संस्कृत के प्रचार प्रसार में अहम योगदान निभाने वाले पद्मश्री डॉ. रमाकांत शुक्ल ने भारतीय संस्कृति और विरासत पर खुलकर बात की. शुक्ल दिल्ली स्थित अतुल्य साहस एनजीओ के एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचे थे. उन्होंने एनजीओ के 'हमारी भारतीय संस्कृति और विरासत' कार्यक्रम में कहा कि संस्कृति का मतलब अच्छी आदत से है. इसी को संस्कार भी कहते हैं.
उन्होंने कहा, 'आज कल भारत माता की जय कहने पर लोगों को दिक्कत होती है. हमें यहां समझना चाहिए कि यह एक रूपक है, जैसे हम किसी ये कहें कि वो तो गधे जैसा है, इसका मतलब ये तो नहीं होता कि वो गधा ही है. इसी प्रकार भारत माता हमें पालती हैं. लोग सवाल उठाते हैं कि ये कहां से मां हो गई, ये तो सिर्फ मिट्टी है. लेकिन हमें ये समझना होगा कि जैसे माता पालती है वैसे ही धरती पालती है, फल से, खेत से और मकान से आदि.'
उन्होंने कहा कि भारत में गरीबी जिस दिन से हम स्वतंत्र हुए उसी दिन से सुन रहे हैं. जो भी दल आता है वो यही कहता है कि हमें गरीबी हटाना है, लेकिन गरीब गरीब ही रहा.
उन्होंने कहा कि जिसके पास न संगीत है, न कला है और न साहित्य है तो वो साक्षात पशु है, बस उसमें पूंछ नहीं है. इसलिए यह सभी के लिए जरूरी है. उन्होंने बताया कि 64 कलाएं हैं. इस दौरान उन्होंने अतुल्य साहस एनजीओ के कार्यों की सराहना करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में और बेहतर करने की शुभकामनाएं दीं.
इस कार्यक्रम में वो मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे. उनके अलावा कार्यक्रम में स्थानीय विधायक, पार्षद और कई अन्य नेता भी शामिल हुए.
अतुल्य साहस एनजीओ पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर इलाके में मुख्य रूप से कार्यरत है. यह समाजिक सशक्तिकरण और उत्थान के लिए अनेकों आंदलनों, अभियानों का सुत्रधार रहा है. साथ ही सरकार द्वारा चलाए जा रहे तमाम अभियानों का हिस्सा भी रहा है जैसे, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, डिजिटल इंडिया, स्वच्छता अभियान, पर्यावरण संरक्षण और कौशल विकास जैसे कार्यक्रम प्रमुख हैं.
इसके अलावा यह एनजीओ आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को फ्री कंप्यूटर शिक्षा और मुफ्त ट्यूशन भी प्रदान करता है. एनजीओ के दिल्ली प्रदेश के प्रभारी ईशु जैन ने कार्यक्रम के दौरान ही इस बात का ऐलान किया कि आगामी वर्ष से एनजीओ 12वीं क्लास में पास होने वाली आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं को मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध कराएगा.