आमतौर पर सिल्क का नाम जेहन में आते ही दिल में एक कोमल और मखमली अहसास सा होने लगता है. वहीं रेशम से बने कपड़े की बात ही कुछ और होती है. महंगा होने के बाबजूद देश में इसकी खासी मांग है. शायद बहुत से लोगों को यह पता नहीं की सिल्क के धागे के निर्माण के दौरान रेशम के कीटों को मार दिया जाता है. लेकिन झारखण्ड में अब एक ऐसे तरीके से सिल्क को बनाया जा रहा है जिसमें कीटों को नहीं मारा जाता. इन दिनों यह 'अहिंसा सिल्क' के नाम से लोगों के बीच अपनी जगह बना रहा है.
रांची के नगड़ी इलाके में स्थित केंद्रीय तसर अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में रेशम के कीटों से तसर यानी सिल्क का निर्माण किया जाता है. लेकिन इसमें खास बात यह है कि सिल्क के धागे के निर्माण के दौरान कीटों को मारा नहीं जाता है. रेशम के कीमती और महीन धागों से यहां डिजाइनर कपड़ों की बुनाई भी की जाती है. जिसे देश के दूसरे राज्यों में झारक्राफ्ट और खादी और ग्रामोद्योग केंद्रों के जरिये आम नागरिकों को उपलब्ध कराया जाता है. इतना ही नहीं 10 से ज्यादा दूसरे देशो में इनका निर्यात भी हो रहा है.
जैन समुदाए की पसंद
अहिंसा सिल्क खासतौर पर जैन धर्मावलांबियों में खासा लोकप्रिय हो रहा है. इसकी वजह है कि जैन धर्मावलम्बी अहिंसा के पुजारी होने के साथ-साथ जीव-हत्या के विरोधी भी होते हैं. जाहिर है ऐसे में अहिंसा सिल्क इनकी पहली पसंद बनता जा रहा है. वहीं झारखण्ड खादी और ग्रामोद्योग संस्था के अध्यक्ष संजय सेठ के मुताबिक तसर उत्पादन के मामले में अब झारखण्ड तसर स्टेट बन गया है.
अनुकूल है झारखण्ड की जलवायु
झारखण्ड में लाह और तसर यानी सिल्क के उत्पादन की काफी अच्छी संभावना है. साथ ही यहां की जलवायु भी तसर उत्पादन के अनुकूल बैठती है. हालांकि राज्य सरकार इसके उत्थान के लिए कई परियोजनाएं चला रही है. बाबजूद इसके अभी इस क्षेत्र में काफी कुछ किया जाना बाकी है. वैसे सरकार ने अहिंसा सिल्क के उत्पादन को बढ़ावा देकर लोगों की आजीविका में एक नया आयाम जोड़ दिया है.