
सेब की फसल का नाम सुनते ही सबसे पहले जेहन में पहाड़ी और ठंडे इलाके आते हैं. जैसे कि कश्मीर और हिमाचल प्रदेश. मैदानी इलाकों में रहने वाले ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन्होंने कभी सेब का पेड़ नहीं देखा होगा. लेकिन हरियाणा जैसे सपाट मैदानी इलाके में आपको सेब का बागीचा देखने को मिल जाए तो आप क्या कहेंगे?
आखिर कैसे हुआ ये कमाल?
हरियाणा के करनाल में ऐसा ही कमाल नरेंद्र चौहान ने कर दिखाया है. चौहान सेब की खेती वैसे ही करते हैं जैसे गेहूं और चावल का उत्पादन होता है. करनाल में जीटी रोड पर ढाबा चलाने वाले चौहान को सेब की खेती इतनी रास आई कि वो सेब की लो चिलिंग वैराइटी के पौधे देश के कई हिस्सों में सप्लाई कर रहे हैं.
पालमपुर यूनिवर्सिटी के शोध से मिली प्रेरणा
चौहान ने एक दिन अख़बार में पढ़ा कि हिमाचल प्रदेश की पालमपुर यूनिवर्सटी ने शोध के बाद पंजाब के होशियारपुर में सेब के पेड़ लगाए हैं. पहले तो ये पढ़कर चौहान को यकीन नहीं हुआ. वो खुद अपनी आंखों से ये देखने के लिए होशियारपुर पहुंचे. फिर वो पालमपुर यूनिवर्सिटी भी गए.
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यहीं से उन्होंने सेब के पौधे ला कर करनाल में उसे आजमाने का फैसला किया. छोटे स्तर पर हुई ये शुरुआत अब 16 एकड़ के बागीचे में तब्दील हो चुकी है. करनाल में सेब का बागीचा होने की बात सुन दूर दूर से लोग इसे देखने आते हैं. अब तक चौहान हज़ारों की तादाद में सेब के पौधे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के किसानों को दे चुके हैं. ये पौधे कोरियर के माध्यम से भी दूसरी जगहों पर पहुंचाए जाते हैं.
उच्च तापमान में भी लगाई जा सकती है यह प्रजाति
हिमाचल प्रदेश की पालमपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सटी ने इस संदर्भ में एक शोध किया था. इस शोध में साबित हुआ कि सेब की एक ख़ास किस्म जिसे ‘अन्नाडोर सेट गोल्डन’ कहते हैं, वो उच्च तापमान यानि कि 40 डिग्री के तापमान तक वाली जगह पर भी उगाई जा सकती है. इस शोध के तहत पंजाब के होशियारपुर जैसे मैदानी इलाके में प्रयोग के तौर पर सेब के पौधे लगाए गए.

नरेंद्र चौहान बताते हैं कि उन्होंने 1995 में सबसे पहले बादाम के पौधे लगाए थे. हरे बादाम, जिन्हें कच्चे बादाम भी कहा जाता है, के उत्पादन में भी चौहान को अच्छी सफलता मिली. मैदानी इलाकों में सेब की फसल से जुड़े शोध के बारे मे चौहान को पहली बार पता चला तो वो सेब के वो 35 मदर प्लांट पालमपुर यूनिवर्सिटी से लेकर आए. अब इनके बागीचे में एक पेड़ पर 60 से 70 किलो सेब लगने लगे हैं. चौहान का कहना है कि पौधा लगाने के तीन साल बाद पहली पहली बार 15-20 किलो सेब लगने शुरू होते हैं. 7 साल में ये सिलसिला 60 से 70 किलो तक पहुँच जाता है. मैदानी इलाके और गर्म तापमान में होने वाले इन सेब का स्वाद, मिठास और क्रंच हिमाचल और कश्मीर के सेब जैसा ही है, लेकिन इनका रंग पहाड़ी इलाके की तुलना में कम लाल होता है. बस यही वो फ़र्क है जिसे आंखों से महसूस किया जा सकता है.
चौहान के पास दूर-दूर से सेब के पौधों के लिए ऑर्डर आने लगे हैं. सेब बेचने के साथ ही अब चौहान ने अपनी नर्सरी में सेब के पौधे बड़ी संख्या में तैयार करने शुरू कर दिए हैं.