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पंजाब: सियालका से धरने पर गए किसानों के परिवारों की जिम्मेदारी निभा रहा पूरा गांव

दिल्ली-हरियाणा की सीमाओं पर धरना देते किसानों को एक महीने से भी ऊपर हो गया है. पंजाब के किसान तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस न लिए जाने तक धरना देने के लिए डटे हैं, वहीं उन्हें अपने खेतों में नई फसल के लिए सिंचाई की भी फिक्र है.

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किसान आंदोलन (फाइल फोटो)
किसान आंदोलन (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सियालका से कई किसान सिंघु बॉर्डर पर धरना देने आए हैं
  • उनके परिवारों की जिम्मेदारी निभा रहा पूरा गांव
  • दूसरे किसान सिंघु और टिकरी बॉर्डर पहुंचने की तैयारी कर रहे

दिल्ली के बॉर्डरों पर धरना देते किसानों को एक महीने से भी ऊपर का वक्त हो गया है. पंजाब के किसान तीन नए केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस न लिए जाने तक धरना देने को डटे हैं, वहीं उन्हें अपने खेतों में नई फसल के लिए सिंचाई की भी फिक्र है. किसानों की रणनीति है कि एक ट्रैक्टर अगर गांव में वापस लौटता है तो किसानों के दो ट्रैक्टर धरना स्थल के लिए रवाना हो जाएं. 

जो किसान धरने पर गए हैं, उनके घर की जिम्मेदारी पूरे गांव की है. आखिर क्या हाल है पंजाब के गांवों का, यह जानने के लिए आजतक अमृतसर से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित सियालका गांव पहुंचा. यहां से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली के सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं. खेतों में खड़ी फसल को देखने की जिम्मेदारी और उन्हें मंडियों तक पहुंचाने के काम घर के बचे हुए सदस्यों और अन्य गांव वालों की है.  

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युवा किसान सुखबीर सिंह कहते हैं, “जो लोग आंदोलन में गए हैं, पूरा गांव मिलकर उनकी फसल देख रहा है और उनके परिवारों की मदद कर रहा है. जो अपने गांव में नहीं है उसकी जिम्मेदारी पूरे गांव की है. उनके खेत में खाद से लेकर पानी और हर जरूरत हम पूरा करते हैं.” किसान निर्मल सिंह का कहना है, “खेतों से फसल निकालने से लेकर उन्हें मंडियों तक पहुंचाने में एक-दूसरे की मदद की जा रही है.

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कई किसान अपने खेतों में खाद छिड़क रहे हैं, जिसकी जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद उनकी दिल्ली कूच करने की तैयारी है. कुलवंत सिंह और उनके भाई भी ऐसे ही किसान हैं. कुलवंत को कृषि कानून की बारीकियां नहीं पता लेकिन किसानों के साथ वे कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते हैं. 

घर की जिम्मेदारी पूरे गांव की

घर-घर से मदद जुटा रहे बुजुर्ग किसान जो धरने के लिए नहीं गए वो गांव-गांव घर-घर जाकर मदद जुटा रहे हैं. यहीं स्थिति कमोवेश अन्य गांवों की भी है. कोशिश यही है कि जरूरी सामान खरीद कर दिल्ली में धरना दे रहे किसानों तक पहुंचाया जाए. जो जिसकी सामर्थ्य है, 50 रुपए से लेकर 5,000 रुपए तक, अनाज के बोरों से लेकर सब्जियों के टोकरों तक, सब उस के हिसाब से अपना सहयोग कर रहे हैं. घर-घर जाकर चंदा जुटाने में बुजुर्ग किसान सबसे आगे हैं, जो अपनी बड़ी उम्र की वजह से धरने के लिए नहीं जा सके. 6 डिग्री सेल्सियस तक की कड़ाके की ठंड में भी इन बुजुर्ग किसानों का हौसला देखने लायक है. 

सियालका गांव के ही किसान सुखबीर सिंह कहते हैं, "हमारे गांव से एक ग्रुप पहले ही दिल्ली जा चुका है और दूसरा तैयार हो रहा है. आपस में बैठकर हम तय करते हैं और चावल दाल आटा लेकर सारी व्यवस्था के साथ दिल्ली जाते हैं. यहां हम गांव-गांव घर-घर जाकर लोगों से मदद मांगते हैं और लोग अपनी खुशी से इस आंदोलन के लिए दान कर रहे है.’’  

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किसानों के परिवारों की जिम्मेदारी निभा रहा पूरा गांव

मिलने वाले छोटे से छोटे चंदे का भी कागज पर पूरा हिसाब रखा जाता है. बलविंदर सिंह उन किसानों में से हैं जो घर-घर जाकर चंदा जमा करते हैं. किसान आंदोलन की फंडिंग पर उठने वाले सवालों को लेकर बलविंदर सिंह का कहना है, "हमने चंदा शुरू किया और लोग पैसा दे रहे हैं. अपनी कमाई का दसवां हिस्सा अच्छे काम के लिए दान करना सिखों की परंपरा भी है जो हमारे दसवें गुरु ने शुरू की थी.”

कॉरपोरेट के फायदे में बनाए गए कानून! 
किसानों के लिए ऐसा कहा जा रहा है कि उन्हें निहित स्वार्थों की ओर से नए कृषि कानूनों को लेकर गुमराह किया जा रहा है? इस सवाल का जवाब देने के लिए इस रिपोर्टर की एक चौपाल में सामने आए. युवा किसान खुशदीप सिंह कहते हैं, "सरकार ने 23 फसलों के लिए न्यूनतम कीमत तय की है लेकिन हमें दो फसलों के लिए भी पूरी कीमत नहीं मिलती. हमारे खेत में गोभी की फसल तैयार है लेकिन 5 से 7 रुपए किलो में गोभी बिक रही है जिससे हमारा खर्चा भी नहीं निकलता. सरकार गेहूं चावल पर भी एमएसपी खत्म कर देगी. यह कानून कॉरपोरेट को देखकर बनाया गया है. अब तक 5 बार बैठकें हुई हैं और सरकार ने खुद कहा कि हम संशोधन करने को तैयार हैं. अगर कानून में सब कुछ ठीक है तो संशोधन क्यों कर रहे हैं? प्याज के मौसम में किसानों को कीमत नहीं मिलती लेकिन जब मौसम खत्म हो जाता है तो रेट चढ़ने लगते हैं.किसान हर किसी का भला सोच रहा है क्योंकि उसे जमाखोरी वाले कानून नहीं चाहिए.” 

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किसान अपना भला-बुरा खुद अच्छी तरह जानता है. किसानों से जब ऐसे आरोपों के संबंध में सवाल किया गया कि उनके कंधों पर बंदूक रखकर विपक्ष निशाना साध रहा है, तो सुखबीर सिंह ने कहा, "यह बात बनाई गई है. हमने प्रधानमंत्री का भाषण भी सुना लेकिन किसान समझदार है और उसे सब कुछ पता है. छोटे से छोटा किसान भी समझदार हो गया है इसलिए सरकार को मानना तो पड़ेगा और हम पीछे नहीं हटेंगे?  

ऐसे दावे-प्रतिदावे भी सामने आ रहे हैं कि कई किसान संगठन कृषि कानूनों को लेकर सरकार का समर्थन कर रहे हैं? तो क्या किसानों के बीच फूट पड़ गई? इस सवाल पर सियालका के किसान सुखवंत सिंह कहते हैं, "किसानों ने सब अच्छा भला सोच कर ही यह कदम उठाया है क्योंकि सरकार की नीतियां से आने वाले समय में किसान और नीचे गिर जाएगा. सरकार ने बड़े बड़े घरानों को जमीन देना शुरू कर दिया है. सरकार किसानों को गुमराह कर रही है लेकिन किसान गुमराह होने वाले नहीं है.” 

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