जहां एक ओर केंद्र और दिल्ली की सरकरों के आदेश पर आवासीय योजनाओं का हवाला देकर राष्ट्रीय राजधानी के सरोजनी नगर में 16,500 पेड़ों की कटाई का फरमान जारी किया गया है और दिल्ली के हज़ारों पेड़ विकास की भेंट पहले ही चढ़ाए गए है. वहीं, दूसरी ओर विकास और सुनहरे सपने का शहर गुरुग्राम इन दिनों अपनी खोई हुई प्राकृतिक सुंदरता को वापस हासिल करने की राह पर चल पड़ा है.
देश के दो प्रमुख शहर दिल्ली और गुरुग्राम, जोकि एक-दूसरे से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर है. पर बात जब विकास की परिभाषा की हो, तो इनमें मीलों का फासला नज़र आता है. एक देश की राजधानी जो विकास की गाड़ी पर सवार होकर वर्षों पुराने पेड़ों की बलि देने को तैयार है, तो वहीं दूसरा साइबर सिटी के नाम से प्रचलित प्रगतिशील शहर है, जो विकास की भेंट चढ़ चुके पेड़ों को दोबारा से संवारने की जद्दोजहद में लगा हुआ है.
हम बात कर रहे है गुरुग्राम में चल पड़ी हरित क्रांति की. इसके सूत्रधार है इस शहर के बाशिंदे, जिनको अब ये समझ में आ गया है कि जीने के लिए साफ पानी और शुद्ध हवा के साथ-साथ हरे-भरे ग्रीन बेल्ट्स की भी जरूरत है. I Am Gurgaon के नाम से प्रचलित आम नागरिकों की एक संस्था इन दिनों शहर को हरा-भरा करने की कोशिशों में जुटी हुई है.
गुरुग्राम का वातावरण पूरी तरह अरावली की पर्वत श्रृंखला पर निर्भर करता है और इस शहर ने आगे बढ़ने की रेस में अरावली के हरे-भरे प्राकृतिक स्वरूप को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था. पर अब ये शहर उसी खोई हुई रौनक को बहुत हद तक वापस पा चुका है. तस्वीरें साफ बता रही है कि खनन माफियाओं और अतिक्रमण के चलते अरावली कैसी उजाड़ हो चुकी थी. पर अब ये इनकी कोशिशों का नतीजा है कि अब हरियाली वापस लौटने लगी है.
500 एकड़ में फैले अरावली रेंज में पौधों और वनस्पतियों की 300 प्रकार की अलग-अलग प्रजातियां है. ये एक समय अरावली का हिस्सा थीं और बाद में विलुप्त हो गई थीं. ये प्रजातियां यहां की मिट्टी के लिए ही बनी हैं. इसलिए इनकी ग्रोथ बहुत अच्छी है. इसी तरह गुरुग्राम के कई और इलाके में भी डंपिंग यार्ड्स और बांध एरिया का रेस्टोरेशन का काम शुरू हो गया है और हर साल यहां 20 हज़ार पौधों को लगाने का काम चल रहा है.
इसी कड़ी में आज तक इन लोगों ने DLF इलाके में कारीब पांच किलोमीटर का स्ट्रेच कवर कर लिया है. बांध के पानी की सफाई की गई है, जिसमें एक जगह से ही 15 ट्रक प्लास्टिक निकाला गया. अब दो साल में ही इस बंध की काया पलट गई है. अब लोग यहां सैर सपाटे के लिए आते हैं.