महाराष्ट्र विधानसभा से बीजेपी के 12 विधायकों को साल भर के लिए निलंबित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने तल्ख टिप्पणी की है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये फैसला लोकतंत्र के लिए खतरा ही नहीं बल्कि तर्कहीन भी है. जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने महाराष्ट्र शासन के वकील अर्यमा सुंदरम से सत्र की अवधि के बाद भी साल भर तक निलंबन के आधार को लेकर कई सीधे और तीखे सवाल पूछे.
जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि एक साल का निलंबन निष्कासन से भी बदतर है. क्योंकि, इस दौरान निर्वाचन क्षेत्र का कोई प्रतिनिधित्व नहीं हुआ. यदि निष्कासन होता है तो उक्त रिक्ति भरने के लिए एक तंत्र है. एक साल के लिए निलंबन, निर्वाचन क्षेत्र के लिए सजा के समान होगा. जब विधायक वहां नहीं हैं, तो कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है, निलंबन सदस्य को दंडित नहीं कर रहा है बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित कर रहा है.
निलंबन के पीछे तर्क क्या है?
पीठ ने कहा कि जस्टिस खानविलकर ने कहा, जब आप कहते हैं कि कार्रवाई तर्कसंगत होनी चाहिए तो वहां निलंबन का कुछ उद्देश्य होना चाहिए और उद्देश्य सत्र के संबंध में है. इसे उस सत्र से आगे नहीं जाना चाहिए. इसके अलावा कुछ भी तर्कहीन होगा. 6 महीने से अधिक समय तक निर्वाचन क्षेत्र को अपने प्रतिनिधि की सदन में सक्रियता से वंचित रखने के कारण आपका साल भर निलंबन का फैसला तर्कहीन है. हम अब संसदीय कानून की भावना के बारे में बात कर रहे हैं. यह संविधान की व्याख्या है जिस तरह से इससे निपटा जाना चाहिए.
जस्टिस सीटी रविकुमार ने कहा कि चुनाव आयोग को भी सिर्फ इस बात का अधिकार है कि जहां सीट खाली होगी, वहीं चुनाव होगा. लेकिन यहां सीट खाली भी नहीं है और जनता का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो रहा है. क्योंकि आयोग का मानना है कि साल भर निलंबन के मामले में चुनाव भी नहीं होगा. क्योंकि सदस्य के निष्कासन पर ही चुनाव कराया जा सकता है. ये परिस्थिति लोकतंत्र के लिए खतरा है.
मान लीजिए कि सरकार के पास बहुमत की मामूली बढ़त हो और 15 से 20 लोगों को निलंबित कर दिया जाए तो लोकतंत्र का भविष्य और भाग्य क्या और कैसा होगा इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है. इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी. पिछली सुनवाई में भी सुप्रीम कोर्ट ने 12 बीजेपी विधायकों को एक साल के लिए निलंबित करने पर सवाल उठाए थे.
पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने जैसा है...
तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधायकों को एक साल तक निलंबित करना निष्कासन से भी बदतर है. ये पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने जैसा है. कोई और इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता क्योंकि क्षेत्र के विधायक सदन में मौजूद नहीं होंगे. संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, एक निर्वाचन क्षेत्र 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकता है. सुनवाई के दौरान पीठ ने महाराष्ट्र की इस दलील को ठुकरा दिया कि अदालत एक विधान सभा द्वारा दिए गए दंड की मात्रा की जांच नहीं कर सकती है.