झारखण्ड में बिहारी अब मास्टर साब नहीं बन सकेंगे. ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि यह झारखण्ड के शिक्षा मंत्री का बयान है. दरअसल मंत्री महोदया ने सूबे में शिक्षकों की नियुक्ति नियमावली में परिवर्तन की बात कह कर विवादों का पिटारा खोल दिया है. इसमें कहा गया है जिन परिक्षार्थियों ने भोजपुरी और मगही से नियुक्ति परीक्षा पास की है उनका परीक्षाफल रद्द कर दिया जाएगा. ऐसे में इन भाषाओं से उत्तीर्ण हुए हजारों परीक्षार्थियों का भविष्य अधर में लटक गया है.
वहीं इस मुद्दे पर राजनीती भी जमकर शुरू हो गयी है. दरअसल झारखण्ड की शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव का ये बयान इन दिनों खासी चर्चा में है कि मगही और भोजपुरी से इम्तिहान देने वाले छात्रों की नियुक्ति रद्द की जाएगी. शिक्षा मंत्री ने ये बयान मंत्रालय को भी जारी कर दिया है. झारखण्ड में पहली बार विधायक और मंत्री बनी गीता श्री राहुल गांधी की एलीट टीम में शामिल हैं और झारखण्ड के कद्दावर राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं. गीताश्री का साफ कहना है कि भोजपुरी और मगही कोई भाषा नहीं है, बल्कि महज बोली है. ऐसे में इन विषयों के मास्टरों के लिए झारखण्ड में जगह नहीं है.
गौरतलब है की राज्य में एक दशक के बाद हुई शिक्षक नियुक्ति परीक्षा (JTET) में लगभग 65 हजार अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया था और इनकी नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी थी. इस बीच शिक्षा मंत्री के नियमावली को बदलने की बात से राज्य में नया विवाद शुरू हो गया है और इसने राज्य में अरसे से ठंढे पड़े स्थानीयता और भाषाई मुद्दे को हवा दे दी है. मंत्री महोदया का ये भी कहना है कि बिहार राज्य पहले ही नियुक्ति नियमावली से झारखंडी भाषाओं को हटा चुका है, ऐसे में उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है.
वहीं इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है. जहां स्थानीय आदिवासी संगठन इस कदम का स्वागत कर रहे हैं वहीं राज्य का एक तबका इससे काफी खफा है. वहीं चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दल भी इस मुद्दे पर अपने नफा-नुकसान को आंकते हुए बयान दे रहे हैं.
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का कहना है कि ये सरकार नहीं चाहती है कि दुसरे क्षेत्रीय भाषा जानने वाले कोई शिक्षक की नौकरी करे. दरअसल मुंडा के कार्यकाल में ही JTET यानी शिक्षक नियुक्ति परीक्षा आयोजित की गई थी. उस समय राज्य सरकार ने जिलावार बोली जानेवाली क्षेत्रीय भाषाओं के आधार पर अभ्यर्थियों से आवेदन मांगा था.
हैरत की बात यह है कि झारखण्ड में शिक्षकों की नियुक्ति लगभग एक दशक पहले हुई थी. इसके बाद हुई एकमात्र नियुक्ति परीक्षा को गलत प्रक्रिया के चलते झारखण्ड हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. लगता है कि इस बार भी नियुक्ति का मामला स्थानीयता के पेच में फंस जाएगा. दूसरी ओर शिक्षकों की भारी कमी झेल रहे राज्य में हर साल सैकड़ों मिडिल स्कुलों को हाई स्कुल में बदला जा रहा है. ऐसे में प्राइमरी और मिडिल स्कुल के शिक्षक ही हाई स्कुल में कक्षाएं ले रहे हैं और हकीकत यह है कि पूरे सूबे में शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी है.