केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल (एलजी) के रूप में नियुक्त होने के एक साल से भी कम समय के अंदर गिरीश चंद्र मुर्मू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति भवन की ओर से गुरुवार सुबह इस संबंध में पुष्टि भी कर दी गई. साथ ही बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के रूप में नए उपराज्यपाल के नाम का ऐलान भी कर दिया गया.
गिरीश चंद्र मुर्मू के अचानक इस्तीफे से जम्मू-कश्मीर में कई लोगों को आश्चर्य हुआ है. कम से कम बुधवार दोपहर तक जम्मू-कश्मीर प्रशासन में ऐसी कोई चर्चा ही नहीं थी. यहां तक कि पूर्व एलजी हमेशा की तरह अपने काम पर लगे हुए थे. हालांकि शाम को पहले से निर्धारित कुछ बैठक रद्द कर दी गई. माना जा रहा है कि वह आज नई दिल्ली पहुंच रहे हैं.
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सूत्रों का कहना है कि उन्हें राष्ट्रीय राजधानी में एक संगठन का प्रभार दिया जा सकता है. हालांकि जम्मू-कश्मीर में क्या हुआ और अचानक सब कुछ कैसे बदल गया. इन सब के पीछे के परिस्थितियों पर नजर डालते हैं.
राजनीतिक शून्य
जीसी मुर्मू गुजरात कैडर के 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी हैं और नरेंद्र मोदी के गुजरात के बतौर मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान वह उनके प्रमुख सचिव थे.
माना जाता है कि उनकी कार्यशैली एक नौकरशाह की खासियत है. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को पिछले साल के दो केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अपग्रेड करने के बाद से जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा राजनीतिक शून्य बना हुआ था. माना जा रहा है कि एक राजनेता की नियुक्ति का मतलब यह हो सकता है कि नई दिल्ली एक ऐसे राजनीतिक व्यक्ति से वहां काम करवाना चाहती है जो लोगों तक पहुंच बनाने में सक्षम हो. प्रशासन के अलावा लोगों से संपर्क बनाए रखते हुए साथ चले.
मनोज सिन्हा को ऐसा करने में एक माहिर नेता के रूप में माना जाता है क्योंकि उनके पास प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों का अपार अनुभव है. केंद्रीय राज्य मंत्री, डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने एलजी के रूप में नियुक्ति पर मनोज सिन्हा से बात की और उन्हें जम्मू-कश्मीर के एलजी के रूप में नियुक्त होने पर बधाई दी. उन्होंने कहा कि उनके साथ राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव दोनों का एक समृद्ध संयोजन है.
पिछले साल अनुच्छेद 370 के खात्मे के समय जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा के अधिकांश राजनीतिक नेताओं को हिरासत में ले लिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया. करीब 400 नेताओं को गिरफ्तार किया गया था, हालांकि हाल के महीनों में उनमें से कई को रिहा कर दिया गया है.
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नए बदलाव को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मुस्तफा कमाल ने कहा कि इससे जम्मू-कश्मीर में लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि वे सभी सरकार की ओर से नियुक्त किए गए लोग हैं. हां अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जो राजा से अधिक वफादार है तो वह अलग है. हालांकि हमें उम्मीद करनी चाहिए कि यह नया बदलाव सही अर्थों में हो, जो कुछ भी उन्होंने अपनी गलतियों को छिपाने के लिए किया. साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया जल्द शुरू होनी चाहिए.
हाल की बयानबाजी
केंद्र शासित प्रदेश को एक राजनीतिक चेहरे की जरूरत थी और इसीलिए मनोज सिन्हा को लाने का निर्णय किया गया. हालांकि हाल के कुछ घटनाक्रम भी हैं जिसके कारण जीसी मुर्मू को जाना पड़ा.
हाल ही में एक साक्षात्कार में मुर्मू ने जम्मू-कश्मीर में 4 जी की बहाली पर टिप्पणी की थी. उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया गया कि उन्हें 'डर नहीं है कि कश्मीर के लोग इंटरनेट का उपयोग कैसे करेंगे'. सूत्रों का कहना है कि यह स्टैंड अच्छी तरह से नीचे नहीं गया होगा क्योंकि गृह मंत्रालय ने 'दुरुपयोग' की आशंका को देखते हुए इस कदम का विरोध किया था.
विधानसभा चुनाव को लेकर उनकी टिप्पणी भी विवादों में रही. वरिष्ठ पत्रकार जफर चौधरी का कहना है कि कश्मीर बहुत संवेदनशील जगह है जिसे नौकरशाही प्रयोगों के लिए छोड़ दिया जाता है. उपराज्यपाल के 4 जी मोबाइल और शुरुआती चुनाव पर बयान की वजह से सरकार को कोर्ट और जनता के बीच शर्मसार होना पड़ा.
प्रशासनिक 'शिथिलता'
जीसी मुर्मू एक नौकरशाह थे, हालांकि यहां पर प्रशासनिक कामकाज में असर पड़ रहा था क्योंकि राज्य में कई अन्य 'वरिष्ठ' नौकरशाह भी थे. इससे कई बार प्रशासन में काम करना मुश्किल हो रहा था. इस दौरान एलजी के रूप में उनके एक साल से भी कम समय के कार्यकाल में ऐसी शिकायतों की संख्या बढ़ती चली गई.
वरिष्ठ पत्रकार जफर चौधरी कहते हैं कि मुर्मू के कार्यकाल में राज्य प्रशासन दो गुट में बंटा हुआ था, दोनों गुट एक-दूसरे के खिलाफ लगे हुए थे. उन्होंने कहा कि चुनिंदा लीक के जरिए अधिकारियों को घोटालों में नामित किया जा रहा था, लेकिन सामूहिक जिम्मेदारी में टाल-मटोल किया जा रहा था.
अब मनोज सिन्हा जैसे राजनीतिक चेहरे को लेकर केंद्र शायद राजनीतिक रिक्त स्थान को भरने की कोशिश कर रहा है. और साथ ही उम्मीद है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में प्रशासनिक कामकाज भी सुचारू हो जाएगा.