्यों धकेला जाए...'

कोर्ट ने ये अहम टिप्पणी भी की है कि क्या कोई कोर्ट आपसी सहमति से तलाक को रोकने के लिए मजबूर है? क्योंकि इससे तो रिश्ते से असंतुष्ट और इसे चलाने के लिए पूरी तरह अनिच्छुक पक्षों को वैवाहिक सुख में नहीं, बल्कि वैवाहिक खाई में क्यों धकेला जाए?

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अदालत ने यह भी कहा कि एक साल की अलगाव अवधि की माफी से धारा 13B(2) के तहत दूसरी अर्जी दाखिल करने के लिए निर्धारित छह महीने की 'कूलिंग-ऑफ' अवधि की माफी पर कोई रोक नहीं लगती. दोनों अवधियों की माफी पर अलग-अलग और स्वतंत्र रूप से विचार किया जाना चाहिए.

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हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि एक साल की मियाद की माफी केवल मांग करने मात्र से नहीं दी जा सकती. ये तभी दी जाएगी, जब अदालत को यह संतोष हो कि याचिकाकर्ता को 'असाधारण कठिनाई' हो रही है, या फिर प्रतिवादी की तरफ से 'असाधारण दुराचार' के हालात मौजूद हैं.

बेंच ने यह भी कहा कि इस तरह की माफी फैमिली कोर्ट और हाईकोर्ट, दोनों दे सकते हैं. स्पेशल बेंच ने अपने इस अहम फैसले में कहा कि अगर इस अधिनियम की धारा 14(1) के प्रावधान के तहत यह पाया जाता है कि धारा 13B(1) के अंतर्गत एक साल की अवधि की माफी गलत तथ्यों या आधार पर हासिल की गई है, तो अदालत तलाक के प्रभावी होने की तारीख को उपयुक्त रूप से आगे बढ़ा सकती है. 

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ऐसी स्थिति में कोर्ट लंबित तलाक अर्जी को फौरन खारिज की कर सकता है फिर वो चाहे किसी भी चरण तक पहुंच गई हो. न्याय प्रक्रिया की गरिमा के मद्देनजर अदालत के ऐसे कठोर फैसले के बाद भी पक्षकारों को एक साल की अवधि पूरी होने के बाद, उन्हीं या करीब समान तथ्यों के आधार पर नई याचिका दाखिल करने का अधिकार रहेगा.

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