शिवसेना के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत ने अपने लेख से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला है. संजय राउत ने अपने लेख में कहा है कि आज देश में निश्चित तौर पर कौन-सी शाही चल रही है, यह ब्रह्मा भी नहीं बता पाएंगे.
केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए उन्होंने लिखा कि शासकों ने देशभक्ति की नई वैक्सीन लोगों को लगा दी है. फिलहाल देश में प्रचार का, विकास का, विचार का मुद्दा यही देशभक्ति बन गई है. देशभक्ति का उदय साल 2014 के बाद हुआ है. उससे पहले लोग जानते ही नहीं थे कि देशभक्ति क्या होती है.
तंज करते हुए संजय राउत ने लिखा है कि स्वतंत्रता संग्राम में जो शहीद हो गए, वे भी इस युग में देशभक्त नहीं होंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की जय-जयकार कर रहे हैं, वही देशभक्त. ऐसा अब तय कर दिया गया है.
हिटलर, मुसोलिनी, स्टालिन की आलोचना करने वाले और उनके खिलाफ बोलनेवाले भी या तो देशभक्त नहीं थे या वे क्रांति के, देश के शत्रु ठहराए गए. दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानून के खिलाफ जारी किसानों के प्रदर्शन को लेकर भी शिवसेना के प्रवक्ता ने अपने लेख में सरकार पर हमला बोला.
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संजय राउत ने अपने लेख में लिखा कि पंजाब की सीमा पर किसान ठंडी हवाओं के बीच भी खड़ा है. इस आंदोलन में अब तक 57 किसानों की मौत हो चुकी है, लेकिन दिल्ली में ऐसी सरकार है, जिसने संवेदना का एक शब्द तक नहीं बोला. ऐसी मानवता रहित सरकार किस ‘शाही’ की श्रेणी में आती है?
उन्होंने रतन टाटा का जिक्र करते हुए कहा कि एक टाटा हैं कि अपने बीमार पूर्व कर्मचारी का हाल जानने मुंबई से पुणे चले गए. हर पीढ़ी के टाटा भारत रत्न इसी जीवनशैली के कारण बने. यही कारण है कि टाटा जैसी प्रतिष्ठा अंबानी और अडानी को नहीं मिल सकी. हालांकि, ये टाटा भी मोदी की नीतियों के इस समय समर्थक हैं.
एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूम रही राजनीति
शिवसेना के प्रवक्ता और उसके मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने कहा कि आज देश और राजनीति एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूम रही है. लोकसभा की सार्वभौमिकता की जगह प्रधानमंत्री मोदी की सार्वभौमिकता ने ले ली है. पिछले कुछ साल में एक के बाद एक संविधान संशोधन किए गए.
दिल्ली की सीमा पर पिछले 45 दिन से किसान मर रहे हैं, लेकिन ये सरकार कानून में सुधार को तैयार नहीं है. किसान, कृषि कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं. इस पर लोकसभा में चर्चा तो होने दो. सामना में लिखे अपने लेख में उन्होंने लिखा है कि फिलहाल जो चल रहा है, इसकी तुलना आपातकाल से की जा सकती है.
कंगना-अर्णब को लेकर भी तंज
संजय राउत ने सामना में लिखा कि कंगना रनौत और अर्णब गोस्वामी जैसों के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने मानो विशेष न्याय व्यवस्था ही खड़ी कर दी. पंजाब के किसानों की आवाज इतने दिन बाद भी सर्वोच्च न्यायालय तक नहीं पहुंची. उन्होंने 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्ष को खत्म करने की तैयारी का आरोप लगाते हुए लिखा है कि इसके लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा की तुलना अमेरिकी संसद में चुनाव बाद हिंसा से करते हुए संजय राउत ने अपने लेख में लिखा है कि केंद्र इसे चाहे तो रोक सकता है लेकिन नीति साफ है कि लोकतंत्र रक्तरंजित हो जाए तब भी चलेगा. उन्होंने सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को लेकर भी हमला बोला.
संजय राउत ने अपने लेख में लिखा है कि देश के भूषण सिद्ध हुए सभी सार्वजनिक उपक्रमों को केंद्र सरकार बेचने जा रही है. इन्हें एक-दो उद्योगपतियों को ही बेचा जा रहा है. देश की संपत्ति इस तरह से निजी निवेशकों की हो रही है और इस पर बोलनेवालों को देश का दुश्मन ठहराया जा रहा है.
वल्लभभाई पटेल ने आजादी के बाद सौ से ज्यादा राजे-रजवाड़ों की संस्थाओं को खत्म कर दिया और देश को एकछत्र बना दिया. इंदिरा गांधी ने इन संस्थानिकों की तनख्वाह बंद कर दी. अब देश में फिर से दो-चार नए संस्थानिक तैयार किए जा रहे हैं.
कोरोना वैक्सीन को लेकर भी बोला हमला
सामना में लिखे अपने लेख में संजय राउत ने सरकार पर हमला बोलते हुए लिखा है कि कोरोना वैक्सीन का निर्माण मोदी सरकार का ही चमत्कार है, ऐसा प्रचार देश के वैज्ञानिकों का अपमान है. उन्होंने नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम को भी कोरोना फैलाने का कारक बताया और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का भारत दौरा रद्द होने का भी जिक्र किया. राउत ने 6 हजार लोगों की साइबर फौज के जरिए सरकार की जी-हुजूरी और विरोधियों को बदनाम करने की मुहिम चलाए जाने का भी आरोप लगाया और कहा है कि देश में एक तरह से भयानक शांति है. ऐसी स्थिति आपातकाल में भी नहीं थी.
राउत ने कहा है कि तटस्थ होकर विचार करें तो ऐसा लगता है कि लोकतंत्र का हमारे देश में टिके रहना जिन संस्थाओं पर निर्भर है, उन संस्थाओं को टिके रहना चाहिए. सत्ता किसी भी दल की हो, इनका टिके रहना जरूरी है. हमने बाहरी लोगों के जबड़े से आजादी हासिल कर ली लेकिन वही अंतिम नहीं.
सामना के कार्यकारी संपादक ने स्विट्जरलैंड की आजादी की एक कथा का उल्लेख करते हुए कहा है कि इस कथा की टोपी सभी बादशाहों के सिर पर फिट बैठती है. भारत में भी गुलाम बादशाह की टोपी को सलाम ठोकते हैं. अमेरिका की जनता ने झुंडशाही दिखानेवाले बादशाह और उसकी टोपी को उड़ा दिया है. संजय राउत ने इसे दुनिया के लिए, लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए शुभ शगुन बताया है.
(शिवशंकर तिवारी का इनपुट)
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